नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बृहस्पतिवार को 13 उन दोषियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है जिन्हें अपराध के वक़्त नाबालिग घोषित किया जा चुका है। पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत ने इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कहा कि इस मामले के तथ्यों को जांच करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इन सभी को अंतरिम जमानत दी जा सकती है। जिसके बाद पीठ ने सभी 13 को अंतरिम जमानत पर छोड़ने का निर्णय लिया।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 13 उन दोषियों को तत्काल जेल से रिहा करने की मांग की गई है क्योंकि किशोर न्याय बोर्ड(जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड) के द्वारा अपराध के वक़्त नाबालिग घोषित किया जा चुका है। ये सभी फिलहाल आगरा सेंट्रल जेल में बंद हैं और उन्हें खूंखार अपराधियों के साथ जेलों में रखा गया है।
वकील ऋषि मल्होत्रा के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया था कि 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर किए जाने के बाद किशोर न्याय बोर्ड को कैदियों की किशोरावस्था से संबंधित आवेदनों का निपटारा करने के निर्देश दिए गए थे। जिसके बाद सभी 13 याचिकाकर्ताओं को अपराध किए जाने के समय किशोर घोषित किया गया था। यानी बोर्ड ने पाया था कि अपराध के समय इन सभी की आयु 18 वर्ष से कम थी।
किशोर न्याय बोर्ड द्वारा फरवरी 2017 से मार्च 2021 के बीच याचिकाकर्ताओं को किशोर घोषित करने के स्पष्ट आदेश के बावजूद इन सभी को रिहा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। साथ ही यह भी ध्यान देने का बात है कि बोर्ड के इन फैसलों को चुनौती भी नहीं दी गई है।
याचिका में कहा गया था कि किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा-26 और धारा-15 के अनुसार ‘कारावास’ की अधिकतम अवधि तीन वर्ष है और इस तरह की कैद जुवेनाइल होम में होनी चाहिए। इस मामले में तो सभी याचिकाकर्ता कट्टर अपराधियों के बीच जेलों में बंद हैं जो किशोर न्याय अधिनियम के उद्देश्य और आशय के पूरी तरह से विपरीत है।
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