नई दिल्ली। मथुरा (Mathura) की शाही ईदगाह (Shahi Eidgah) को मस्जिद (Mosque) के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसकी वजह है कि यह भारतीय पुरातत्व विभाग (Indian Archaeological Department) के तहत संरक्षित स्थान है। हिंदू पक्ष ने यह दलील दी है, जिसके बाद मुस्लिम पक्ष (Muslim side) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है। इस तरह मथुरा के शाही ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि विवाद ने रोचक मोड़ ले लिया है। इस पर शीर्ष अदालत का कहना है कि वह इस बात का परीक्षण करेगी कि आखिर इस दावे की क्या वैधता है। दरअसल हाई कोर्ट ने हिंदू पक्ष की दलील के बाद इस मामले में ASI को भी पार्टी बनाने को कहा था। मुस्लिम पक्ष की याचिका सुनते हुए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने हिंदू पक्ष को नोटिस जारी किया है।
मुस्लिम पक्ष की अपील सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जहां तक यह सवाल है कि क्या एएसआई संरक्षित स्थान का इस्तेमाल मस्जिद के तौर पर किया जा सकता है। इस मामले में कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जा सकता। आपने इस बारे में हाई कोर्ट को भी कुछ नहीं कहा। इस मामले को मेरिट के आधार पर ही सुना जाएगा।’ यही नहीं अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने हिंदू पक्ष को अपनी याचिका में संशोधन करने की परमिशन दी है, जो पहली नजर में सही फैसला लगता है। हिंदू पक्ष ने हाई कोर्ट में कहा था कि ASI द्वारा संरक्षित किसी स्मारक को मस्जिद के तौर पर प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसके अलावा हिंदू पक्ष की दलील है कि ASI संरक्षित स्मारक होने के कारण यहां प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट भी लागू नहीं होता।
अदालत ने कहा- दूसरी अर्जियों के साथ ही इसकी भी होगी सुनवाई
बेंच ने कहा कि आपके पास अधिकार है कि अपनी अर्जी में संशोधन करें। अदालत ने कहा कि हिंदू पक्ष अपनी याचिका में संशोधन कर सकता है और उसमें यह दावा हो सकता है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट लागू नहीं होता। अदालत ने कहा कि यह कोई नया मामला नहीं है। हम नई अर्जी को भी पहले से दायर मामलों के साथ ही सुनेंगे। अब इस मामले में 8 अप्रैल को अदालत में सुनवाई होगी। दरअसल हिंदू पक्ष ने इस मामले में हाई कोर्ट का रुख किया था। उनका कहना था कि एएसआई को भी इस केस में पार्टी बनाया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि शाही ईदगाह मस्जिद का संरक्षण वही करता है। इसलिए उसे भी पक्षकार बनाने के बाद ही मामले को आगे बढ़ाया जाए।
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