मुंबई । 16 साल की लड़की (girl) अपने बीमार पिता (father) को लीवर डोनेट (liver donation) करना चाहती है। नाबालिग के लीवर डोनेशन की अनुमति का मामला फिर अटक गया है। चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान निदेशालय (DMER) के निदेशक की अध्यक्षता वाली राज्य प्राधिकरण समिति ने नाबालिग का आवेदन खारिज कर दिया है। समिति ने कहा है कि उन्हें नहीं पता कि बच्ची अपनी मर्जी से लीवर देना चाहती है या उसके ऊपर दबाव है। अब बच्ची की मां ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अनुमति मांगी है।
समिति ने कहा कि बच्ची के ऊपर भावनात्मक दबाव के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता और यह पुष्टि नहीं की जा सकती कि उसने अपनी स्वतंत्र सहमति से पिता को लीवर देने का फैसला लिया है। लड़की ने बुधवार को अपनी मां के जरिए बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दी है। इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति ए के मेनन और न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ 13 मई को इस पर सुनवाई करेगी।
शराबी होने के कारण खराब हुई लीवर
किशोरी के वकील तपन थट्टे ने इमरजेंसी का हवाला देते हुए राज्य से उसे लीवर डोनेट करने की मंजूरी देने का आदेश मांगा है। स्वास्थ्य सेवाओं के संयुक्त निदेशक, डीएचएस मुंबई सहित आठ सदस्यों वाले पैनल ने कहा कि लड़की का पिता को शराब पीने की लत थी, बहुत ज्यादा शराब पीने के कारण उनकी लीवर खराब हो गई। ट्रांसप्लांट के बाद वह ठीक हो जाएंगे इसके कोई दस्तावेज नहीं हैं।
‘लीवर ट्रांसप्लांट के जटिलताएं नहीं जानते माता-पिता और बेटी’
समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि बच्ची की मां, डोनर बेटी और पिता, जिन्हें लीवर दी जानी है तीनों को इस सर्जरी की जोखिम और जटिलताओं के बारे में नहीं पता है। समिति ने कहा कि उसे लगता है कि मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम, 2014 के नियम 5 (जी) के प्रावधानों को पूरा नहीं किया गया है। नियम में कहा गया है कि जीवित नाबालिगों को अपने ऑर्गन या लीवर देने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
एकलौती संतान है बच्ची
पैनल ने आगे कहा कि डोनर बच्ची अपने पैरंट्स की एकमात्र संतान है। मां का बांझपन का इलाज चला और छह साल बाद उन्होंने गर्भ धारण किया। 6 मई को, जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और माधव जामदार की एचसी बेंच ने बताया कि मुंबई के एक अस्पताल ने लड़की की याचिका को खारिज कर दिया था क्योंकि वह नाबालिग थी। राज्य स्तरीय समिति को मामले के आधार पर उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया था। कमेटी ने मंगलवार को डोनर गर्ल और उसके चाचा का इंटरव्यू लिया।
नियम साफ नहीं होने से फंसा पेंच
अधिनियम नाबालिगों को सक्षम अंग दाताओं के रूप में नहीं मानता है। लड़की के वकील ने बताया कि एक अपवाद को मजबूर करने वाले कारणों में कहा गया है कि राज्य नाबालिगों को इस तरह के दान को मंजूरी दे सकता है, लेकिन कोई उचित नियम निर्धारित नहीं किया गया है। एचसी को बताया गया था कि सभी करीबी रिश्तेदार उसके लिए एक मैच नहीं पाए गए।
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