– ऋतुपर्ण दवे
क्या देश के अगले आम चुनाव के लिए दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में नया प्रयोग करने जा रही है? क्या यही प्रयोग राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भी होगा? मध्य प्रदेश विधानसभा उम्मीदवारों की हालिया सूची में बड़े-बड़े नाम यहां तक केन्द्रीय मंत्री, सांसद और संगठन के छत्रपों के जारी हुए हैं। इससे न केवल दूसरे प्रतिद्वंद्वी दलों की सांसें अटकी हुईं हैं बल्कि खुद भाजपा के संभावित दावेदार भी हक्का-बक्का हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह एक तीर से कई निशाने लगाने जैसा है। निश्चित रूप से भाजपा जो दांव खेल रही है वह भारत की राजनीति में कइयों को अटपटा या नया भले लगे लेकिन हवा का रुख भांपने वालों का मानना है कि राजनीतिक बैरोमीटर पर संभावित आंधी-तूफान के संकेत भांपते हुए ही ऐसा बड़ा कदम उठाया होगा?
फिलाहाल टिकट वितरण को लेकर मध्य प्रदेश मॉडल की जहां पूरे देश में चर्चा है। इसके राजनीतिक मायने भी बहुत गहरे हैं। भाजपा यहां कांग्रेस की 15 महीने पुरानी सरकार गिराकर फिर सत्ता में आई थी। अब भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयर्गीय, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते सहित प्रभावशाली सांसद राकेश सिंह (जबलपुर), गणेश सिंह (सतना), उदय प्रताप सिंह (होशंगाबाद), रीति पाठक (सीधी) को सीधे विधानसभा चुनाव के रण में उतारना बताता है कि प्रदेश के किसी भी क्षेत्र को अछूता नहीं रख जहां-तहां ऐसे उम्मीदवार उतारेगी जो पूरे क्षेत्र में तो प्रभावी हों और कम से कम उस पूरे अंचल या संभाग में भी असर डालें।
भाजपा ने शुरुआती सूची में मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल, महाकौशल-विंध्य, भोपाल-नर्मदापुरम पर जबरदस्त फोकस किया है। अब कयास है कि अगली सूची में शेष निमाड़, बुन्देलखंड, उत्तर-पश्चिम मालवा, नर्मदा उद्गम संभाग (शहडोल) सहित बाकी सीटों में कइयों पर चौंकाने वाले उम्मीदवार देगी। अभी 320 सीटों में केवल 79 सीटों की घोषणा ने ही राजनीति में नई लहर पैदा कर दी है। इसमें भाजपा ने केवल वर्तमान तीन विधायकों का टिकट काटा है। सबसे चर्चित नाम मैहर से नारायण त्रिपाठी का है। उन्होंने हमेशा अपना बगावती सुर दिखाया है। उनकी जगह श्रीकांत चतुर्वेदी को टिकट दिया गया है। वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हैं। वहीं सीधी से केदारनाथ शुक्ला की जगह सीधी सांसद रीति पाठक को टिकट देना अचंभित करने वाला है। सीधी के चर्चित पेशाबकांड के आरोपित प्रवेश शुक्ला को केदारनाथ शुक्ला का करीबी बताकर विपक्ष ने देश-प्रदेश में काफी हंगामा किया था। लगता है कि यह कहीं न कहीं डैमेज कंट्रोल है। इसी तरह नरसिंहपुर विधायक जालिम सिंह का टिकट उनके छोटे भाई केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल (दमोह सांसद) को देकर भोपाल-नर्मदापुरम अंचल की सभी सीटों को साधने की कोशिश हुई है। अभी महज 79 घोषित उम्मीदवारों के जरिए भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपने मंसूबे साफ कर दिए हैं।आगे 241 सीटों पर उम्मीदवार तय होने बाकी हैं जिनमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र की सीमा से जुडे तमाम क्षेत्र भी हैं।
क्षेत्रीयता के हिसाब से महाकौशल में सबसे ज्यादा 38 में से 22 सीटों पर, मालवा-निमाड़ में 66 में से 21, ग्वालियर-चंबल की 34 में से 15, भोपाल-नर्मदापुरम की 36 में से सात, विंध्य की 30 में सात तो बुंदेलखंड की 26 में से सात सीटों पर उम्मीदवारों का चयन हो चुका है। निश्चित रूप से चंद दिनों में मध्य प्रदेश सहित सभी पांच राज्यों में चुनावी अखाड़ा सजते ही एक से एक और ऐसी राजनीतिक तस्वीरें आएंगी जिनमें कई पहली बार दिखेंगी तो कई उम्मीदों से इतर भी होंगी। बावजूद इसके मध्य प्रदेश में मुकाबला भाजपा बनाम जनता दिख रहा है। कांग्रेस कमलनाथ के उदारवादी हिन्दू चेहरे पर दंगल में उतरने के बावजूद संगठन के लिहाज से भाजपा से उन्नीस क्या पंद्रह भी नहीं है। यहां विज्ञप्तिवीरों को छोड़ दें तो कांग्रेस धरातल पर सिवाय कुछ इलाकों के वर्षों से कहीं दिखी नहीं। गत वर्ष के नगरीय चुनाव में कई बूथों पर कांग्रेसी एजेंट तक नहीं थे। कहीं बहुमत में आकर भी अध्यक्ष की दौड़ में मात खा गई। ऐसे में मध्य प्रदेश का मुकाबला भाजपा और जनता के बीच है जिसमें रणीतिक रूप से भाजपा भारी पड़ेगी।
राजस्थान में भी चुनावी सरगर्मी चरम पर है। गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ हुई महज 15 मिनट की बैठक चर्चाओं में है। यहां भाजपा की 200 सीटों पर निकली चार परिवर्तन यात्राओं में जुटी भीड़, उसमें भी ज्यादातर में वसुंधरा का गायब रहना और इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की ताजा तस्वीरें सामने आने के गहरे मायने हैं। यहां प्रेशर पॉलिटिक्स की पक रही नई खिचड़ी कौन खाएगा यही बड़ा सवाल है? संकेतों को समझें तो मध्य प्रदेश मॉडल के तहत केंद्रीय जल शक्तिमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तथा कुछ अन्य सांसद मैदान में दिखेंगे। छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों में से 80 की सूची तैयार है। भाजपा ने 21 उम्मीदवारों की पहली सूची अगस्त में ही जारी कर दी थी। सवाल यह है कि अब तीन अक्टूबर को प्रधानमंत्री के बस्तर आने से पहले दूसरी सूची जारी होगी? मध्य प्रदेश मॉडल यहां भी चर्चा में है।
चुनावी राज्यों के मुख्यमंत्री महीनों से ताबड़तोड़ दौरे, घोषणाएं और रेवड़ियां बांट लोगों को लुभाने में कोई कमीं नहीं छोड़ रहे हैं। तीनों हिन्दीपट्टी इलाकों में कहीं भी मौजूदा या पूर्व मुख्यमंत्री का चेहरा सामने नहीं रखना भाजपा की गंभीरता और विवशता दोनों दिखाता है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह 17 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं तो छत्तीसगढ़ में रमन सिंह 15 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे। दोनों के नाम पहली सूची में नहीं है। वहीं राजस्थान में पांच बार सांसद, चार बार विधायक और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे अलग ही चर्चाओं में हैं। कभी लगता है कि भाजपा डरी हुई है तो कभी लगता है कि भाजपा गंभीर है और कभी लगता है कि भाजपा जनता के मिजाज को भांप, अपने अंदर ही साफ-सफाई में तो नहीं लगी हुई है? अब वजह जो भी हो वो शीर्ष नेतृत्व जाने लेकिन जिस तरह के बयान गुजरे रविवार को सीहोर की एक जनसभा में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिए और कहा कि ‘मैंने राजनीति की परिभाषा बदल दी है। मैं सरकार नहीं परिवार चला रहा हूं, मेरे जैसे भैया नहीं मिलेगा, जब मैं चला जाऊंगा तब आप सबको बहुत याद आऊंगा।’ उस बयान के राजनीतिक अखाड़े में कई मायने लगाए जा रहे हैं। वहीं जिस तरह से टिकट वितरण में अब तक जो सच सामने है उससे काफी कुछ समझा जा सकता है और बयान से जोड़ा भी रहा है। लेकिन इतना तो है कि विपक्ष को भी भाजपा कमतर नहीं आंक रही है क्योंकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठनात्मक रूप से राजस्थान-मध्य प्रदेश के मुकाबले मजबूत है। राजस्थान की नई राजनीतिक खिचड़ी कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए चुनौती से कम नहीं है। मिजोरम और तेलंगाना का मिजाज तीनों राज्यों से अलग है। इसीलिए निश्चित रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्यों के चुनाव, आम चुनाव की दिशा तय करने वाले तो साबित होंगे ही साथ भाजपा में भी अन्दरखाने संगठन व सत्ता मे बड़े बदलाव के संकेत देते नजर आ रहे हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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