– अशोक “प्रवृद्ध”
कृषि कार्य ही नहीं वरन देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए अहम मानी जाने वाली मानसूनी बारिश के बेरुखी के कारण खरीफ फसलों की बुआई में हो रही विलम्ब से देश के कृषक अभी से ही चिंतित, हतोत्साहित नजर आ रहे हैं। दक्षिणी -पश्चिमी मानसून के बिगड़े मिजाज से खरीफ की बुआई अर्थात बोआई के देर से होने की आशंका ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं, और वे सिर पर हाथ धर खेतों में बैठ सोचने को विवश हैं। जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक सूखे जैसे हालात के चलते देश के कई भागों में खरीफ फसलों की बुआई थम सी गई थी। मानसून काल में होने वाली वर्षा सिर्फ कृषि कर्म का आधार नहीं होती, वरन देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इस खरीफ मौसम में देश के 50 प्रतिशत हिस्से में सामान्य से कम बारिश हुई है, जिसका असर खरीफ मौसम की खेती पर पड़ने की आशंका उत्पन्न हो गई है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार एक से 18 जुलाई के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून से हुई बारिश सामान्य से 26 प्रतिशत कम हुई है। बीते सप्ताह मानसून कई राज्यों में सक्रिय हुआ है। इस सप्ताह देश के 694 जिलों में सामान्य से 35 प्रतिशत कम बरसात हुई है। जबकि इसके पहले वाले सप्ताह में 42 प्रतिशत की कमी थी। एक शोध एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 23 जून से 12 जुलाई के बीच मानसून से होने वाली बारिश 55 प्रतिशत कम हुई है। जबकि राजस्थान में 58 और गुजरात में 67 प्रतिशत की कमी रही है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार चालू खरीफ सीजन में पहली जून से 20 जुलाई तक उत्तर प्रदेश में 46 प्रतिशत कम, बिहार में 48 प्रतिशत और झारखण्ड में 42 प्रतिशत कम तथा पूर्वोतर के राज्यों में बारिश में भारी कमी आई है। चालू खरीफ सीजन में देश के कई राज्यों में इस प्रकार की मानसून की इस बेरुखी, अर्थात इस गड़बड़ चाल से खरीफ काल की खेती पर विपरीत असर पड़ा है।
उल्लेखनीय है कि समय पर देश में दस्तक देने के बावजूद मानसून धीमी, सुस्त हो चली है। देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून की बारिश में देरी के कारण खरीफ फसलों की बुआई पिछड़ती दिख रही है। अभी तक धन रोपनी का कार्य भी समाप्त नहीं हुआ है, और सामान्य बारिश होने के बावजूद मूंग, उड़द और कपास की बुवाई के लिए अब बहुत कम समय शेष बचा है । इससे दलहनी व तिलहनी फसलों की उत्पादकता भी प्रभावित होने की आशंका उत्पन्न हो गई है । कई राज्यों में मानसून की बेरुखी से दलहनी और तिलहनी फसलों की बुआई पूरी तरह थम गई है। बुआई में होने वाली देरी का प्रतिकूल असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक आने वाले दो तीन सप्ताह खरीफ सीजन की खेती के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं। जुलाई में मानसून की बेरुखी का असर खेती पर पड़ा है। 23 जुलाई तक कुल फसलों का बोआई आंकड़ा 7.21 करोड़ हेक्टेयर तक ही पहुंच पाया है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि तक कुल 7.92 करोड़ हेक्टेयर में बोआई हो चुकी थी। कम बरसात के कारण बुआई लगभग नौ प्रतिशत पीछे चल रही है।
उड़द की बुआई पिछले साल के मुकाबले 23 प्रतिशत पीछे है। इसी तरह मूंग की बुआई 18 प्रतिशत पीछे है और बाजरा 29.16 प्रतिशत पीछे चल रहा है। तिलहनी फसलों की बोआई 17 लाख हेक्टेयर पीछे चल रही है। खरीफ की प्रमुख फसल धान, दलहन, तिलहन के साथ ही मोटे अनाज और कपास की बुआई पीछे चल रही है। कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 156.51 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले वर्ष इस समय तक इसकी रोपाई 178.73 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। चालू खरीफ सीजन में दलहन की बुआई घटकर 82.41 लाख हैक्टेयर में ही हुई है, जबकि गत वर्ष इस समय तक 100.04 लाख हैक्टेयर में दालों की बुआई हो चुकी थी।
खरीफ दलहन की प्रमुख फसलों अरहर और उड़द की बुवाई पीछे चल रही है, जबकि मूंग की बुवाई पिछले साल की समान अवधि की तुलना में थोड़ी अधिक हुई है। मोटे अनाजों की बुआई भी पिछड़ कर चालू खरीफ में अभी तक 118.84 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक मोटे अनाजों की बुआई 132.88 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू सीजन में थोड़ी बढ़कर 61.35 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 61.32 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। बाजरा की बुआई चालू सीजन में घटकर अभी तक केवल 40.66 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 54.87 लाख हैक्टेयर में बाजरा की बुआई हो चुकी थी। खरीफ तिलहनों की बुआई भी चालू खरीफ में घटकर अभी तक केवल 123.58 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुवाई 123.69 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। कपास की बुवाई भी चालू खरीफ सीजन में 11.09 फीसदी पिछे चल रही है। अभी तक देशभर में कपास की बुवाई केवल 92.70 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 104.27 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। गन्ने की बुवाई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 50.52 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक गन्ने की बुवाई 49.72 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पिछले वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी मानसून सामान्य रहने की उम्मीद थी,जिससे किसानों में काफी उत्साह था। लेकिन जून माह में अच्छी बारिश एवं जुलाई माह में कम बारिश के चलते किसानों की फसलों को काफी नुकसान हुआ है। इस वर्ष कुछ राज्यों में सूखे की स्थिति बनी हुई है तो कुछ राज्यों में देर से ही सही लेकिन भारी बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। अभी तक मानसूनी बारिश के सामान्य से कम रहने का असर खरीफ फसलों की बुआई पर साफ़ देखा जा सकता है। कृषि विभाग द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करने से स्पष्ट होता है कि इस वर्ष 9 जुलाई 2021 तक खरीफ फसलों की बुआई 50 मिलियन हेक्टेयर तक हुई है, जो कुल खरीफ क्षेत्रफल का 46.6 प्रतिशत है, जबकि इस अवधि में पिछले वर्ष 55.6 मिलयन हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जो कुल खरीफ बुआई के क्षेत्रफल का 52.5 प्रतिशत है। इस प्रकार इस वर्ष 9 जुलाई 2021 तक पिछले वर्ष के मुकाबले 10.4 प्रतिशत कम खरीफ फसल की बुआई हुई है।
यद्यपि कृषि व कल्याण मंत्रालय के द्वारा खरीफ फसल बुआई का आंकड़ा प्रत्येक वर्ष 9 जुलाई को जारी किया जाता है, लेकिन इस वर्ष 4 दिन के विलम्ब से 13 जुलाई 2021 को खरीफ फसल की बुआई का आंकड़ा जारी किया गया है। इसी प्रकार खरीफ फसल की बुआई का पहला आंकड़ा 25 जून को जारी किया जाता है, जबकि इस वर्ष 5 दिन की देरी से 30 जून 2021 को जारी किया गया है। फसलों के अनुसार देश भर में बुवाई का रकबा सरकार ने जारी किया है। जारी आंकड़ों के अनुसार भी खरीफ की महत्वपूर्ण फसलों यथा, धान, ज्वार, बाजरादि खाद्यान, अरहर, उडद, मूंग आदि दलहन फसलों के साथ ही सोयाबिन, मूंगफली, कपास आदि सभी खरीफ फसलों की बुआई पर देश भर में मानसून का असर सीधा देखा जा सकता है। आंकड़ों के अनुसार गन्ना को छोड़कर शेष सभी फसलों की बुवाई पर असर हुआ है। मूंग, सोयाबीन, धान और कपास समेत लगभग सभी खरीफ फसलों की बुआई पिछड़ गई है।
मौसम विभाग के संशोधित अनुमानों के अनुसार देश के सभी इलाकों में मानसून की बारिश को 8 जुलाई तक पहुंच जाना था, लेकिन 9 जुलाई तक सिर्फ 229.7 मिमी. बारिश हुई, जो 243.6 मिमी. की सामान्य बारिश से छह प्रतिशत कम है। 7 जुलाई तक देश भर में वर्षा 46.3 प्रतिशत की कमी थी, जो 14 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में 7 प्रतिशत की कमी रह गई थी। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में वर्षा में सुधार होने पर खरीफ फसल की बुआई में वृद्धि दर्ज की जाएगी। बहरहाल मानसूनी बेरुखी अर्थात बारिश की कमी के कारण किसान अब कम समय में पकने वाली फसल लगा रहे हैं। आदिकाल से कृषि पर आश्रित देश के किसानों को अब भी उम्मीद है कि मानसून की रफ्तार जोर पकड़ेगी, और मिट्टी में नमी बढ़ने से वे बुआई की रकबा बढ़ा सकेंगे, और इन्द्रदेव की मेहरबानी रही तो खरीफ की बेहतर फसलोपज से देश की अर्थव्यवस्था को एक नई गति देने में कदम से कदम मिलाकर चल भी सकेंगे।
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