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    गठबंधन के बिना चुनाव लड़ने का फैसला मायावती के लिए जोखिम भरा कदम साबित न हो जाए?

  • January 16, 2024

    नई दिल्ली: बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव को लेकर गठंबधन पर अपना नजरिया साफ कर दिया है. मायावती ने कहा कि बसपा 2024 में किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगी बल्कि अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगी. उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन की बातचीत की सारी अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है, जो INDIA गठबंधन को बड़ा झटका माना जा रहा है. गठबंधन के सियासी दौर में मायावती का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला बसपा के लिए कहीं जोखिम भरा कदम साबित न हो जाए?

    यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष मायावती ने सोमवार को 68वेंजन्मदिन के मौके पर ‘मेरे संघर्षमय जीवन व बीएसपी मूवमेंट का सफरनामा, भाग-19वें पुस्तक लॉन्च किया. मायावती ने गठबंधन के सारे कयासों पर विराम लगा दिया है और कहा कि हमने यूपी में अकेले चुनाव लड़कर सरकार बनाई है, उसी अनुभव के आधार पर हम आम चुनाव में भी अकेले लड़ेंगे. गठबंधन को लेकर हमारा और पार्टी का अनुभव यही रहा है कि गठबंधन से हमें फायदा कम और नुकसान ज़्यादा होता है. गठबंधन करने से बसपा का वोट प्रतिशत भी घट जाता है जबकि दूसरी पार्टियों को लाभ मिलता है. इसी वजह से देश में ज्यादातर पार्टियां बीएसपी के साथ गठबंधन करना चाहती हैं, लेकिन पार्टी ने सोच-विचार करके तय किया है कि बसपा को अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए.

    हालांकि, मायावती ने कहा कि चुनाव नतीजे के बाद गठबंधन पर विचार किया जा सकता है. अगर संभव हुआ तो चुनाव के बाद बनने वाली केंद्र सरकार को समर्थन दिया जा सकता है, लेकिन उसके लिए मुफ्त में समर्थन नहीं करेगी बल्कि उचित भागेदारी को साथ शामिल होगी. उन्होंने अपने संदेश में साफ कर दिया कि केंद्र में जिस दल की सरकार बनेगी, बसपा अपनी शर्तों पर उसे समर्थन देगी. इस तरह उन्होंने विरोधी दलों को यह भी आभास करा दिया कि उनका वोट बैंक भले की कम हुआ हो, लेकिन दलित बसपा को ही अपनी पार्टी मानते हैं. बसपा प्रमुख ने अपने कैडर में सेंधमारी की आशंका की वजह से विरोधी दलों की साजिश से गुमराह नहीं होने की को लेकर आगाह भी किया.

    मायावती के इंकार से विपक्ष को झटका

    मायावती के गठबंधन में शामिल होने से साफ इंकार करने पर विपक्षी दलों के INDIA गठजोड़ के लिए तगड़ा झटका लगा है. इसकी वजह यह है कि बसपा के बिना गठबंधन को यूपी में सफलता मिलना आसान नहीं होगा, क्योंकि सपा, कांग्रेस और आरएलडी के मिलने के बाद भी इतना वोटबैंक नहीं हो रहा है, जिससे बीजेपी के विजयरथ को यूपी में रोका जा सके. बीजेपी 2019 में सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद यूपी में 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. ऐसे में INDIA गठबंधन में जो दल अभी हिस्सा हैं, उनके साथ आने से पर कोई नया वोट जुड़ता दिख नहीं रहा है. मायावती के साथ नहीं होने पर दलित वोटबैंक नहीं जुड़ पाएगा, जिसके लिए कांग्रेस कोशिश कर रही है.

    राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मायावती के बयान से बीजेपी को काफी राहत मिली है, क्योंकि बसपा के साथ आने से विपक्षी दलों का वोट एकजुट रहता और उसमें बिखराव होने की संभावना नहीं दिख रही. राम मंदिर की लहर में बीजेपी को 2024 के चुनाव में विरोधी दलों बिना मायावती किस तरह से राजनीतिक चुनौती दे पाएंगे, लेकिन मायावती अगर साथ होती तो बीजेपी का भले ही सफाया न हो पाता, लेकिन दिक्कत जरूर खड़ी हो सकती थी. बसपा का दलित वोटबैंक यूपी ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों में भी है. दलित वोट विपक्षी के साथ एकजुट होने से बीजेपी के लिए चिंता पैदा कर सकता था.


    बसपा के लिए कहीं महंगा न पड़ जाए

    मायावती के गठबंधन न करने से विपक्ष के लिए भले झटका माना जा रहा हो, लेकिन बसपा के लिए भी यह जोखिम भरा कदम है. 2012 के बाद से हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो बसपा का प्रदर्शन दिन ब दिन खराब होता जा रहा है. साल 2012, 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था. 2007 में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली बसपा को लगातार सियासी ग्राफ गिरता जा रहा जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा महज महज 1 सीटें जीत सकी थी और पार्टी का वोट गिरकर 13 फीसदी पर पहुंच गया है.

    बसपा का सियासी आधार उत्तर प्रदेश से लेकर अलग-अलग राज्यों तक में खिसकता जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव और 2012, 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को अकेले मैदान में उतरना महंगा पड़ चुका है. 2014 में बसपा अपना खाता नहीं खोल सकी थी. बसपा अपने सियासी इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 2019 में गठबंधन करने का फायदा बसपा को मिला था और 10 सांसद जीतने में कामयाब रहे थे. इसके बाद भी बसपा का अकेले चुनावी मैदान में उतरने जा रही है, जो मायावती के लिए सियासी तौर पर मंहगा पड़ सकता है.

    दो धुर्वों में बंटी है UP की राजनीति

    मौजूदा दौर में देश और उत्तर प्रदेश की राजनीति दो धुर्वों में बंटी हुई है. इतना ही नहीं, वोटिंग पैटर्न भी बदल गया है और मतदाता दो हिस्सों में बंट गए हैं. लोकसभा हो या फिर विधानसभा चुनाव में देखा गया है कि मतदाताओं का एक धड़ा वो है, जो पीएम मोदी या बीजेपी को सत्ता में बनाए रखना चाहता है जबकि मतदाताओं का दूसरा धड़ा है, जो हरहाल में बीजेपी को सत्ता से बाहर करना चाहता है. ऐसे में मतदाता किसी तीसरे विकल्प को नहीं चुन रहा है. दिल्ली से लेकर कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न ऐसे ही दिखें है.

    2024 का लोकसभा चुनाव भी इसी वोटिंग पैटर्न पर होनी की संभावना है. इसके चलते ही विपक्ष के 28 दलों ने मिलकर INDIA गठबंधन का गठन किया है ताकि वोटर्स में बिखराव न हो सके. सपा से लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तक एक साथ आ गई हैं. इस तरह माना जा रहा है कि 2024 का चुनाव बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन और कांग्रेस के अगुवाई वाले विपक्षी गठबंधन INDIA के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है. ऐसे में मायावती का अकेले चुनाव लड़ना जोखिम भरा कदम हो सकता है. यूपी के विधानसभा चुनाव में भी बसपा को इसी खामियाजा भुगतना पड़ा है और अब लोकसभा में भी इसी राह पर मायावती अपने कदम बढ़ा रही हैं.

    बसपा पर बीजेपी की बी-टीम का आरोप

    मायावती के 2024 में अकेले चुनाव लड़ने के फैसला के बाद बीएसपी को बीजेपी की बी-टीम होने के आरोप मढ़ने का विपक्ष के हाथों में मौका लग गया है. 2014 के बाद से मायावती बहुत ज्यादा बीजेपी पर आक्रमक नहीं रही, जिसके चलते विपक्ष ये आरोप लगाता रहा. ऐसे में मायावती अगर विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा बनने से बीजेपी की बी-टीम का नैरेटिव को तोड़ सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं कर सकीं. अब अकेले चुनाव लड़ने के मायावती के फैसले से विपक्ष इसे सियासी मुद्दा बना सकता है. खासकर सपा और कांग्रेस यह नैरेटिव अब तेजी से गढ़ेंगी ताकि बीजेपी विरोधी वोट को अपने साथ जोड़ सकें. हालांकि, सियासी जानकारों की मानें तो मायावती खुद को किसी भी अन्य दल के नेता से कमतर मानकर समझौता नहीं करेंगी. यदि कांग्रेस व अन्य दल मायावती को सम्मानजनक प्रस्ताव देते अथवा उनको अपना नेता मानने को तैयार हो जाते, तो शायद बिगड़ी हुई बात बन जाती. फिलहाल तो अब बसपा का साथ मिलना कांग्रेस और सपा के लिए दूर की कौड़ी बन गया है.

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