उज्जैन। लंबी लड़ाई के बाद बिनोद बिमल मिल के मजदूरों को उनके बकाया भुगतान की लगभग 84 करोड़ की राशि शासन ने कोर्ट में जमा करा दी है और पात्र मजदूरों से मजदूर संघ कार्यालय में आवेदन फार्म जमा कराए जा रहे हैं। यहाँ मजदूरों से आवेदन के साथ उनकी कुल बकाया राशि का 6 प्रतिशत सहयोग राशि के रूप में लिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि करीब 3 दशक पहले शहर की कई कपड़ा मिलें शासन ने बंद कर दी थी और हजारों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। इतना ही नहीं बंद मिलों के मजदूरों को उनका बकाया भुगतान और पीएफ की राशि तक नहीं दी गई थी। इसके लिए मजदूरों ने लंबे समय तक संघर्ष किया और जिला कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपने हक की कानूनी लड़ाई लड़ी। कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने शासन को मजदूरों के भुगतान के आदेश जारी किए।
इसके बावजूद कई सालों तक मिल मजदूरों का भुगतान नहीं किया गया। अब जाकर शासन ने विनोद विमल मिल के लगभग 4 हजार 300 श्रमिकों के बकाया भुगतान की करीब 84 करोड़ की राशि कोर्ट में जमा कराई है। यह राशि पात्र मजदूरों को दी जाएगी। इसके लिए कोयला फाटक स्थित मिल मजदूर संगठन इंटक के कार्यालय में आवेदन फार्म जमा कराए जा रहे हैं। यहाँ सुबह से शाम तक मजदूर और उनके परिजन जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन जमा करा रहे हैं। यहाँ बकाया राशि के भुगतान हेतु आ रहे मजदूरों ने बताया कि मजदूर संगठन कार्यालय पर फार्म जमा करने के साथ ही संबंधित मजदूर की बकाया भुगतान की राशि का 6 प्रतिशत जोड़कर राशि ली जा रही है। अर्थात अगर किसी मजदूर का 1 लाख रुपया बकाया है तो उसे आवेदन के साथ 6 हजार रुपए जमा कराने पड़ रहे हैं। यहाँ मजदूरों को 1 लाख से लेकर 4 लाख तक की बकाया राशि का भुगतान होना है। ऐसे में जिन मजूदरों की 4 लाख की बकाया राशि है उनसे 24 हजार रुपए सहयोग राशि के रूप में लिए जा रहे हैं। मजदूरों को कार्यालय से बताया जा रहा है कि यह राशि बकाया भुगतान के लिए अब तक लड़ी गई लड़ाई के एवज में ली जा रही है। इसमें वकीलों की फीस, मजदूर संगठन कार्यालय का संचालन और उसका खर्च आदि इसमें शामिल हैं। मजदूरों का कहना है कि इसके पूर्व भी लंबे समय से कोर्ट केस और अन्य के नाम पर उन्हांने समय-समय पर मजदूर संघ कार्यालय में राशि जमा कराई है।
5 करोड़ के पार जा रहा आंकड़ा
मजदूरों का कहना है कि विनोद विमल मिल के 4 हजार 300 के लगभग श्रमिकों को 84 करोड़ का भुगतान होना है। ऐसे में इस राशि का 6 प्रतिशत की दर से आंकलन किया जाए तो यह राशि 5 करोड़ से अधिक हो रही है। कुल मिलाकर मजदूरों को सालों बाद उनके हक की राशि लेने के लिए भी अब सभी को मिल जुलकर 5 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च करनी पड़ रही है।
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