उज्जैन। बिनोद बिमल के मजदूरों का पैसा दिसंबर-जनवरी में दिलाने की बात की गई थी लेकिन ऐसा लग रहा है कि 4 हजार से अधिक श्रमिकों का करीब 87 करोड़ रुपया अब कब मिलेगा, अब कह नहीं सकते। शासन द्वारा जमीन बेचकर पैसा देने की कार्रवाई शुरू की गई थी जो कि अभी भी अधर में लटकी हुई है।कोरोना की दूसरी लहर से पहले बिनोद मिल की जमीन का एक बड़ा हिस्सा गुजरात के एक व्यक्ति को 72 करोड़ से ज्यादा की राशि में बेचा गया था। उस दौरान जनप्रतिनिधियों की ओर दावा किया गया था कि बेची गई जमीन की राशि जल्द ही बिनोद विमल मिल के मजदूरों को रूके हुए भुगतान के रूप में दे दी जाएगी। यहाँ तक कहा गया था कि यह राशि सीधे संबंधित मजदूरों के खाते में जमा करा दी जाएगी। इस बात को अब लगभग 4 महीने का समय बीत चुका है। बावजूद इसके मजदूरों के भुगतान की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। उल्लेखनीय है कि बिनोद विमल मिल में काम करने वाले करीब 4 हजार श्रमिकों का 87 करोड़ से ज्यादा का रुपए का भुगतान पिछले दो दशकों से अटका हुआ है। मिल बंद होने के बाद से ही बकाया भुगतान को लेकर मजदूरों ने लंबा संघर्ष किया। मामला जिला न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा था। सुप्रीम कोर्ट से भी कुछ साल पहले मिल की जमीन बेचकर सरकार को मजदूरों के बकाया भुगतान करने के निर्देश मिले थे। इन सबके बीच पिछले साल बिनोद विमल मिल की जमीन को बेचकर उनका भुगतान करने की कवायद शुरु हुई थी। कोरोना की दूसरी लहर के पहले जनवरी-फरवरी में मिल की जमीन बेचने की प्रक्रिया शुरु हुई थी। उस दौरान जिले के सांसद और मंत्रियों से लेकर विपक्ष के कई नेताओं ने मजदूरों का बकाया भुगतान जल्द करने की मांग उठाई थी तथा सत्तापक्ष की ओर से तो दावे कर दिए गए थे कि जमीन का एक भाग बिक गया है और जल्द ही बकाया राशि मजदूरों के खातों में ट्रांसफर होना शुरु हो जाएगी। मजदूरों का एक भाग बिक भी गया बावजूद इसके अभी तक किसी भी मजदूर के खाते में शासन ने एक रुपया भी नहीं डाला है। जल्द भुगतान का दावा करने वाले जनप्रतिनिधि भी अब मजदूरों के इस मामले को लेकर गंभीर नहीं रह गए हैं। दो माह पहले जल्द से जल्द मजदूरों का पैसा दिलाने की बात सांसद अनिल फिरोजिया ने भी कही थी लेकिन मजदूरों का कहना है कि इस दिशा में अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है।
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