– डॉ दिलीप अग्निहोत्री
इस समय केवल देश ही नहीं, दुनिया में भी मोदी सरकार के बेमिसाल नौ साल की चर्चा है। इसमें उनकी कार्यशैली की झलक है। विरासत और विकास दोनों का सम्मान है। यहां नौ वर्ष की उपलब्धियों की चर्चा आवश्यक नहीं है। नरेन्द्र मोदी के मात्र दो दिनों के कार्यक्रमों को देख कर उनकी कार्यशैली का अनुमान लगाया जा सकता है। यह मात्र बानगी की तरह हैं। उनका प्रत्येक दिन इसी तरह कार्य करते हुए व्यतीत होता है। गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर आज तक नरेन्द्र मोदी ने कोई अवकाश नहीं लिया। वह विदेश की व्यस्त यात्रा से भले ही कितनी देररात नई दिल्ली लौटें, सुबह होते ही अधिकारियों, मंत्रियों और पार्टी के लोगों आदि के साथ बैठक करते हैं। विदेश में भी उन्हें यह पूरी जानकारी रहती है कि देश में क्या चल रहा है। फिर भी वह आते ही पूछते हैं कि देश में क्या चल रहा है।
अमेरिका से लौटने के बाद भी उन्होंने अपने इस चिर परिचित अंदाज में यही प्रश्न किए। मोदी विरोधी कुछ पत्रकारों ने इसे ही मुद्दा बना दिया। कुछ घटनाओं को जोड़कर यह दिखाने का प्रयास किया कि चार दिन में देश की स्थिति बहुत खराब हो गई। इसी अंदाज में विपक्षी दल भी मोदी का विरोध करते हैं। मोदी विरोधी मीडिया और विपक्षी पार्टियां नौ वर्ष से यही कर रहीं हैं। लेकिन मोदी अपने अंदाज मे आगे बढ़ते जा रहे हैं। सात और आठ जुलाई को नरेन्द्र मोदी ने चार राज्यों के पांच शहरों के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इनमें उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान शामिल हैं। यहां करीब पचास हजार करोड़ रुपये की विकास योजनाओं को सौगात दी।
सात जुलाई को छत्तीसगढ़ के रायपुर से उनका कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। रायपुर-विशाखापट्टनम कॉरिडोर के छह लेन परियोजना की आधारशिला रखी। इसके बाद वो गोरखपुर पहुंचें। गोरखपुर में वह गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह में शामिल हुए। तीन वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने गोरखपुर स्टेशन पहुंचे। गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास की आधारशिला रखी। प्रधानमंत्री ने काशी में बारह हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास किया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गोरखपुर यात्रा के दौरान विकास और विरासत दोनों का संदेश दिया। कुछ दिन पहले कांग्रेस ने गीता प्रेस को सम्मान देने का विरोध किया था। नरेन्द्र मोदी ने यहां विचार का गौरव के साथ उल्लेख किया। उन्होंने कहा- गीता प्रेस ट्रस्ट नहीं जीवन की आस्था है। जहां गीता है, वहां कृष्ण हैं। जहां कृष्ण हैं, वहां करुणा और कर्म है। सब कुछ वासुदेव से है। सब कुछ वासुदेव में हैं। गीता प्रेस भारत को जोड़ती है। हमारा सौभाग्य है कि हम इस अवसर के साक्षी बन रहे हैं। गीता प्रेस ट्रस्ट संतों की कर्मस्थली रही है। गीता प्रेस का कार्यालय किसी मंदिर से कम नहीं। हमारी सरकार ने गांधी शांति सम्मान दिया है। सौ वर्ष पूर्व गीता प्रेस के रूप में जो आध्यात्मिक ज्योति प्रज्ज्वलित हुई, आज उसका प्रकाश पूरी मानवता का मार्गदर्शन कर रहा है।
नरेन्द्र मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी का गीता प्रेस से भावानात्मक जुड़ाव था। एक समय में गांधी जी ‘कल्याण’ के माध्यम से गीता प्रेस के लिए लिखा करते थे। गांधी जी ने सुझाव दिया था कि ‘कल्याण’ पत्रिका में विज्ञापन न छापे जाएं। गीता प्रेस, गांधी जी के उस सुझाव का शत-प्रतिशत अनुसरण कर रहा है। गीता प्रेस जैसी संस्था, सिर्फ धर्म व कर्म से नहीं जुड़ी है, बल्कि इसका एक राष्ट्रीय चरित्र भी है। गीता प्रेस भारत को जोड़ती है तथा भारत की एकजुटता को सशक्त करती है। पंद्रह अलग-अलग भाषाओं में यहां से करीब सोलह सौ प्रकाशन होते हैं। गीता प्रेस एक तरह से ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को प्रतिनिधित्व देती है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि गीता प्रेस जैसी संस्थाएं मानवीय मूल्यों और आदर्शों को पुनर्जीवित करने के लिए जन्म लेती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, यह समय गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर अपनी विरासत पर गर्व करने का समय है। आजादी के पचहत्तर साल बाद भी अपनी नौसेना के झंडे पर गुलामी के प्रतीक चिह्न को ढो रही थी। राजधानी दिल्ली में भारतीय संसद के बगल में कई चीजें अंग्रेजी परम्पराओं पर चल रही थीं। वर्तमान सरकार ने गुलामी के यह चिह्न मिटा दिए। नौसेना के झंडे पर छत्रपति शिवाजी महाराज के समय का निशान प्रतिष्ठित किया।
राजपथ अब कर्तव्य पथ हो गया है। जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी म्यूजियम बनाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सही कहते हैं कि विगत नौ वर्षां में हम सभी ने देश के विकास की एक नई यात्रा के साथ-साथ आस्था व विरासत को मिल रहे सम्मान तथा वैश्विक स्तर पर भारत को मिल रही पहचान को देखा है। नये भारत में समग्र भारत के विकास की अवधारणा चरित्रार्थ होती हुई है। आज देश की गौरवशाली आस्था व विरासत को एक नई पहचान मिली है। योग भारत की अति प्राचीन विधा रही है, लेकिन योग को पहली बार वैश्विक पहचान प्राप्त हुई।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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