नई दिल्ली । मैरिटल रेप (marital rape) के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की खंडपीठ के विभाजित फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है. दरअसल, 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों की खंडपीठ ने अलग-अलग फैसले दिये थे. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि मैरिटल रेप अपराध (Crime) है या नहीं. इस मामले पर 16 सितंबर को सुनवाई होगी.
बता दें कि भारतीय कानून में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं है. हालांकि, इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की ओर से लंबे वक्त से मांग चल रही है. याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 375(दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी.
दिल्ली हाईकोर्ट के जज इस मुद्दे पर एकमत नहीं थे. इसलिए कोर्ट ने इस मामले को 3 जजों की बेंच में भेजने का फैसला किया था. बेंच में एक जज राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था. वहीं पीठ में दूसरे जज जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है.
क्या है मैरिटल रेप?
मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार भारत में अपराध नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बगैर सेक्सुअल रिलेशन बनाता है तो ये मैरिटल रेप कहा जाता है लेकिन इसके लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं है. 2017 में मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, ‘मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी.’ ये तर्क भी दिया गया कि ये पतियों को सताने के लिए आसान हथियार हो सकता है.
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