– जीवन की डोर लालचियों के हाथ… कई नासमझ तो कई शातिर…
– बड़े-बड़े अस्पतालों में मरीजों को बेवजह दवाओं का संताप
– जिन्हें जरूरत नहीं उन्हें भी रेमडेसिविर से लेकर तगड़े एंटीबायोटिक के डोज
– फर्जी नकली झोला छाप डॉक्टरों से लेकर टूटे-फूटे नर्सिंग होम चल पड़े
इन्दौर। शहर ही क्या पूरे प्रदेश में मेडिकल माफिया (Medical Mafia) कुछ इस तरह सक्रिय हो गए हंै कि जिन मरीजों का इलाज दवाओं से संभव हैं, उन्हें इंजेक्शन और बाटल ड्रिप लगाई जा रही है और जिन्हें साधारण एंटीबायोटिक (Antibiotic) ड्रग्स की आवश्यकता है, उन्हें जीवन रक्षक दवाओं के हाइडोज से लेकर रेमडेसिविर (Remedisvir) और टोसी इंजेक्शन (Tosi Injection) में झोंका जा रहा है। आलम यह है कि बड़े अस्पताल (Hospital) में जहां मरीज महंगी और अनुपलब्ध दवाइयों के लिए परिजनों को झोंका जा रहा है, वहीं फर्जी और नकली झोलाछाप डॉक्टर (Doctor ) भी मरीजों का इलाज कर पैसा ऐंठने में लगे हैं। कुल मिलाकर कुछ डॉक्टरों द्वारा ही मरीजों के लिए डरावनी व पैनिक स्थितियां बनाई जा रही है कि वह गंभीर स्थिति में पहुंचकर जान गंवा रहे हैं।
बढ़ते मरीज… डर का माहौल… बीमार होते ही अस्पताल (Hospital) की चिंता और अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों का मानसिक दबाव… कोरोना के इस काल में साधारण मरीजों को भी गंभीर स्थिति में पहुंचा रहा है। कोरोना (Corona) का प्राथमिक उपचार तयशुदा दवाइयों के साथ समय पर शुरू होने से स्थितियां संभल जाती है, लेकिन वर्तमान हालात में दवाइयां लेते मरीजों के जेहन में कोरोना (Corona) का डर कुछ इस कदर विकराल बनाया जा रहा है कि जैसे ही उसे अस्पताल (Hospital) की सुविधा मिलती है, वह वहां जाकर स्वयं को सुरक्षित करने में जुट जाता है, लेकिन डॉक्टर उसका बिल बढ़ाने के लिए ओरल दवाइयां बंद कराकर उन्हें आरवी ट्रीटमेंट यानी इंजेक्शन और ड्रिप की और धकेल देते हैं, फिर शुरू होते है महंगी दवाइयों का दौर कई एंटीबायोटिक (Antibiotic) के डोज और इन दवाइयों के साइड इफेक्ट मरीजों को जब बेचैन करने लगते हैं तो उन्हें बीमारी गंभीर लगने लगती है, बस यहीं से शुरू हो जाता है अस्पतालों से लेकर डॉक्टरों का खेल, सबसे पहले रेमडेसिविर (Remedisvir) का इंतजाम में परिजनों को झोंका जाता है, जिसके 5 डोज लगाए जाते हैं, लेकिन परिजन 2-3 डोज का भी इंतजाम मुश्किल से कर पाते है और अस्पताल मरीज के परिजनों को डोज की कमी को गंभीर स्थिति का जिम्मेदार बताकर स्वंय की जिम्मेदारी से मुक्त होने का क्रम करने लगते हैं। इसके साथ ही कई गंभीर एंटीबायोटिक के हाइडोज के चलते मरीज की मानसिक और शारीरिक स्थिति बिगड़ जाती है। घबराए मरीज इसी दौरान ऑक्सीजन लेवल खोने के साथ ही अपनी आत्मशक्ति यानि विलपॉवर भी खो देते हैं और बात आईसीयू तक पहुंच जाती है। कोविड के इन वर्तमान हालातों में डॉक्टरों की इस प्रेक्टिस पर नियंत्रण का तो कोई उपाय है नहीं स्वास्थ्य विभाग कोई मेडिकल प्रोटोकाल भी लागू नहीं कर पा रहा है और मरीज जहां जान गंवा रहे हैं। वहीं परिजन मानसिक और आर्थिक संत्रास भोग रहे हैं।
मेडिकल स्टोर खाली कर डाले डॉक्टरों ने…बड़े-बड़े अस्पतालों में भी हाई एंटीबायोटिक की जोर आजमाइश
कोरोना (Corona) काल के चलते न केवल मरीज बल्कि डॉक्टर भी बेहद डरे हुए हैं… इंदौर के मेदांता, राजश्री अपोलो जैसे बड़े अस्पतालों (Hospitals) में भी मरीजों के दाखिल होते ही हाई एंटीबायोटिक (Antibiotic) के डोज शुरू किए जा रहे हैं… इन अस्पतालों में मरीज के परिजन तो दूर डॉक्टर भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते… इसलिए सामान्य रूप से पहुंचे मरीज भी गंभीर मरीजों की तरह ट्रीट किए जा रहे हैं… आलम यह है कि इन बड़े-बड़े अस्पतालों में मौजूद मेडिकल स्टोर तक में दवाइयां उपलब्ध नहीं है वहीं डॉक्टरों की नासमझी के चलते शहर के सारे मेडिकल स्टोर दवाओं के अभाव से जूझ रहे हैं जो मेडिकल रिप्रेंजेटेटिव अस्पतालों में घंटों डॉक्टरों के इंतजार में कतार लगाते थे अब दवाइयों के लिए डाक्टर उन्हें फोन लगा रहे हैं… शहर में हाई एंटीबायोटिक (Antibiotic) दवाइयों के डोज जहां अनुपलब्ध है, वहीं शरीर में इम्युन सिस्टम बढ़ाने वाले इम्युसिन जैसे इंजेक्शन भी मरीजों को नहीं मिल पा रहे हैं, जिनकी कभी डिमांड नहीं रही है… इसके अलावा भूख बढ़ाने वाले, डिप्रेशन मिटाने वाले इंजेक्शन भी या तो उपलब्ध नहीं है या उनकी कीमतें मरीजों की पहुंच से बाहर है।
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