भोपाल। 18 दिसंबर 2019 को मप्र के सभी विधायकों ने सर्वसम्मति से संकल्प लिया था कि वे हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा विधानसभा को देंगे। लेकिन कुछ विधायकों को छोड़ कर अधिकांश अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना ही भूल गए। हद तो यह है कि बार-बार के रिमाइंडर के बाद भी माननीय अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं दे रहे हैं। जिस वक्त ये संकल्प पारित हुआ कांग्रेस सत्ता में थी, उस वक्त भाजपा का सुझाव था संकल्प के बजाय विधेयक लाया जाता, सजा का प्रावधान होता। अब भाजपा सत्ता में है तो कह रही है कि वो तो चुनावी हलफनामें में संपत्ति का ब्यौरा देते ही हैं, हालांकि हलफनामा तो 5 साल में दिया जाता है लेकिन देखा गया है कि माननीयों की संपत्ति दिनों दूनी रात चौगुनी तरक्की पर रहती है, ये प्रगति भी सर्वदलीय होती है।
स्मरण पत्र भी नहीं आए काम
पिछले चार साल में विधायकों को उनका संकल्प याद दिलाने के लिए विधानसभा की तरफ से विधायकों को कई बार पत्र भी लिखा जा चुका है, लेकिन लगता है माननीयों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। वर्ष 2021 में कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग ने कहा था कि कोई कोताही नहीं है, वैसे भी सभी विधायक चुनाव लड़ते वक्त संपत्ति का ब्यौरा देते हैं। वहीं पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा का कहना था कि लगातार कोरोना का वक्त रहा, इसलिये थोड़ी देर हुई होगी लेकिन मैं समझता हूं सबको ब्यौरा देना चाहिये। इस संकल्प का मकसद था कि विधायकों-मंत्रियों और उनके रिश्तेदारों की संपत्ति की जानकारी जनता के बीच जाएगी तो पारदर्शिता आएगी और लोगों के बीच उनको लेकर भ्रम नहीं फैलेगा।
संपत्ति की जानकारी देने वाले
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