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स्कूल और बुक स्टोर्स की चल रही मोनोपोली, पेरेंट्स पर डाला जा रहा दबाव; कलेक्टर ने कही ये बात

  • March 28, 2025

    भोपाल: नया सत्र शुरू होते ही शिक्षा के मंदिरों में एक बार फिर से एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई है. जहां बच्चों के सपनों को पंख लगाने की बात होनी चाहिए, वहीं कुछ निजी स्कूलों की मनमानी ने पैरेंट्स को चिंता में डाल दिया है. इस बार फिर से बच्चों के लिए किताबों की खरीदारी में एक नया तर्क सामने आया है कि वे अपनी किताब खास दुकानों से ही खरीदेंगे. क्या यह सिर्फ शिक्षा का कारोबार है या फिर हमारे बच्चों का भविष्य दांव पर है?

    भोपाल कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा कि पिछले सत्र की गाइडलाइंस इस सत्र में भी जारी रहेगी. हमें अभी तक ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है कि कोई स्कूल पैरेंट्स पर किसी खास दुकान से किताबें या अन्य सामग्री खरीदने के लिए दबाव बना रहा है. अगर कोई इस दबाव बनाता है तो कार्रवाई की जाएगी. अभी हमने ऐसी व्यवस्था बनाई है कोई भी कहीं से भी पुस्तक ले सकता है. अगर कोई ऐसी मोनोपोली करता है तो निश्चित तौर पर कार्रवाई की जाएगी

    वहीं इस मामले में पैरेंट्स का कहना है कि भले ही स्थानीय प्रशासन ने शिक्षा माफिया पर लगाम लगाने की बात कही हो लेकिन शिक्षण सत्र चालू होते ही शिक्षा माफिया का त्योहार सा आ गया है. आज किस तरह नियमों उनकी धज्जियां उड़ाते हुए निजी स्कूल 9वी से 12वीं तक 50% किताबें NCRTE की देते हैं और 50% किताबें प्राइवेट पब्लिकेशन की देते हैं. जब पेरेंट्स रिजल्ट लेने जाते हैं उनको चिन्हित दुकानों पर किताब खरीदने के लिए बाध्य करते हैं. यह सब उनके बीच कमीशन बाजी चल रही है स्कूल किताबें ड्रेस और अन्य पुस्तकों को लेकर स्कूल और बुक स्टोर्स की मोनोपोली चल रही है.


    शिवांगी राजोरिया ने कहा कि नर्सरी क्लास में हमने निजी स्कूल में बच्चे का एडमिशन कराया. तब हमको निजी बुक स्टोर से किताबें और अन्य सामग्री के लिए बोला गया. जहां हमें मंहगे दामों पर किताबें खरीदनी पड़ीं. वहीं बुक स्टोर के मैनेजर किसी स्कूल से सांठगांठ होने को नकारते नजर आ रहे हैं. वहीं किसी भी क्लास की किताबों या कॉपी पर डिस्काउंट देने का दावा कर रहे हैं .

    वॉइस ऑफ पैरेंट्स (संगठन) विवेक शुक्ला ने कहा कि आखिरकार, सवाल यह नहीं है कि किताबें कहां से खरीदी जाएं,सवाल यह है कि क्या हम बच्चों को एक ऐसी शिक्षा दे रहे हैं, जो उनके भविष्य के लिए सही है या हम सिर्फ उनका पैसों का खेल बना रहे हैं? ये वही सवाल हैं, जिनका जवाब हमें तलाशना है. इस बदलाव के बीच,बच्चों के माता-पिता अब यह उम्मीद करते हैं कि शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं,बल्कि उनका भविष्य सर्वोपरि हो. अब यह देखना है कि क्या शिक्षा के इस कारोबार के बीच हम बच्चों की असली ज़रूरतों को पहचान पाएंगे या फिर हम सिर्फ एक और मंहगा खेल खेलने वाले होंगे.

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