– रमेश ठाकुर
कोलंबो में 18वां बिम्सटेक शिखर सम्मेलन चल रहा है। श्रीलंका में इस आयोजन का एक खास मकसद भी है। पड़ोसी मुल्क इस वक्त भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उन्हें इससे उबारने के लिए हिंदुस्तान ने बड़ी मदद की है। मदद, शिखर बैठक से पहले इसलिए की गई है ताकि दूसरे सदस्य देश भी प्रेरित होकर सहायता कर सकें। बिम्सटेक सम्मेलन का मकसद एक-दूसरे का सहयोग करना ही है। भारत ने श्रीलंका को एक बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया है और पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद के लिए अलग से पचास करोड़ अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त सहायता दी है। श्रीलंका और आर्थिक विश्लेषकों ने इसके लिए जमकर भारत की सराहना की है। सराहना की भी जानी चाहिए, संकट के दौर उन्होंने संबल जो दिया है। वरना दूसरे मुल्क तो सिर्फ हवा-हवाई बातों से ही पेट भरते रहते हैं। चीन उनमें अव्वल है।
श्रीलंका बिम्सटेक का मौजूदा अध्यक्ष सदस्य देश है। बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी देशों पर केंद्रित क्षेत्रीय सहयोग का बड़ा मंच है। इस मंच पर बैठकर सभी सदस्य अपनी समस्याएं एक-दूसरे से साझा करते हैं। यह सम्मेलन करीब चार साल बाद आयोजित हुआ है। हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को अपनी बात इस मंच पर साझा। उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध, अफगानिस्तान के मौजूदा हाल और खाड़ी देशों में पनपते नए किस्म के आतंकवाद पर सभी सदस्य देशों का ध्यानाकर्षण कराया। वैसे, अबकी बार के शिखर सम्मेलन का विषय ‘बिम्सटेक-एक क्षमतावान क्षेत्र, समृद्ध अर्थव्यवस्था, और स्वस्थ लोग’ पर रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बुधवार को वर्चुअल दिल्ली से जुड़े।
बहरहाल, विदेश मंत्री जयशंकर ने श्रीलंका पहुंचकर जो मानवता का परिचय दिया है उसे चीन भी देख रहा है और बाकी मुल्क भी। बिम्सटेक सम्मेलन का आयोजन कह लें या उनका दौरा ऐसे वक्त में हुआ, जब संकट से निपटने में श्रीलंकाई सरकार पूरी तरह से असक्षम है। जनता आक्रोशित है। महंगाई आसमान छू रही है और चारों तरफ अफरातफरी है। लोग ईंधन और रसोई गैस की कतारों में लगे हैं। बिजली कटौती की मार से बेहाल हैं। इन सभी समस्याओं से निजात चाहते हैं श्रीलंकाई नागरिक। इसलिए वहां जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर वहां विरोध कर रहे प्रमुख विपक्षी नेताओं से भी मिले हैं।
श्रीलंका इस संकट में चीन की चालाकी से वाकिफ हो गया है। आर्थिक संकट में चीन ने साथ नहीं दिया। कुछ वर्ष पूर्व तक हर तरह की मदद करने का दावा करता था। श्रीलंकाई वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे हमारे विदेश मंत्री को ऐसे वक्त में एक सहायक सहयोगी के रूप में देख रहे हैं जब उनकी सरकार के खिलाफ अवाम हमलावर है। ऐसे पहले भी कई मौके आए हैं जब भारत ने ही श्रीलंका का सहयोग किया। यह श्रीलंका का एक-एक बच्चा जानता है। लोग राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे से सत्ता से हटाने की अपील कर रहे हैं। राजपक्षे के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ परिवार को अपनी अक्षमता के लिए इस्तीफा देने को बोल रहे हैं। हालात सुधर जाएं, इसी उद्देश्य से श्रीलंका ने बिम्सटेक का आयोजन अपने यहां करवाया है।
खाड़ी मुल्कों के लिए बिम्सटेक सम्मेलन बहुत जरूरी होता है। बैठकें नहीं होने से भारी नुकसान हुआ है। चार वर्ष पूर्व काठमांडू में आयोजित हुए सम्मेलन में कुछ मुद्दे उठे थे। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। कोरोना के चलते तय मसले नहीं सुलझे। पर, शायद अब कुछ हो। तब, सदस्य देशों ने कृषि में स्नातकोत्तर और पीएचडी कार्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति और बीज क्षेत्रों के विकास सहित क्षमता विकास एवं प्रशिक्षण जैसी अन्य पहलुओं पर भारत की ओर से आवाज उठाई गई थी, जिसपर सभी एकमत हुए थे। साथ ही खाड़ी देशों के मध्य पशुधन-पोल्ट्री के उच्च प्रभाव वाले सीमावर्ती रोगों के क्षेत्रों में सहयोग व जलीय जंतु रोगों और जलीय कृषि में जैव सुरक्षा व सटीक खेती को बढ़ावा देने के लिए डिजिटलाइजेशन जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई थी। फिलहाल मौजूदा सम्मेलन के कुछ और मुद्दे इनमें जुड़ेंगे। कुल मिलाकर अगले कुछ वर्षों के लिए ये सभी मसले हल करने की चुनौती होगी। लेकिन सबसे पहले अध्यक्ष देश श्रीलंका को आर्थिक संकट से उभारने के लिए सभी सदस्य देशों को मिलकर सहयोग करना होगा।
बिम्सटेक में भारत की अहम भूमिका होती है, सभी सदस्य देश उनकी तरफ ही ताकतें हैं। क्योंकि समृद्वि के हिसाब से वही सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए बैठक में भारत जिन मसलों को उठाता है, सभी मुल्क बिना सोचे समझे हामी भरते हैं। उनको पता है भारत जो भी मुद्दे मंच पर रखेगा उससे सबका भला होगा। बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार व थाईलैंड ने कभी भी किसी मसले का आज तक विरोध नहीं किया। हां, एक बार चीन के इशारे पर नेपाल ने जरूर थोड़ा विरोध किया था, लेकिन उनका विरोध ज्यादा देर टिका नहीं? इस बार के सम्मेलन में अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए करीब 14 से 15 प्रमुख आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। सबसे बड़ी चिंता अब नए किस्म के आतंकवाद को लेकर है जो न सिर्फ खाड़ी देशों को परेशान किया हुआ, बल्कि समूचे एशिया के लिए चुनौती बना हुआ है। अफगानिस्तान और यूक्रेन की घटनाओं ने बिम्सटेक देशों को सोचने पर मजबूर किया है। समय ऐसा है अब सबको तगड़ी एकता दिखानी होगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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