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    बाबा रामदेव और पतंजलि से आखिर क्या गलती हुई, जो माफी भी स्‍वीकार नही कर रहा सुप्रीम कोर्ट

  • April 11, 2024

    नई दिल्‍ली (New Delhi)। योग गुरु बाबा रामदेव(yoga guru baba ramdev) और पतंजलि आयुर्वेद(Patanjali Ayurveda) के एमडी बालकृष्ण (MD Balakrishna)को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)उस समय बड़ा झटका लगा जब कोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने वाले उनके हलफनामे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस मामले की अगली सुनवाई अब 16 अप्रैल को होगी।


    देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर निष्क्रियता के लिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को भी कड़ी फटकार लगाई और कहा कि वह इसे हल्के में नहीं लेगी। वहीं, कानून का उल्लंघन करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उत्तराखंड सरकार की भी आलोचना की है।

    किसने किया था पतंजली पर केस?

    इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। पतंजलि ने एक वितज्ञापन दिया था, जिसमें कहा था कि एलोपैथी, फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा गलतफहमियों से खुद को और देश को बचाएं। बाबा रामदेव ने एलोपैथी को “बेवकूफ और दिवालिया विज्ञान” कहा था। उन्होंने दावा किया था कि एलोपैथिक दवा कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार है। आईएमए ने दावा किया कि पतंजलि के कारण भी लोग वैक्सीन लगवाने से हिचकिचा रहे थे।

    पहली सुनवाई में क्या-क्या हुआ?

    इस मामले पर पहली सुनवाई 21 नवंबर 2023 को हुई थी। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने मौखिक रूप से पतंजलि को यह दावा करने के लिए चेतावनी दी कि उनके उत्पाद बीमारियों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं। इसके अलावा, प्रत्येक उत्पाद पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की धमकी दी थी। पतंजलि का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया ने कोर्ट से कहा था कि किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।

    फिर से क्यों खुला मामला?

    15 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट को झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के निरंतर प्रकाशन के संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अमानुल्लाह को संबोधित एक गुमनाम पत्र मिला। इस पर ध्यान देते हुए 27 फरवरी को जस्टिस हेमा कोहली और अहसन्नुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके एमडी आचार्य बालकृष्ण को पहले के आदेशों का उल्लंघन करने और कंपनी के उत्पादों के साथ बीमारियों के इलाज के बारे में भ्रामक दावों का प्रचार जारी रखने के लिए अवमानना ​​नोटिस जारी किया।

    सरकार से भी इस मामले पर जवाब मांगा गया है। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा: “पूरे देश को चक्कर में डाल दिया गया है। दो साल तक आप इंतजार करते रहे जब ड्रग्स अधिनियम कहता है कि यह निषिद्ध है?” इसके बाद अदालत ने पतंजलि औषधीय उत्पादों के किसी भी अन्य विज्ञापन या ब्रांडिंग पर अगले आदेश तक पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।

    जब भड़क गए सुप्रीम कोर्ट के जज

    अगली सुनवाई के दौरान 19 मार्च को अदालत को बताया गया कि अवमानना नोटिस का जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इसके बाद कोर्ट ने बालकृष्ण और रामदेव की व्यक्तिगत उपस्थिति का आदेश दिया। इसमें उत्तराखंड सरकार को भी एक पक्ष बनाया गया। इसके बाद 21 मार्च को बालकृष्ण ने कथित भ्रामक विज्ञापनों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में माफीनामा दाखिल किया, जिसे कोर्ट ने खारीज कर दिया। इस दौरान अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण की कड़ी आलोचना की और उनकी माफी को जुबानी दिखावा करार दिया।

    इसके बाद 9 अप्रैल को रामदेव और बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगी। रामदेव ने नवंबर 2023 की प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए भी बिना शर्त माफी मांगी। उन्होंने कहा, ”मुझे इस चूक पर गहरा अफसोस है और मैं अदालत को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इसे दोहराया नहीं जाएगा। मैं आदेश के पैरा 3 में दर्ज बयान के उल्लंघन के लिए बिना शर्त माफी मांगता हूं।”

    सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं। हम इसे जानबूझकर किया गया उल्लंघन मानते हैं। अवमाननाकर्ताओं ने हमें हलफनामा भेजना उचित नहीं समझा। उन्होंने पहले इसे मीडिया को भेजा। कल शाम 7:30 बजे तक यह हमारे लिए अपलोड नहीं किया गया था। इसका मतलब यह है कि आप स्पष्ट रूप से प्रचार में विश्वास करते हैं। आप हलफनामे के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं। इसे किसने तैयार किया, मैं हैरान हूं।”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा: “उन सभी अज्ञात लोगों के बारे में क्या जिन्होंने इन बीमारियों को ठीक करने वाली बताई गई पतंजलि दवाओं का सेवन किया है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है? क्या आप किसी सामान्य व्यक्ति के साथ ऐसा कर सकते हैं?”

    कितने साल की हो सकती है सजा?

    आपको बता दें कि औषधि एवं अन्य जादुई उपचार अधिनियम, 1954 (डोमा) के तहत भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने पर पहले अपराध के लिए छह महीने तक की कैद हो सकती है। दूसरी बार अपराध करने पर कारावास की अवधि एक वर्ष तक बढ़ सकती है।

    वहीं, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (सीपीए) की धारा 89 में कहा गया है: “कोई भी निर्माता अगर गलत या भ्रामक विज्ञापन बनाता है तो उसे दो साल का करावास और दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना की राशि को 50 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।

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