– सियाराम पांडेय ‘शांत’
अयोध्या में भले ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के बालस्वरूप को न्याय मिल गया हो लेकिन मथुरा में लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के बाल रूप को अभी न्याय की दरकार है। श्रीराम का भी जन्मभूमि का विवाद था और श्रीकृष्ण का भी जन्मभूमि का ही विवाद है। श्रीकृष्ण का जन्मभूमि मंदिर तो राममंदिर से पहले टूटा था। महमूद गजनवी ने सन 1017 ई. में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था। राममंदिर तो बस एकबार टूटा लेकिन कृष्ण जन्मभूमि मंदिर चार बार बना और चार बार टूटा। अयोध्या में हिंदुओं को अपनी आस्था की जंग जीतने में 492 साल लग गए लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को ऐतिहासिक फैसला देकर अयोध्या में राममंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने यहां पहला मंदिर बनवाया था। यहां मिले ब्राह्मी-लिपि में लिखे शिलालेखों से पता चलता है कि यहां शोडास के शासनकाल में वसु ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। इतिहासकार मानते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में दूसरा भव्य मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था। खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जाजन उर्फ जज्ज ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदिर बनवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोधी के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया था। इसके 125 साल बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया। इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।
वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया था। वर्ष 1940 में जब यहां पंडित मदन मोहन मालवीय आए तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए। मालवीय जी ने जुगल किशोर बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनरुद्धार के संबंध में पत्र लिखा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने 7 फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया। इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय जी का देहांत हो गया। बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दायर कर दी। इसका फैसला 1953 में आया। इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भगृह और भव्य भागवत भवन के पुनरुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच पहला मुकदमा 1832 में शुरू हुआ था। तब से लेकर विभिन्न मसलों को लेकर कई बार मुकदमेबाजी हुई लेकिन जीत हर बार श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की हुई। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी की मानें तो पहला मुकदमा 1832 में हुआ था। अताउल्ला खान ने 15 मार्च 1832 में कलेक्टर के यहां प्रार्थनापत्र दिया। जिसमें कहा कि 1815 में जो नीलामी हुई है उसको निरस्त किया जाए और ईदगाह की मरम्मत की अनुमति दी जाए। 29 अक्टूबर 1832 को आदेश कलेक्टर डब्ल्यूएच टेलर ने आदेश दिया जिसमें नीलामी को उचित बताया गया और कहा कि मालिकाना हक पटनीमल राज परिवार का है। इस नीलामी की जमीन में ईदगाह भी शामिल थी। इसके बाद तमाम मुकदमे हुए। 1897, 1921, 1923, 1929, 1932, 1935, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960, 1961, 1964, 1966 में भी मुकदमे चले।
गौरतलब है कि 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों में काशी-मथुरा समेत देश में नई मुकदमेबाजी के लिए दरवाजा बंद कर दिया था। साथ ही यह भी टिप्पणी की थी कि अदालतें ऐतिहासिक गलतियां नहीं सुधार सकतीं। सवाल यह है कि क्या मथुरा और काशी के मामले को यूं ही छोड़ दिया जाए या उसपर कुछ किया जाए। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की सखी लखनऊ निवासी वकील रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य भक्तों प्रवेश कुमार, राजेशमणि त्रिपाठी, करुणेश कुमार शुक्ला, शिवाजी सिंह और त्रिपुरारी तिवारी की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और हरिशंकर जैन ने स्थानीय न्यायालय में याचिका दायर की है। याचिका में जमीन को लेकर 1968 के समझौते को गलत बताया गया है।
रामनगरी अयोध्या में राममंदिर निर्माण का काम चल रहा है। इसी बीच मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर का मामला स्थानीय कोर्ट में पहुंचने से माहौल गरमा गया है। इस सिविल केस में 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए स्वामित्व मांगा गया है और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि जमीन के मालिक कृष्ण जन्मस्थान पर विराजमान भगवान श्रीकृष्ण है। जमीन पर मालिकाना हक विराजमान भगवान श्रीकृष्ण का है। जबकि श्रीकृष्ण जन्म स्थान सोसाइटी द्वारा 12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशव देव की जमीन का समझौता हुआ और 20 जुलाई 1973 को यह जमीन समझौते के बाद डिक्री की गई। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की जमीन की डिक्री करने का अधिकार सोसाइटी को नहीं है। लिहाजा सोसाइटी की जमीन की डिक्री खत्म की जाए और भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को उनकी 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक दिया जाए। अधिवक्ताओं ने बताया कि याचिका में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट, श्रीजन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया गया है।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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