भोपाल। प्रदेश में अब मियावाकी तकनीकी से पौधा रोपण के साथ जंगल तैयार होगा। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने अनूठी पहल शुरू करते हुए जिलों के मुख्यकार्यपालन अधिकारी और महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के परियोजना अधिकारियों को इस तकनीकी के बारे में बताया है। हालांकि इस नई तकनीकी को लेकर अधिकारियों में असमंजस था। परंतु प्रमुख अधिकारियों ने स्पष्ट किया है मनरेगा से मियावाकी योजना शुरू की जा रही है। इसके तहत पौधा रोपण किया जाएगा।
ये पौधे लगाए जाएंगे इस पद्धति से
सागौन, बीजा, हल्दु, हर्रा, बहेड़ा, अर्जुन, महुआ, इमली, साजा, नीम, कुसुम, अंजन, पीपल, शीशम, सलई, खटांबा, तिंसा, जामुन, रोहन, गुलर, काला शीशम, खमेर, गुराड सहित 31 प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे।
इन स्थलों पर लगाए जाएंगे पौधे
नदी, नाला, तालाब, कूप व ऐसे स्थान जहां पर पानी की व्यवस्था होगी। इन पौधों के लिए स्थानीय स्तर पर बनी खाद्य का ही इस्तेमाल किया जाएगा। 1 मीटर की गहराई में मिट्टी-मुरम वाले स्थानों का होगा चयन
क्या है मियावाकी पद्धति
जापानी वनस्पति-वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञ, डी. अकीरा मियावाकी ने वृक्षारोपण की इस अनोखी विधि की खोज की थी। इससे पद्धति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इस योजना ने घरों के आगे अथवा पीछे खाली पड़े स्थान को छोटे बागानों में बदलकर शहरी वनीकरण की अवधारणा में क्रांति ला दी है। इस पद्घति में देशी प्रजाति के पौधे एक दूसरे के समीप लगाए जाते हैं, जो कम स्थान घेरने के साथ ही अन्य पौधों की वृद्घि में भी सहायक होते हैं। सघनता की वह से ये पौधे सूर्य की रौशनी को धरती पर आने से रोकते हैं, जिससे धरती पर खरपतवार नहीं उग पाता है। तीन वर्षों के पश्चात इन पौधों को देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। पौधे की वृद्घि 10 गुना तेजी से होती है जिसके परिणामस्वरूप पौधा रोपण सामान्य स्थिति से 30 गुना अधिक सघन होता है। जंगलों को पारंपरिक विधि से उगने में लगभग 200 से 300 वर्षों का समय लगता है, जबकि मियावाकी पद्घति से उन्हें केवल 20 से 30 वर्षों में ही उगाया जा सकता है।
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