अयोध्या में पांच अगस्त को श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन में देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां इकट्ठा होंगी। इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने श्रीराम मंदिर आंदोलन के योद्धा मेरठ के 101 वर्षीय रणजीत सिंह को भी बुलावा भेजा है। अधिक आयु और कोरोना आपदा के कारण परिजन उन्हें अयोध्या भेजने से बच रहे हैं।
अयोध्या में पांच अगस्त को श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन की बात सुनते ही मेरठ के 101 वर्ष के रणजीत सिंह की आंखें चमक उठती हैं और वह जोर से श्रीराम का नारा लगाते हैं। श्रीराम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर वाले रणजीत सिंह धीमी आवाज में बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनके मित्र रहे। 1990 से लेकर 1992 तक उन्हें तीन बार जेल जाना पड़ा।
चंपत राय ने खुद फोन पर किया आमंत्रित
रणजीत सिंह के परिजन बताते हैं कि श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव और विश्व हिंदू परिषद के नेता चंपत राय श्रीराम मंदिर आंदोलन में उनके साथ रहे। आंदोलन के समय रणजीत सिंह विहिप के मेरठ प्रांत के उपाध्यक्ष थे और इस समय विहिप के प्रांत संरक्षक है। श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन में शामिल होने के लिए खुद चंपत राय ने उन्हें फोन करके आमंत्रित किया है। कोरोना आपदा और अधिक आयु होने के कारण परिजन उन्हें अयोध्या भेजने से बच रहे हैं।
बिना बताए चले जाते थे अयोध्या
श्रीराम के प्रति रणजीत सिंह की आस्था इतनी गहरी है कि वह 15 साल पहले 86 वर्ष की आयु में भी परिजनों को बिना बताए अयोध्या के लिए चले जाते थे। विहिप के वरिष्ठ नेता उनका ट्रेन का टिकट खुद ही करवा दिया करते थे। परिजनों को बाद में इसका पता चलता था।
1942 से पहले कांग्रेसी थे रणजीत सिंह
बुजुर्ग रणजीत सिंह खुद के आरएसएस से जुड़ाव का एक रोचक किस्सा बताते हैं। उन्होंने बताया कि 1942 में वह कांग्रेस से जुड़े थे और एक बार जेल भी गए थे। एक मैदान में आरएसएस की शाखा लग रही थी तो वह वहां कांग्रेस के नारे लगाने लगे। संघ के स्वयंसेवक उनकी ओर आए तो डरकर वह साइकिल से भागने लगे। एक पेड़ से टकराने के बाद जब वह घायल हो गए तो संघ के स्वयंसेवक ही उन्हें डाॅक्टर के पास लेकर गए। इसके बाद एक महीने तक ठीक होने तक प्रतिदिन स्वयंसेवक उनका हालचाल पूछने आते रहे। इससे उनकी सोच बदल गई और वह आरएसएस के स्वयंसेवक बन गए।
1972 में राजनीति में आए और 1977 में छोड़ दी
रणजीत सिंह को 1972 में जनसंघ के वरिष्ठ नेता मोहनलाल कपूर के माध्यम से सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया। आपातकाल के समय वह जनसंघ के जिला कोषाध्यक्ष और ब्रह्मपाल सिंह जिलाध्यक्ष थे। आपातकाल लगते ही पुलिस उनके पीछे लग गई और वह बचते रहे। बाद में सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार हुए। आपातकाल समाप्त होने पर जनता पार्टी की सरकार बनी तो सक्रिय राजनीति छोड़ दी। इसके बाद कैंट में एसडी सदर इंटर काॅलेज की स्थापना कराई और वहां शिक्षक बन गए।
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