विशेष संवाददाता
इंदौर। वन और पर्यावरण (Forests and Environment) जैसे महत्वपूर्ण विभाग से मंत्री नागरसिंह चौहान (Minister Nagarsingh Chauhan) को बेदखल किए जाने का निर्णय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (Chief Minister Dr. Mohan Yadav) ने दिल्ली दरबार को भरोसे में लेने के बाद ही लिया है। उन्होंने संघ के प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व को भी इससे अवगत करवा दिया था।
चौहान से जुड़े विभागों को लेकर लगातार शिकायत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पिछले चार महीने से उनके कामकाज पर नजर रखे हुए थे। मुख्यमंत्री के ध्यान में यह बात लाई गई थी कि विधिवत नियुक्ति न होने के बावजूद उनके ओएसडी की भूमिका निभा रहे रणजीतसिंह चौहान तो मनमानी कर ही रहे हैं, साथ ही वन और पर्यावरण विभाग के कामकाज पर व्यापमं मामले से जुड़े सुधीर शर्मा और उनके भाई चुन्नू शर्मा का पूरा नियंत्रण हो गया है। वह जैसा चाहते हैं वैसा ही इन दोनों विभागों में हो पाता है। इन दोनों विभाग से संबंधित कुछ विवादास्पद आदेश भी मुख्यमंत्री के ध्यान में लाए गए थे। गौरतलब है कि नागरसिंह अपने स्टाफ में ओएसडी के रूप में चौहान की नियुक्ति चाहते थे, लेकिन उनके पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए इसकी अनुमति नहीं मिल पाई थी। चौहान पूर्व में कांग्रेस सरकार के दौर में तत्कालीन वनमंत्री उमंग सिंगार के स्टाफ में भी काम कर चुके हैं। वन विभाग से संबंधित सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से जुड़े मामलों में अनापत्ति के नाम पर तगड़ा लेन-देन और इससे राज्य का हित प्रभावित होने का मामला भी चौहान के लिए परेशानी का कारण बना। शेष पेज 15 पर
शिकायतों का पुलिंदा बनाकर छीना विभाग, आदिवासी नेता के खिलाफ था शिकायतों का अंबार
चौहान के पर्यावरण मंत्रालय संभालने के बाद प्रदूषण निवारण मंडल से जुड़ी अनुमतियों को लेकर एक गिरोह सक्रिय हो गया था। बिना लेनदेन के इन संस्थाओं से किसी तरह की एनओसी जारी नहीं हो पाती थी। खनन से जुड़े कुछ कारोबारी के साथ ही कुछ उद्योगपतियों ने भी इस मामले की जानकारी मुख्यमंत्री तक पहुंचाई थी। सूत्रों को मुताबिक पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री दिल्ली गए थे, तब उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित पार्टी के कुछ अन्य नेताओं को इसकी जानकारी दी थी और वहां से हरी झंडी मिलने के बाद ही वन और पर्यावरण विभाग चौहान से वापस लेने का निर्णय लिया गया।
विद्यार्थी परिषद का कार्यक्रम और संघ की नाराजगी
पिछले दिनों हुए विद्यार्थी परिषद के कार्यक्रम में चौहान की भूमिका के बाद संघ का प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व भी उनसे खुश नहीं था। कार्यक्रम के कर्ताधर्ताओं ने संघ पदाधिकारी तक यह बात पहुंचाई थी कि चौहान ने बार-बार आग्रह के बावजूद भी अपेक्षा के मुताबिक मदद नहीं की।
अवैध शराब की गुजरात लाइन और नेताओं की टकराहट
आलीराजपुर और झाबुआ के रास्ते गुजरात से होने वाला अवैध शराब के कारोबार को लेकर नेताओं में टकराहट को भी नागर सिंह चौहान से वन और पर्यावरण मंत्रालय वापस लिए जाने का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। सालों से यह होता आ रहा है कि मध्यप्रदेश से गुजरात को होने वाली अवैध शराब के कारोबार में आलीराजपुर और झाबुआ जिले के नेताओं की अच्छी खासी दखल रहती है। इन जिलों के शराब ठेकों पर भी इन नेताओं का नियंत्रण रहता है।
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