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असम नगरपालिका चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के मायने

March 10, 2022

– अरविंद कुमार राय

असम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मजबूत स्थिति वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिखने लगी थी। जब कांग्रेस की बादशाहत को राज्य में पहली बार भाजपा ने चुनौती दी। राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 7 सीटों पर जीत हासिल कर राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने को मजबूत कदम आगे बढ़ाया। 2014 से 2022 तक असम में भाजपा इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच गई कि कांग्रेस को पूरी तरह से हाशिए पर धकेल दिया। दो वर्ष देरी से असम में हुए नगरपालिका चुनाव में राज्य की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने न सिर्फ कांग्रेस को पटखनी दी है, बल्कि राज्य के अल्पसंख्यक बहुल जिलों में भी अपनी मजबूत पकड़ रखने और मुसलमानों की रहनुमाई करने वाली ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को उसके प्रभाव वाले क्षेत्रों में चारों खाने चित कर दिया है।

असम के स्वायत्तशासी परिषदों वाले जिलों को छोड़ 24 जिलों में 06 मार्च को 80 नगरपालिकाओं के लिए मतदान हुआ था। 09 मार्च की सुबह 08.00 बजे से मतगणना आरंभ हुई। मतगणना से पहले ही राज्य में बने राजनीतिक परिदृश्य ने यह साफ कर दिया था कि असम में भाजपा की जमीनी स्तर पर जिस प्रकार की मजबूत पकड़ बनी है, उससे विपक्ष के लिए कोई जगह बनती नजर नहीं आ रही है। मतगणना के बाद जैसे-जैसे परिणाम सामने आते गए यह बात हकीकत में तब्दील होती गई कि विपक्ष असम में पूरी तरह शून्य हो चुका है।

असम की 80 नगरपालिकाओं के 977 वार्डों के लिए 06 मार्च को चुनाव कराए गये। कुल 2,532 उम्मीदवार मैदान में थे, जिसमें भाजपा ने सबसे अधिक 825 उम्मीदवार उतारे थे। इसके बाद कांग्रेस ने 706 उम्मीदवार और असम गण परिषद (अगप) ने 243 उम्मीदवार उतारे थे। कुल 16,73,899 मतदाताओं में 8,32,348 पुरुष, 8,41,534 महिलाएं और 17 ट्रांसजेंडर शामिल थे। हालांकि, भाजपा और अगप ने चुनाव से पहले ही 60 वार्डों में निर्विरोध चुनाव जीत लिया था। राज्य में नगरपालिका चुनाव के लिए पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल किया गया। ईवीएम से चुनाव होने के चलते नतीजे काफी तेजी से सामने आ गये।

वर्ष 2014 असम की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लेकर आया। लोकसभा चुनाव के बाद वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने बल पर राज्य की सरकार बनाने में सफल हुई। हालांकि, चुनाव में जिन पार्टियों के साथ भाजपा ने गठबंधन किया था, सरकार में उनको उचित प्रतिनिधित्व दिया। पांच साल के सफल शासन और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का विस्तार करते हुए भाजपा ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी अभूतपूर्व सफलता हासिल की। संगठनात्मक दृष्टि से भाजपा असम में इतनी मजबूत हो गई की 2021 के विधानसभा चुनाव में फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही। इन सफलताओं के पीछे जहां पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में विस्तार था, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का नारा सरकार और संगठन में पूरी तरह परिलक्षित नजर आया। 2016 में जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार सर्वानंद सोनोवाल की अगुवाई में पार्टी ने कमाल किया तो 2021 के विधानसभा चुनाव में डॉ. हिमंत बिस्व सरमा की अगुवाई में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की।

डॉ. हिमंत बिस्व सरमा को करिश्माई नेता भी कहा जाता है। डॉ. सरमा का करिश्मा असम ही नहीं, पूरे पूर्वोत्तर में लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। मणिपुर, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने में डॉ. सरमा ने जहां अहम किरदार निभाया, वहीं ईसाई बहुल नगालैंड और मेघालय में भी क्षेत्रीय पार्टियों को साथ जोड़कर भाजपा को खड़ा करते हुए सत्ता में शामिल करने में अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया।

डॉ. सरमा के राजनीतिक कौशल को भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 2016 में ही भलीभांति पहचान चुका था। यही कारण है कि पूर्वोत्तर में पार्टी को विस्तार देने के लिए नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) का भाजपा ने गठन किया। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व डॉ. सरमा को नेडा का संयोजक बनाकर पार्टी के जनाधार को पूर्वोत्तर में मजबूत करने का एक कठिन कार्य सौंपा था। इसमें डॉ सरमा खरे उतरे। पुरस्कार स्वरूप 2021 के असम विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी।

मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. सरमा ने जहां प्रशासन को जनता तक पहुंचाने के लिए दिन-रात एक किया, वहीं संगठनात्मक ढांचे को भी मजबूत बनाने के लिए जमकर कार्य किया। पार्टी को जब भी डॉ. सरमा की जरूरत होती है, वे प्रदेश भाजपा मुख्यालय में आसानी से सुलभ हो जाते हैं। पार्टी के वरिष्ठ से लेकर कनिष्ठ तक के कार्यकर्ताओं की बातों को सुनते हुए सबको साथ लेकर चलने का नेतृत्व दिखाया। इसके चलते आज असम नगरपालिका चुनाव में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल करते हुए असम को विपक्ष मुक्त या विपक्ष शून्य कर दिया है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार के पूर्वोत्तर राज्यों के ब्यूरो प्रमुख हैं)

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