पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम (Nandigram) सबसे खास ही नहीं, बल्कि वो सीट बन गया है, जहां सियासी पारा चरम पर है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस सीट से पहले उनके ही मंत्री रहे लेकिन अब भाजपा के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी (Mamata Banerjee vs Suvendu Adhikari) के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। यहां बड़े-बड़े जुलूस हो रहे हैं, केंद्र के नेता पहुंच रहे हैं, एक तरफ टीएमसी ‘खेला होबे’ (Khela Hobe) के नारे लगा रही है, तो दूसरी तरफ, ‘जय श्री राम’ गूंज रहा है… इसी शोर में ऑटो से या पैदल आने वाली एक युवा महिला एक मुद्दे को ज़ोर से उठाती है, ‘रोज़गार’ (Employment)।
अब सवाल यह है कि क्या यह युवा नेता नंदीग्राम सीट पर साफ तौर पर दिख रहे आमने-सामने के मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकेगी? लेफ्ट और कांग्रेस के बीच बंगाल चुनाव को लेकर जो गठबंधन हुआ है, उसने नंदीग्राम जैसी हाई प्रोफाइल सीट पर 36 वर्षीय मीनाक्षी मुखर्जी को टिकट देकर दिग्गजों के सामने खड़ा कर दिया है।
कौन हैं सुर्खियां बटोर रहीं मीनाक्षी?
राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल करने वाली मीनाक्षी अपने यूनिवर्सिटी के दिनों से ही सीपीएम की स्टूडेंट विंग एसएफआई के साथ जुड़ी रही थीं। मीनाक्षी को टिकट देने का मतलब यह भी समझा जा रहा है कि लेफ्ट व कांग्रेस का गठबंधन अपने चुनाव प्रचार में युवा चेहरों को शामिल करके एक ताज़गी की लहर भी फूंकना चाह रहा था।
पश्चिम बर्दवान ज़िले के छलबलपुर गांव से ताल्लुक रखने वाली मीनाक्षी को 2008 में सीपीएम की युवा विंग DYFI में शामिल किया गया था। आग उगलने वाले भाषण देने, बेहतरीन ढंग से बात करने और पार्टी की वफादार एक्टिविस्ट के तौर पर पहचान बनाने वाली मीनाक्षी ने DYFI के भीतर काफी तेज़ी से छवि बनाई और वह 2018 में इस विंग की राज्य प्रमुख बन गईं।
पूरे प्रदेश में लेफ्ट ने जिन विरोध प्रदर्शनों की अगुआई की या जिनके साथ जुड़ाव बनाया, उनमें युवा चेहरे के तौर पर DYFI के राज्य सचिव शायनदीप मित्रा के साथ मुखर्जी का चेहरा अहम रहा। टिकट मिलने के बाद उत्साहित दिख रही मीनाक्षी ने मीडिया के सामने अपनी उम्मीदवारी को कुछ इस तरह बयान किया :
माना कि ये हाई प्रोफाइल सीट है, लेकिन सच तो यह है कि यहां से वो लोग चुनाव मैदान में हैं, जिन्होंने पिछले कुछ सालों में कोई काम नहीं किया है। मेरी उम्मीदवारी सिर्फ इसी नहीं, बल्कि राज्य की सभी 294 सीटों के लिए साफ संदेश है कि युवा को रोज़गार की ज़रूरत है, राज्य को इनवेस्टमेंट की और लोगों को गरीबी से निजात की। यह चुनाव मुद्दे पर लड़ा जाना चाहिए न कि धार्मिक ध्रुवीकरण पर।
कैसे मिला मीनाक्षी को टिकट?
लेफ्ट और कांग्रेस के गठबंधन के साथ जब फुरफुरा शरीफ के मुस्लिम नेता अब्बास सिद्दीकी ने गठजोड़ किया था, तबसे कहा जा रहा था कि सिद्दीकी की पार्टी ISF नंदीग्राम से अपना उम्मीदवार उतारेगी, लेकिन जैसे ही ममता बनाम अधिकारी की जंग के चलते यह सीट हाई प्रोफाइल हो गई, तो ISF ने अपने कैंडिडेट को खड़ा करने से मना कर दिया। इस हाई वोल्टेज सीट पर दिग्गजों के सामने खड़ा करने के लिए थर्ड फ्रंट के पास कोई दिग्गज नाम तो था नहीं, इसलिए इस मुकाबले को एक अलग ट्विस्ट देने के लिए यहां से युवा चेहरे और ‘मुद्दे की बात’ का दांव लगाया गया।
क्या है मीनाक्षी से उम्मीद और आकलन?
मुद्दों पर चुनाव लड़ने के लिए मीनाक्षी टीएमसी और भाजपा को मिलीभगत से जनता को लूटने वाली पार्टियां कहते हुए मान चुकी हैं कि ‘धन बल’ नहीं है, लेकिन दावा करती हैं कि उनके पास ‘जन बल’ है। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि मीनाक्षी की दावेदारी कितनी है। नंदीग्राम सीट के भीतर 17 ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें से करीब 12 में लेफ्ट की कोई मौजूदगी तक नहीं है।
लेकिन, यह भी एक फैक्ट है कि 2011 में ‘परिवर्तन’ वाली लहर से पहले तक यहां लेफ्ट का गढ़ हुआ करता था। 2016 में अधिकारी यहां से चुनाव जीत चुके हैं। अब अगर यहां से मीनाक्षी चुनाव में कोई कमाल कर पाती हैं, तो यकीनन लेफ्ट में उनकी साख बहुत बढ़ जाएगी।
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