– अरविंद कुमार शर्मा
फ्रांसिस पोप के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात को पिछले प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के तौर पर ही सामान्य कहा जा सकता है। हालांकि स्थिति इससे बिल्कुल अलग लगती है। इसके राजनीतिक निहितार्थ निकालने वाले मुलाकात को गोवा के नजदीकी चुनावों से जोड़कर देख सकते हैं। वहां के ईसाई समुदाय के लोग भी निश्चित ही इस मुलाकात पर गौर कर रहे हैं। मणिपुर और केरल जैसे ईसाई बहुल राज्य तो खास मायने रखते हैं। केरल से इस मुलाकात पर प्रतिक्रिया भी आने लगीं हैं। वहां ईसाई समुदाय के भीतर से कुछ शक्तियां वहां के चर्च को आगाह कर रही हैं, तो आम तौर पर चर्च ने इसका बढ़कर स्वागत ही किया है। आगाह करने वाले धर्मावलंबी प्रधानमंत्री मोदी की कट्टर हिंदू छवि का हवाला देते हैं।
दबी जुबान में उनके एक समारोह में विशेष तरह की गोल टोपी पहनने से मना करने के साथ ही हिंदू धर्म स्थलों पर बार-बार जाने की भी चर्चा कर रहे हैं। ऐसे लोग आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के साथ ईसाई रिश्तों से परहेज की वकालत करने वाले ही हैं। अच्छी बात यह है कि केरल के चर्चों से पोप-मोदी मुलाकात पर सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। खास तौर पर कार्डिनल बेसिलियोस क्लेमिस, सीरो-मलंकरा कैथोलिक चर्च के मेजर आर्कबिशप की खुशी गौर करने लायक है। वे कहते हैं कि हम सभी इस बात से बहुत उत्साहित और खुश हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पोप को भारत आने का निमंत्रण दिया है। भारत का ईसाई समुदाय पोप के शीघ्र भारत आगमन, खास तौर पर केरल आने की उम्मीद कर रहा है।
खबर तो यह भी है कि कई प्रभावशाली रोमन कैथोलिक चर्च ने बीजेपी के साथ काम करने की भी इच्छा जताई है। ये चर्च आम तौर पर सामाज सेवा के काम करते रहे हैं। इस तरह के काम में कई बार हिन्दू संगठनों से इनके टकराव भी हुए। पहले आरोप लगते रहे कि चर्च धर्मांतरण भी करा रहे हैं, तो अब हिन्दू धर्म में ‘घर वापसी’ के कई मुद्दे चर्चा में आए। देखने में आता है कि ये बातें परंपरागत आदिवासी और समाज की मुख्य धारा से कटे समुदाय में ही अधिक होती रहीं। आरोप लगे कि भोले-भाले लोगों को छोटी लालचों के बल पर ईसाई बनाया गया। शुभ संकेत है कि दोनों तरह के संगठन इन क्षेत्रों में मिलजुलकर काम करने पर सहमत हो रहे हैं। इससे सही मायनों में जरूरतमंदों तक मदद पहुंचेगी, तो दोहरी नजर लगी रहने के कारण किसी को भी धर्मांतरण की शिकायत नहीं मिलेगी। खबर है कि दोनों तरह के संगठन ने इस तरह की कार्य योजना पर विचार करना शुरू भी कर दिया है।
भारतीय जनता पार्टी के सरकार में आने के बाद, सही मायनों में संघ परिवार के प्रति फिर से सोचने का नया सिलसिला शुरू हुआ है। संघ ने भी समय-समय पर अपने सांगठनिक और सामाजिक प्रकल्पों के जरिए व्यापक समुदाय में कार्य बढ़ाया है। इस ओर उसने किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव से दूर रहने की कोशिश की है।पोप-पीएम की ताजा मुलाकात को भी बीजेपी ने जहां ऐतिहासिक बताया है, वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने कहा है कि हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में विश्वास करते हैं। उम्मीद कर सकते हैं कि पोप-पीएम मुलाकात के बाद देश के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में समाज कार्य बिना शक-ओ-सुबहा आगे बढ़ेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्रण टिप्पणीकार हैं)
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