कौन कहता है हर शख़्स फरिश्ता हो जाए
आदमी थोड़ा तो इंसान जैसा हो जाए
नादरा बस स्टैंड के एन सामने जेके बिल्डिंग से लगी हुई चाय नाश्ते की छोटी सी रेस्टोरेंट चलाते हैं मकबूल एहमद। चेहरे पे शरई दाढ़ी, सिर पे टीपी ओर कंधे पे गमछा । अपने सखी किरदार से साफ शफ्फ़़ाफ़ कपड़े पहने ये इंसान के रूप में फ़रिश्ते नजऱ आते है । बोलचाल में भोत नफीस ये शख्स गुजिश्ता दस बरसों से यहां लंगरे आम चला रहा है। लंगरे आम बोले तो हर रोज़ डेढ़ दो सौ लोगों को निशुल्क खाने के पैकिट मुहैया कराना। कभी दाल-रोटी-सब्ज़ी तो कभी कभी चावल की उम्दा खिचड़ी के पैकिट ये और इनकी टीम तैयार करती है। पहले यहां गरीब और ज़रूरतमंद लाइन लगा के खाना लिया करते थे। मकबूल भाई को लगा के खाने के लिए लाइन लगाना किसी की खुद्दारी पे चोट भी हो सकता है। लिहाजा अब लंगरे आम की टीम करीब दो सौ पैकिट वहां टेबलों पे रख देती है। लोग आते हैं और अपना पैकिट ले जा के खा लेते हैं। मक़बूल बताते हैं कि जब मैंने बस स्टैंड पे आने वाले मुसाफिरों, मजबूर और माजूर लोगों को खाने के लिए परेशान होते देखा तो लंगरे आम का खयाल आया। मेने टेग लाइन बनाई हमारा अभियान, भूखा न सोए कोई इंसान। शुरु में मैं अकेला था अब बहुत सारे लोग लंगरे आम से जुड़ गए हैं। खाने के अलावा गर्मियों भर ठंडे पानी का इंतज़ाम भी हम करते हैं। कई दफे स्टेशन पे बी लंगरे आम की जानिब से खाना भिजवाया जाता है। भोत नेक काम कर रय हो मक़बूल मियां। एसई बने रेना।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved