– सियाराम पांडेय ‘शांत’
मथुरा के नंद महल मंदिर में दो मुस्लिमों ने नमाज पढ़कर हिंदू संगठनों को उद्वेलित कर दिया है। उनकी इस बात में दम हो सकता है कि श्रीकृष्ण हिंदुओं के ही नहीं, मुसलमानों के भी हैं लेकिन क्या सभी मुसलमान उनके इस दावे से इत्तेफाक रखते हैं। अगर ऐसा है कि श्रीकृष्ण मुसलमानों के भी अभीष्ठ हैं तो श्रीकृष्णजन्मभूमि परिसर में शाही मस्जिद का औचित्य क्या है? अगर नमाज अदा कर भी ली तो उसे सोशल मीडिया पर वायरल क्यों किया, क्या इसके पीछे कोई साजिश थी।
इसमें संदेह नहीं कि संप्रति अयोध्या और मथुरा दोनों चर्चा के केंद्र में हैं। अयोध्या में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के उपरांत भव्य मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का गठन हो गया है। वहां मंदिर निर्माण की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। इससे उत्साहित कुछ लोगों ने अपने को भगवान श्रीकृष्ण का मित्र बताते हुए वहां की स्थानीय अदालत में मुकदमा दायर कर दिया है। याचिका में अदालत से अपील की गई है कि वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से शाही मस्जिद को हटाने का निर्देश दे। हालांकि याचिका का कुछ मुस्लिम संगठनों और उनके नेताओं ने विरोध भी किया है और इसे देश के सांस्कृतिक ताने-बाने को कमजोर करने की कोशिश करार दिया। यह मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि कुछ लोगों ने मथुरा के नंद बाबा मंदिर में नमाज कर हिंदू समाज को उद्वेलित कर दिया है। हिंदू समाज के कुछ लोगों का कहना है कि जब मस्जिदों और मजारों में रामायण-गीता का पाठ नहीं हो सकता। वहां मंत्रोच्चार के साथ हवन-यज्ञ नहीं किए जा सकते तो नंदबाबा के मंदिर में नमाज पढ़ना किस तरह जायज है? जब मंदिर में नमाज पढ़ने की इजाजत इस्लामिक ग्रंथ और विद्वान भी नहीं देते तो फिर नंदगांव के नंदबाबा मंदिर में नमाज क्यों पढ़ी गई?
अयोध्या मामले की सुनवाई के क्रम में वर्ष 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है लेकिन पैगंबर हजरत मोहम्मद इसकी इजाजत नहीं देते। वे उस जगह नमाज पढ़ने से मना करते हैं, जहां घंटियां बजती हैं। यह बात रामजन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में भी कही गई है। कई मौलाना भी ऐसा मानते हैं कि जिस जगह पर कोई मूर्ति रखी हो, कोई चित्र टंगा या उकेरा गया हो, वहां नमाज जायज नहीं है तो क्या मुस्लिम यात्री और दिल्ली की खुदाई खिदमतगार संस्था के सदस्य फैसल खान व मोहम्मद चांद ने मंदिर में नमाज अदा कर इस्लाम और इस्लामिक विद्वानों की राय को भी अनदेखा किया है?
सवाल यह है कि वहां के पुजारी ने उन्हें ऐसा क्यों करने दिया? उसकी सहमति के बिना तो ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है। हिंदू संगठनों के आक्रोश के बाद मंदिर प्रशासन भी सकते में आ गया है और उनपर धोखे से मंदिर में नमाज अदा करने और वीडियो वायरल करने का आरोप लगाया है। दो सेवायतों की शिकायत पर पुलिस ने चार लोगों खुदाई खिदमतगार संस्था के सदस्य फैसल खान व मोहम्मद चांद, आलोक रतन और नीलेश गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। सेवायतों ने यह भी आशंका जाहिर की है कि नमाज अदा करने वाले युवकों के संबंध विदेशी संगठनों से हो सकते हैं। उन्होंने इस बावत विदेशी फंडिंग की जांच की भी मांग की है। इसके विपरीत कौमी एकता मंच के मधुबन दत्त चमक चतुर्वेदी का कहना है कि सामाजिक सौहार्द को देखते हुए ही उन्हें मंदिर में नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी। अगर ऐसा था तो मंदिर प्रशासन झूठ क्यों बोल रहा है?
अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पाठक ने इस घटना को तूल न देने का आग्रह किया है। उन्होंने ब्रजवासियों से ऐसे तत्वों से सतर्क रहने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि यदि नमाज का समय होने के कारण मन्दिर के एक कोने में सुनसान जगह पर उन्होंने नमाज अदा कर दी थी तो भी उन्हें छोड़ा जा सकता था लेकिन उसकी फोटो खींचकर सोशल मीडिया में डालने से यह स्पष्ट है कि वे यहां के माहौल को खराब करने के लिए आए थे। कृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद ईदगाह का मामला उठाकर पहले ही यहां के वातावरण को खराब करने का प्रयास किया गया है। उसपर भी इस प्रकार के तत्व यदि साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने का प्रयास करें तो कानून को ऐसे लोगों को बख्शना नहीं चाहिए।
चूंकि फैसल खान और उनके साथी साइकिल से ब्रज की चौरासी कोसी परिक्रमा कर रहे हैं, इससे इतना तो तय है कि कृष्ण के प्रति उनके मन में अनुराग है लेकिन उनके कृत्य की किसी भी रूप में सराहना नहीं की जा सकती। इस तरह के आचरण से देश में सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को चोट पहुंच सकती है। धर्मगुरुओं को अपने-अपने मतावलंबियों को इस बावत उचित निर्देश देने चाहिए, जिससे देश में अशांति और वैमनस्य की भावना विकसित न हो। जनभावनाओं से खेलने का अधिकार किसी को नहीं है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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