अग्निबाण के 47 साल के सफर के दौरान मैं भी उम्र में 47 साल का हो गया हूं। जिस उम्र में नौकरी-धंधा क्या होता है, ठीक से समझ नहीं पाता था, समझ लो उसी उम्र में अग्निबाण की तरुण अवस्था से दोस्ती की और उसी के पीछे-पीछे, उसकी पदचाप पर चलकर आज इस मुकाम पर पहुंचा हूं। थोड़ी देर के लिए अगर पुरानी यादों में जाता हूं तो 24 साल पुरानी यादें ताजा हो उठती हैं, जब मैं अग्निबाण परिवार का हिस्सा नहीं था। लगता है कि कल ही की बात है, जब मैं भी युवावस्था में कुछ ऐसा करना चाहता था, जो अलग हटकर हो।
अग्निबाण में जब आज का विचार कॉलम आता था, मैं उसमें से अच्छे विचार काटकर रखता था। उसी को पढ़ने के दौरान मुझे एक विज्ञापन दिखा कि अखबार में एक प्रूफ रीडर की आवश्यकता है। पढ़ना-लिखना तो अपन जानते ही थे। ग्रेजुएशन की तैयारी थी और शुरू से शिक्षा जगत से जुड़े रहने और मामाजी के स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ भाषाई पकड़ की समझ भी थी। बस फिर क्या था, साइकिल चलाते हुए पहुंच गए अग्निबाण के राजबाड़ा ऑफिस। वहां अपना परिचय दिया और बताया कि किसी अखबार के साथ काम करना है। हालांकि इसके पहले मैं अपना भाग्य एसडीए टाइम्स और चेतना जैसे अखबार में डाक की टेबल पर आजमा चुका था, लेकिन तब उतनी गंभीरता नहीं थी कि अखबार लाइन में ही काम करना है। अनुभव के आधार पर इन अखबारों में दो-चार महीने किया जाने वाला काम था। अग्निबाण में मेरा कॅरियर लिखा था और ईश्वर ने उसे तराशने के लिए बड़े भैया, यानी राजेशजी चेलावत को चुना था। शुरुआत हुई अखबार की पढ़ाई, यानी प्रूफ रीडिंग से। यहां एक बात का और जिक्र करना चाहूंगा कि इंदौर में ऐसे चंद लोग ही मौजूद हैं, जो व्यक्ति की काबिलियत को पहली ही बार में पहचान जाते हैं। उनमें से एक हमारे बड़े भैया चेलावतजी भी हैं। आज भी जब संस्थान में काम के लिए कोई नया व्यक्ति आता है तो मानो वे उसे पढ़ लेते हैं। प्रूफ रीडिंग थोड़े समय की। लिखने का शौक था और उस शौक को यहां जाहिर करने का मौका मिल गया।
अखबार के काम के बाद राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाएं और लोकल मैग्जीन को पढ़ना, जो काम का हो उसे एक डायरी में लिखकर रखना। उस समय गूगल नहीं होता था कि एक सवाल पूछो और उसके हजारों जवाब आ जाते थे। इन्हीं किताबों का सहारा था। आर्टिकल बड़े भैया को अच्छे लगे। अखबार में उन्हें सम्मान भी मिला और उसके बाद शुरू हुई फील्ड रिपोर्टिंग। शुरुआत की कला समीक्षक से। शाम के कार्यक्रमों में जाना और उसकी अपने हिसाब से समीक्षा लिखना एक टेढ़ी खीर था। शहर में तब गिनती के आयोजन देवलालीकर कला वीथिका, रवींद्र नाट्यगृह, अभिनव कला समाज और जाल सभागृह में होते थे। समीक्षा भी ऐसी कि आयोजक झट से पहचान जाते थे कि अग्निबाण वाला आया है, देखना कहीं कोई गड़बड़ न कर बैठना। तब की रिपोर्टिंग का एक अलग मजा था। उसे शब्दों में लिखने को मैं इंजॉय करता था। 2008 में पहली बार राजनीतिक रिपोर्टिंग के लिए बापनाजी ने महू भेजा, जहां से कैलाश विजयवर्गीय चुनाव लड़ रहे थे। इसके पहले राजनीति के छोटे-मोटे आयोजनों में जाने का मौका भी मिला, लेकिन ये बड़ा टास्क था, जो बड़े भैया और बापू के मार्गदर्शन में पूरा किया।
बड़े भैया जीवन को नया आयाम सिखाने वाले गुरु तो थे ही, बापू बन गए पत्रकारिता के गुरु। हां, इस बीच फिल्म समीक्षा भी लिखी और अपना मुकाम मुंबई तक बनाया। कई बड़े धारावाहिक, फिल्मों की लांचिंग पार्टी में मुंबई, दिल्ली बुलाया जाने लगा तो लगा कि वास्तव में पत्रकारिता करने का अपना एक अलग ही मजा है। बड़े भैया ने जो-जो मौका दिया, उसे बापू के मार्गदर्शन में निभाता चला गया। काम के प्रति जवाबदारी क्या होती है, ये भी उन्होंने ही सिखाया। आज 24 साल हो गए हैं अग्निबाण के साथ, लेकिन जैसे-जैसे पुरानी स्मृति के द्वार खुलते जाते हैं, वैसे-वैसे अनुभव और बढ़ता जाता है। बहुत लंबा वक्त होता है अपने आपको पूरी तरह से इस कवच में ढालने के लिए। यह स्मृति केवल इसीलिए कि अग्निबाण ने आज मेरे जैसे कइयों को मुकाम दिया है, उन्हें नाम दिया है और शहर में पहचान भी। कई तो देश में अपना नाम कमा रहे हैं। अग्निबाण आज दुकानों पर ही नहीं, घरों में भी दोपहर के वक्त पढ़ा जाने वाला सर्वाधिक प्रसार संख्या वाला अखबार हो गया है। अब अग्निबाण ने अगले पायदान पर वेब पोर्टल और न्यूज चैनल के रूप में अपने आपको ढालने का काम शुरू किया है, जिसे अखबार की तीसरी पीढ़ी ईशिता और अक्षत चेलावत बखूबी संभाल रहे हैं। अग्निबाण परिवार भी इस तीसरी पीढ़ी के साथ खुले आसमान में कुलांचे भरने को आतुर है। अग्निबाण भले ही कितना आधुनिक क्यों न हो जाए, उसकी आत्मा पहले की तरह अपने पाठकों पर ही निर्भर रहेगी और जैसा-जैसा पाठक चाहेंगे, समय-समय पर वैसे परिवर्तन होते रहेंगे। इसीलिए तो है मेरा अग्निबाण, आपका अग्निबाण और हम सबका अग्निबाण… आज अग्निबाण की 48वीं सालगिरह पर आप सभी को बधाई… संजीव मालवीय
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