बेंगलुरु। भाजपा (BJP) ने मिशन 2024 के लिए अपनी ताकत दक्षिण (south) के पांच राज्यों में झोंकने की तैयारी कर ली है। यही कारण है कि चुनाव जीतने (win the election) के लिए भाजपा ने अपना नया प्लान भी बना लिया है। जिसमें केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र और तमिलनाडु में लोकसभा की 129 सीटे हैं।
खबरों की माने तो सबसे पहले भाजपा के मिशन 2024 में दक्षिण का सारा दारोमदार कर्नाटक पर टिका है, जहां न केवल उसकी एकमात्र सरकार है, बल्कि राज्य की 28 में से 25 लोकसभा सीटें उसके पास हैं। राज्य में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव इसलिए भी उसके लिए महत्वपूर्ण हैं। पार्टी ने सत्ता बरकरार रखने के लिए सामाजिक समीकरणों को साधना शुरू कर दिया है। उसकी नजर राज्य के दोनों प्रभावी माने जाने वाले लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय पर है, जो राज्य की आबादी में 34 फीसदी के करीब हैं और आधी सीटों को प्रभावित करते हैं।
भाजपा की रणनीति में वोक्कालिगा समुदाय सबसे ऊपर है, जिसका उसे सबसे कम समर्थन मिला है। यही वजह है कि उसने बीते वर्षों में दूसरे दलों खासकर कांग्रेस के प्रमुख वोक्कालिगा नेताओं को अपने साथ जोड़ा है। अभी राज्य सरकार के सात मंत्री इसी समुदाय से हैं।
केंद्र में भी इस समुदाय से एक मंत्री है। भाजपा को एक दिक्कत यह भी आ रही है कि जद (एस) यह संकेत भी देती है कि चुनाव बाद वह भाजपा के साथ भी जा सकती है। ऐसे में भाजपा के बड़े नेता लागातार यह बयान दे रहे हैं कि जद (एस) के साथ किसी तरह का समझौता नहीं होगा।
दूवरी ओर राज्य के सामाजिक समीकरणों में लिंगायत लगभग 18 फीसदी, वोक्कालिगा 16 फीसदी, दलित करीब 23 फीसदी, आदिवासी सात फीसदी और मुस्लिम करीब 12 फीसदी हैं। तीन से चार फीसद कुर्वा हैं। राजनीतिक दलों की रणनीति इन समीकरणों के आसपास घूमती रहती है।
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दुरप्पा व मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के चलते लिंगायत समुदाय का समर्थन इस बार भी भाजपा के साथ रह सकता है। भाजपा की कमजोर कड़ी माने जाने वाला वोक्कालिगा समीकरण में दिक्कत यह है कि कांग्रेस के पास कई वोक्कालिगा नेता है। इनमें डीके शिवकुमार प्रमुख हैं, जो मुख्यमंत्री पद के एक दावेदार भी हैं। ऐसे में वोक्कालिगा में सेंध लगाना भाजपा की रणनीति के लिए अहम है। कांग्रेस नेता सिद्धरमैया के चलते अधिकांश कुर्वा समर्थन कांग्रेस को जा सकता है।
दूसरी ओर अगर विपक्ष की बात करें तो विपक्ष की रणनीति भी दलित आदिवासी, मुस्लिम व कुर्वा पर टिकी है, जिनकी आबादी करीब 45 फीसदी है। यही वजह है कि भाजपा सरकार ने दलित व आदिवासी को साधने के लिए आरक्षण में बढ़ोतरी की है। अनुसूचित जाति के लिए 15 से बढ़ाकर 17 फीसदी व अनुसूचित जनजाति के लिए तीन से बढ़ाकर सात फीसदी आरक्षण किया गया है। इन समीकरणों के साथ माहौल भी बेहद अहम है।
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