नई दिल्ली। मंकीपॉक्स, जिसे अब आमतौर पर एमपॉक्स (Mpox) कहा जाता है, एक दुर्लभ वायरल बीमारी है जो मंकीपॉक्स वायरस (monkeypox) के कारण होती है. इस वायरस का संबंध चेचक (Smallpox) से है, और यह भी एक पॉक्सवायरस है. हालांकि, चेचक के विपरीत, मंकीपॉक्स आमतौर पर कम घातक और संक्रामक होता है.
क्या है Mpox वायरस?
एमपॉक्स एक वायरल बीमारी है जो मंकीपॉक्स वायरस के कारण होती है, जो ऑर्थोपॉक्सवायरस जीनस की एक प्रजाति है. एमपॉक्स को पहले मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता था. इस वायरस की पहचान पहली बार 1958 में की गई थी. उस समय बंदरों में इस बीमारी का प्रकोप काफी ज्यादा बढ़ गया था. Mpox वायरस का संबंध चेचक, काउपॉक्स, वैक्सीनिया जैसी बीमारियों से है. यह वायरस उसी ऑर्थोपॉक्स वायरस के परिवार से है जिसमें बाकी सभी पॉक्स वायरस हैं. एमपॉक्स वायरस बंदरों में फैलने वाला एक संक्रमण है, इसीलिए इसे मंकीपॉक्स वायरस कहा जा रहा है. संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से यह वायरस इंसानों में भी फैलता है.
मंकीपॉक्स वायरस दो प्रकार के होते हैं
ये लोग रहें बेफ्रिक
रिपोर्टस के मुताबिक, जिन लोगों को छोटी चेचक या चिकनपॉक्स हो चुका है या इससे संबंधित टीका (वैक्सीन) लग चुका है, उनमें इस बीमारी के होने का खतरा ना के बराबर है.
मंकीपॉक्स वायरस के लक्षण
मंकीपॉक्स वायरस के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, थकान और त्वचा पर दाने या फुंसियां शामिल हो सकते हैं. यह वायरस आमतौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संपर्क के माध्यम से फैलता है, जैसे कि संक्रमित व्यक्ति के साथ शारीरिक संपर्क, या संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों के संपर्क में आने से. इस वायरस के लक्षण 2 से 4 हफ्तों तक रहते हैं. बच्चों, प्रेग्नेंट महिलाओं और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में इस संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है.
किसे है खतरा ज्यादा
बच्चे, बुजुर्ग, बीमार, प्रग्नेंट महिलाओं को अधिक खतरा रहता है। इन्हें संक्रमण होने के बाद बीमारी सीवियर हो सकती है। इसलिए संक्रमित मरीज की पहचान के बाद उन्हें तुरंत आइसोलेशन में रखना चाहिए। कई लोगों में इसका संक्रमण निमोनिया और मेननजाइटिस कर देता है और बाद में सेप्टीसीमिया बन जाता है, जिसमें मौत का खतरा ज्यादा होता है।
WHO की चेतावनी?
एक बार फिर मंकीपॉक्स को लेकर डब्ल्यूएचओ की तरफ से ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने के बाद इस पर व्यापक चर्चा शुरू हो गई है। जाहिर सी बात है कि अब इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि कोविड के बाद डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को अब गंभीरता से लिया जा रहा है, ऐसे में इस चेतावनी के बाद सभी देशों को अपने अपने बॉर्डर पर निगरानी शुरु करनी होगी। संक्रमण को रोकने की तैयारी करनी होगी। इससे होने वाली बीमारी को लेकर अपने सिस्टम तैयार करने होंगे। अगर वायरस की एंट्री होती है तो इसके लिए आइसोलेशन वॉर्ड की जरूरत होगी। जांच से लेकर इलाज तक के लिए प्रोटोकॉल तैयार करना होगा।
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