भोपाल। दस माह बाद मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत तय करने के लिए एक बार फिर कांग्रेस नए साल के पहले ही दिन से मैदानी स्तर पर सक्रिय हो गई है। इस बार भी कांग्रेस ने बीते आमचुनाव की ही तरह अभी से सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करना शुरू कर लिया है। इसके तहत पहला सम्मेलन कमलनाथ द्वारा आज विंध्य अंचल के सतना में किया जा रहा है। इसके बाद दस जनवरी को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में अनुसूचित जाति विभाग का सम्मेलन होगा। दरअसल विंध्य अंचल कांग्रेस के लिए बेहद अहम है। इसकी वजह है बीते आम चुनाव में पार्टी को प्रदेश के इसी अंचल में भारी नुकसान उठाना पड़ा था। शायद यही वजह है कि कमलनाथ द्वारा जातीय समीकरण साधने की पहल इसी अंचल से की जा रही है। यही नहीं इसके लिए मतदान केंद्रवार जानकारी जुटाई जा रही है। क्षेत्रवार प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची भी बनवाई जा रही है, ताकि उनसे प्रदेश पदाधिकारी संपर्क स्थापित कर सकें।
प्रदेश में 64 हजार 100 मतदान केंद्र हैं। इसके तहत प्रदेश कांग्रेस ने सभी वर्गों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए नए प्रकोष्ठ बनाने के साथ मतदान केंद्र स्तर पर समीकरण साधने की कार्ययोजना बनाई है। जिसके तहत केंद्र पर कुल मतदाता, जातिगत समीकरण, प्रभावशाली व्यक्ति, पिछले चुनाव के परिणाम आदि जानकारियां रहेंगी। इसके आधार पर पार्टी मतदान केंद्र स्तर पर संचालित की जाने वाली गतिविधियां तय करेगी और विभिन्न समाजों के अलग- अलग सम्मेलन भी किए जाएंगे। प्रदेश, संभाग और जिला स्तर पर बैठकें और सम्मेलन आयोजित करने का दायित्व अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग को दिया गया है। इसी तरह से पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को सामाजिक संगठनों से तालमेल बनाने की जिम्मेदारी दी गई है।
विंध्य पर फोकस की वजह
विंध्य क्षेत्र में 4 लोकसभा और 30 विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस की स्थिति कई दशक से खराब है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पिछले ढाई दशक के इतिहास में अगर सबसे बेहतर प्रदर्शन देखें तो 1998 में रहा था, जब पार्टी ने सर्वाधिक 15 सीटें जीती थी, इसके बाद 2013 में 11 सीट पर जीत मिली, लेकिन 2018 में कांग्रेस एक बार फिर से 6 सीटों पर सिमट गई, वहीं दूसरी ओर बीजेपी लगातार इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व बढ़ाती गई और इसीलिए अब कांग्रेस को भी पता है कि अगर आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुछ कमाल करना है तो विंध्य में प्रदर्शन सुधारना होगा। अचंल के तहत दो संभाग में 7 जिले आते हैं। रीवा जिले में 8 विधानसभा सीट, सतना जिले में 7 विधानसभा सीट, सीधी जिले में 4 विधानसभा सीट, सिंगरौली जिले में 3 विधानसभा सीट, शहडोल जिले में 3 विधानसभा सीट, अनूपपुर जिले में 3 विधानसभा सीट, और उमरिया जिले में 2 विधानसभा सीट आती हैं।
पिछड़ा वर्ग बाहुल्य है अंचल
विध्ंय अंचल में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं का अधिक प्रभाव है। यही वजह है कि इस वर्ग का सम्मेलन इस अंचल के सतना में किया जा रहा है। सतना में सम्मेलन के पीछे पार्टी का मानना है कि इसका असर महाकौशल अंचल में भी पड़ेगा। इस अंचल में पिछड़ा वर्ग के तहत सर्वाधिक आबादी पटेल समुदाय की है। अंचल के कई भाग उप्र की सीमा से लगे होने की वजह से यहां पर बसपा का भी प्रभाव रहता है।
बनते बिगड़ते समीकरण
इस अंचल में बीते चार सालों में कई बार सीमकरण बनते व बिगड़Þते दिखे हैं। अगर विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस को इस अंचल में बेहद खराब प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। अंचल के तहत आने वाली 30 सीटों में से कांग्रेस को महज छह सीटें ही मिल सकी थीं, जबकि उसके पहले कांग्रेस के पास 12 सीटें थीं। यही नहीं इस क्षेत्र के दो बेहद वरिष्ठ नेता और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और विधानसभा उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह तक को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद हुए एक विस सीट के उपचुनाव में कांग्रेस ने रैंगांव में जीत दर्ज की और उसके बाद हुए निकाय चुनाव में भी कांग्रेस ने रीवा महापौर पद पर 31 साल बाद विजय हासिल की है। विंध्य क्षेत्र के एक सवाल पर खुद कमलनाथ भी मानते हैं कि, उन्होंने भी सबक सीखा है, चुनाव जीतते हैं या हारते हैं, सबक सीखते हैं और इस बार उन्होंने भरोसा जताया है कि विंध्य में ऐतिहासिक जीत होगी।
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