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    मित्र बनता मलेशिया, नाइक को भारत भेजेगा?

  • September 30, 2020

    – आर.के. सिन्हा

    मोहातिर मोहम्मद के मलेशिया के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद ऐसा लगने लगा है कि मलेशिया अब सीधी पटरी पर आ गया है। या यूँ कहें कि पहले से ज्यादा व्यावहारिक हो गया है। उसने खुलकर भारत विरोध अब लगभग बंद कर दिया है। मलेशिया के नए प्रधानमंत्री मोहिउद्दीन यासीन ज्यादा समझदार लगते हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में दिए अपने भाषण में शायद सोच-समझकर मोहातिर से अलग रुख अपनाते हुए कोई भारत विरोधी बात नहीं की। उनके भाषण का मुख्य फोकस कोविड-19 से दुनिया किस तरह से लड़े, इसी पर रहा जो सकारात्मक सोच का संकेत है।

    मोहिउद्दीन यासीन के पूर्ववर्ती मोहातिर मोहम्मद हर जगह भारत के खिलाफ जहर उगलने से बाज नहीं आते थे। मोहातिर ने जिस तरह कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर बयान दिये थे, वे शर्मनाक थे। उसका भारत ने विरोध भी दर्ज कराया था। भारत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कश्मीर और सीएए उसके सर्वथा आंतरिक मसले हैं और इनपर बोलने का मोहातिर मोहम्मद को कोई अधिकार नहीं। मोहातिर मोहम्मद ढोंगी धर्मगुरू जाकिर नाईक को भी खुला संरक्षण देते थे। अब उसकी भी भारत वापसी हो सकती है ताकि उसपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा सके।

    मोहातिर मोहम्मद एक के बाद एक भारत के खिलाफ बयानबाजी कर यही साबित कर रहे थे कि वे सामान्य मानसिक स्थिति में नहीं हैं। यह बात वैसे किसी को अबतक समझ नहीं आई कि आखिर मोहातिर मोहम्मद, जाकिर नाइक को भारत भेजने में आनाकानी करने से लेकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और नागरिकता संशोधन क़ानून पर भारत के खिलाफ अनावश्यक और अनाधिकृत गलत बयानबाजी क्यों करते जा रहे थे। किसकी सलाह पर वे ऐसा कर रहे थे।

    मोहातिर मोहम्मद ने नागरिकता संशोधन क़ानून की ज़रूरत पर सवाल उठाते हुए कहा था “जब भारत में सब लोग 70 साल से साथ रहते आए हैं, तो इस क़ानून की आवश्यकता ही क्या थी।” उन्होंने यहाँ तक कहा, “लोग इस क़ानून के कारण अपनी जान गँवा रहे हैं।” जबकि ऐसा कुछ था ही नहीं।

    मलेशिया के नए प्रधानमंत्री मोहिउद्दीन यासीन का संयुक्त राष्ट्र में भाषण बेहद नपा-तुला रहा। वे बड़े परिपक्व नेता के रूप में बोले। किसी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से यही अपेक्षा रहती है कि वह संयुक्त राष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण मंच का सकारात्मक सदुपयोग करे। इसी साल मार्च में मोहिउद्दीन मलेशिया के प्रधानमंत्री बने थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही उन्होंने भारत को किसी भी तरह से नाराज करने वाली हरकत नहीं की है। वे एक तरह से डैमेज कंट्रोल में लगे हुए हैं, ताकि उनके देश के भारत के साथ संबंध पहले की तरह सामान्य हो जाएं।

    मोहातिर मोहम्मद को तब भी बहुत तकलीफ हुई थी जब कश्मीर से धारा 370 ख़त्म कर दी गई थी। तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में कहा था कि भारत ने कश्मीर पर क़ब्ज़ा कर रखा है। जब भी भारत अपने किसी भाग को लेकर कोई अहम फैसला लेता था, परेशान मोहातिर मोहम्मद हो जाते थे। वे आंखें मूंदकर पाकिस्तान के साथ बिना सोचे-समझे खड़े दिखाई देते थे। वे इमरान खान के खासमखास मित्र के रूप में उभरे। पर पाकिस्तान में जब शिया मुसलमानों से लेकर अहमदिया और कादियां समाज के साथ हिन्दू, सिख और ईसाईयों का उत्पीड़न होता था तब उनकी जुबान सिल जाती थी।

    मलेशिया के भारतवंशियों को धमकी

    मोहातिर मोहम्मद कह रहे थे, “मैं यह देखकर दुखी हूँ कि जो भारत अपने को सेक्युलर देश होने का दावा करता है, वो कुछ मुसलमानों की नागरिकता छीनने के लिए क़दम उठा रहा है। अगर हम अपने देश में ऐसा करें तो मुझे पता नहीं है कि क्या होगा? हर तरफ अफरातफरी और अस्थिरता होगी और हर कोई प्रभावित होगा।” मोहातिर एक तरह से अपने देश के लगभग 30 लाख भारतवंशियों को चेतावनी भी दे रहे थे। सारी दुनिया को पता है कि उनके देश में बसे भारतवंशी दोयम दर्जे के नागरिक ही समझे जाते हैं। उनके मंदिरों को लगातार तोड़ा जाता रहा है। तब तो मोहातिर साहब बेशर्मी से चुप्पी साधे रहते थे। मजेदार बात यह है कि मोहातिर समेत मलेशिया के लगभग सारे मुसलमानों के पुरखे आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल के पूर्वी तटीय इलाकों के मछुआरे ही थे जिन्हें बाद में जबरन या लालच देकर मुसलमान बनाकर मलेशिया में बसा लिया गया था।

    अब एक उम्मीद ये पैदा हुई है कि प्रधानमंत्री मोहिउद्दीन यासीन अपने देश में बसे भारतवंशियों की स्थिति को सुधारेंगे। मलेशिया के निर्माण में भारतीयों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यदि भारतीय मजदूरों का जाना वहां बंद हो जाये तो मलेशिया का सारा विकास कार्य ठप्प हो जायेगा। उन्हें बदले में सरकार से कोई पारितोषिक नहीं मिलता। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में बड़ी तादाद में मलेशिया से भारतवंशियों की टोली आती है। ये सब अपनी व्यथा सुनाते हैं कि वहां उन्हें किस तरह मूलभूत अधिकारों से भी वंचित किया जाता है। कुछ तो अपनी दर्दभरी दास्तान सुनाते रो पड़ते हैं। इनमें से अधिकतर के पुरखे तमिलनाडु से संबंध रखते हैं। इन्हें करीब 150 साल पहले ब्रिटिश सरकार मलेशिया में मजदूरी के लिए लेकर गई थी। ये अब भी दिल से भारत को बेहद प्रेम करते हैं। मेरा स्वयं का अनुभव है कि मेरे एक तमिल मूल के सिंगापुर के उद्योगपति मित्र की भतीजी कुआलालमपुर किसी कंपनी में नौकरी करने गई। उस कंपनी के मालिक ने उससे जबरन सम्बन्ध बनाया और जब वह गर्भवती हो गई तो इसी शर्त पर अपनी तीसरी पत्नी के रूप में रखने पर राजी हुआ, जब उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया। ऐसी घटनाएँ वहां रोज होती हैं।

    खुराफाती नाइक लौटेगा भारत

    अगर मोहिउद्दीन अपने को इस्लामिक विद्वान बताने वाले ढोंगी और खुराफाती जाकिर नाइक को भारत भेजने का रास्ता साफ कर दें, तो निश्चित रूप से दोनों देशों के संबंधों को नई उर्जा मिलेगी। उसपर भारत में कई गंभीर मुकदमे चल रहे हैं। नाइक को मोहातिर का पूरा संरक्षण हासिल था। नाइक ने कुछ समय पहले पाकिस्तान सरकार को ऐसी सलाह दी थी कि इस्लामाबाद में हिन्दू मंदिर निर्माण की इजाजत नहीं देनी चाहिए। नाइक भारत में भी शांतिपूर्ण सामाजिक वातावरण को विषाक्त करता रहा है। वह एक जहरीला शख्स है। उसके खून में हिन्दू-मुसलमानों के बीच खाई पैदा करना है। ज़ाकिर नाइक पिछले चार साल से भारत से भागकर मलेशिया जाकर बसा हुआ है। उसे मोहातिर मोहम्मद ने शरण दी थी। अब मोहातिर सत्ता से बाहर हो चुके हैं।

    कथित उपदेशक ज़ाकिर नाइक पुत्रजया शहर में रहता है। मलेशिया में रहकर नाइक भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हिन्दू समाज की हर दिन मीन-मेख निकालता रहता है। नाइक ने मलेशिया के हिंदुओं को लेकर भी तमाम घटिया बातें कही हैं। एकबार उसने कहा था कि मलेशिया के हिन्दू, मलेशियाई प्रधानमंत्री मोहम्मद मोहातिर से ज़्यादा मोदी के प्रति समर्पित हैं। अब आप समझ सकते हैं कि कितना नीच किस्म का इँसान है नाइक। नाइक को यह भी लग रहा है कि अब वह बहुत लंबे समय तक मलेशिया में नहीं रह पाएगा क्योंकि वहां उसके संरक्षक मोहातिर मोहम्मद सत्ता से बाहर हो चुके हैं। बहरहाल, अब लगता यही है कि भारत और मलेशिया के संबंध वापस पुरानी पटरी पर लौटने लगेंगे।

    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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