भोपाल। प्रदेश में कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के बाद अनलॉक (Unlock) की प्रक्रिया शुरू होते ही सियासी दलों में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग ने निकाय चुनाव को लेकर अभी किसी तरह की प्रतिक्रिया जारी नहीं की है न ही संभावना जताई है। अभी तक इतना तय है कि प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव 21 साल पुरानी प्रक्रिया के तहत ही होंगे। जिसके जरिए महापौर और नगर पालिका अध्यक्षों का निर्वाचन पार्षदों के द्वारा ही किया जाता है। इस प्रक्रिया में खरीद फरोख्त के आरोप लगते रहे हैं।
कमलनाथ (Kamalnath) सरकार ने दो साल पहले मप्र नगर पालिका विधि संशोधन विधेयक 2019 के जरिए चुनाव प्रक्रिया को प्रत्यक्ष से बदलकर अप्रत्यक्ष कर दिया था। यानी महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्ष पार्षदों के द्वारा ही चुने जाएंगे। तब संशोधन विधेयक का प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने खुलकर विरोध किया और पार्षदों की खरीद फरोख्त के आरोप लगाए थे। निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही कमलनाथ सरकार गिर गई। इसके बाद शिवराज सरकार कोरोना संक्रमण की वजह से निकाय एवं पंचायत चुनाव नहीं करा पाई है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि निकट भविष्य में पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव अनिवार्य रूप से कराए जाएंगे। अभी महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का चुनाव पार्षदों के द्वारा ही कराए जाएंगे। इसको लेकर हाल ही में नगरीय प्रशासन विभाग के मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने भी संकेत दिए हैं। इस बीच खबर थी कि सरकार अध्यादेश लाकर मप्र नगर पालिका विधि अधिनियम 2019 में संशोधन करेगी, लेकिन फिलहाल नगरीय प्रशासन विभाग में अध्यादेश लाने की कोई सुगबुगाहट नहीं है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि निकट भविष्य में महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का निर्वाचन खरीद-फरोख्त के आरोपों वाली प्रक्रिया से ही होंगे।
तब उठी थी दल-बदल रोकने की मांग
प्रदेश में बेशक दलबदल से सरकार गिरी और बनी है, लेकिन नगर पालिका विधि अध्यादेश के समय भाजपा ने यह मांग उठाई थी कि पार्षदों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए सरकार को नगरीय निकायों में दल-बदल रोकने का कानून लागू करना चाहिए।
सिर्फ मप्र में थी प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली
देश में संभवत: मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर अध्यक्ष और महापौर का चुनाव सीधे जनता करती है। साथ ही अगर चुना हुआ जनप्रतिनिधि भ्रष्ट, निकम्मा और अलोकप्रिय हो तो उसे वापस बुलाने का अधिकार (राइट टू रिकॉल) भी सिर्फ मप्र में लागू हुआ।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री में हुई थी तकरार
कमलनाथ सरकार 2019 में जब नगर पालिक विधि संशोधन अध्यादेश लेकर आई थी तब पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन और सरकार के बीच तकरार हुई थी। राज्यपाल ने पार्षदों द्वारा शपथ-पत्र में गलत जानकारी देने पर जुर्माना व सजा संबंधी अध्यादेश को राज्यपाल ने अनुमोदित कर दिया था, लेकिन अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर व अध्यक्ष के चुनाव वाला बिल रोक लिया था। इसे लेकर सियासत शुरू हो गई थी। भाजपा ने तब इसका जमकर विरोध किया था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , ऑल इंडिया मेयर्स काउंसिल के संगठन मंत्री उमाशंकर गुप्ता एवं अन्य भाजपा नेताओं राज्यपाल से मिलकर इस अध्यादेश की खिलाफत की थी। इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ राज्यपाल से मिलने पहुंचे। इसके बाद राज्यपाल ने अध्यादेश को मंजूरी दी थी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved