नई दिल्ली (New Delhi)। मोदी सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) से पहले पेश होने वाले बजट 2023 (Budget 2023) में मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों (Working People) को आयकर में कुछ राहत दे सकती है। इसके अलावा, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का दायरा बढ़ाये जाने की भी संभावना है। जाने-माने अर्थशास्त्री और शोध संस्थान सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के चेयरमैन सुदिप्तो मंडल ने यह संभावना जतायी है।
आपको बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में एक फरवरी को 2023-24 का बजट पेश करेंगी। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले यह उनका अंतिम पूर्ण बजट है। जिसमें संभावना जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव से पहले पेश होने वाले बजट में मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों को आयकर मोर्चे पर कुछ राहत दे सकती है। इसके अलावा, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का दायरा बढ़ाए जाने की भी संभावना है।
मंडल ने कहा कि रियल्टी क्षेत्र अभी लंबी अवधि के बाद पटरी पर आना शुरू हुआ है। साथ ही यह रोजगार बढ़ाने वाला क्षेत्र है। ऐसे में अगर होम लोन को लेकर ब्याज भुगतान पर छूट की सीमा बढ़ायी जाती है, तो यह स्वागतयोग्य कदम होगा। केप्री ग्लोबल कैपिटल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक राजेश शर्मा ने कहा कि सरकार को पीएमएवाई क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी स्कीम के जरिए बढ़ी हुई फंडिंग के जरिए सस्ते आवास को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिए।
वहीं आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के एमडी-सीईओ भार्गव दासगुप्ता का कहना है कि बीम पॉलिसी मुश्किल समय में जिस तरह उपभोक्ताओं के काम आती है उसको देखते हुए इस बार बजट में पहले से ज्यादा टैक्स छूट की उम्मीद है। इससे एक बड़ी आबादी तक बीमा की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। कोटक जनरल इंश्योरेंस के वितरण प्रमुख जगजीत सिद्धु का कहना है कि जीवन बीमा पॉलिसी को धारा 80सी से अलग कर सकती है। साथ ही स्वास्थ्य बीमा पर टैक्स छूट बढ़ा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के बाद स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि हुई है।
वहीं सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय अगले वित्त वर्ष में निजीकरण की सूची में और कंपनियों को जोड़े जाने के पक्ष में नहीं है। उनका कहना है कि चालू वित्त वर्ष लगातार चौथा साल रहने वाला है, जबकि सरकार अपने विनिवेश लक्ष्य से चूकेगी। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने विनिवेश से 65,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, हालांकि अबतक उसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अल्पांश हिस्सेदारी बेचकर सरकार केवल 31,106 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है।
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