भोपाल। अमूमन सर्दी के मौसम के विदा होते ही पश्चिमी विक्षोभ का असर श्रीनगर तक ही सीमित होकर रह जाता है। इससे गर्मी में मध्य प्रदेश सहित मैदानी राज्यों में तपिश बढ़ती है, लेकिन इस बार पश्चिमी विक्षोभ लगातार न केवल हिमालय बल्कि पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक आ रहे हैं। इससे मध्य प्रदेश में बार-बार बादल छा रहे हैं और वर्षा भी हो रही है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक पश्चिमी विक्षोभ के लगातार आने से मानसून के पिछडऩे की आशंका बढ़ गई है। अब दक्षिण-पश्चिम मानसून की मप्र में आने की संभावित तारीख 16 जून है। इस बार गर्मी के सीजन में मार्च, अप्रैल के बाद मई माह में भी वर्षा हो रही है। वर्तमान में एक पश्चिमी विक्षोभ पूर्वी मध्य प्रदेश पर बना हुआ है। 29 मई को भी एक नए पश्चिमी विक्षोभ के उत्तर भारत में पहुंचने की संभावना है।
मार्च से लेकर अभी तक 15 पश्चिमी विक्षोभ अलग-अलग समय पर उत्तर भारत में आ चुके हैं। इनमें से दो पश्चिमी विक्षोभ मध्य प्रदेश तक आ चुके हैं। मौसम विज्ञान केंद्र के पूर्व वरिष्ठ मौसम विज्ञानी अजय शुक्ला ने बताया कि सर्दी के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ के असर से उत्तर भारत के पहाड़ों पर बर्फबारी होती है और उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में वर्षा भी होती है। इससे मध्य प्रदेश में ठंड बढ़ती है। मार्च के बाद पश्चिमी विक्षोभ काफी ऊंचाई पर आते हैं। उनका असर श्रीनगर तक ही सीमित रहता है, लेकिन इस बार लगातार पश्चिमी विक्षोभ काफी नीचे आते रहे। यहां तक कि दो पश्चिमी विक्षोभ तो मध्य प्रदेश में प्रवेश कर गए। इनके असर से मध्य प्रदेश एवं आसपास द्रोणिका लाइन भी बनती रहीं। इसी के चलते बादल छाने और रुक-रुककर वर्षा होने का सिलसिला भी भी बना हुआ है। शुक्ला के मुताबिक पश्चिमी विक्षोभ के आने से हवाओं का रुख भी बार-बार बदलता है। इस तरह की स्थिति मानसून के आगे बढऩे में बाधा बनती है। इससे इस बार दक्षिण-पश्चिम मानसून के पिछडऩे की आशंका बढ़ रही है।
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