नई दिल्ली (New Delhi) । महाराष्ट्र (Maharashtra) के उपमुख्यमंत्री अजित पवार (Deputy Chief Minister Ajit Pawar) संख्या बल में आगे नजर आ रहे हैं. खबरों के मुताबिक दोनों गुटों के सूत्रों ने बताया कि अजित पवार गुट द्वारा बुलाई गई बैठक में राकांपा (NCP) के 53 में से 32 विधायक शामिल हुए जबकि राकांपा प्रमुख के संबोधन में 18 विधायक मौजूद थे.
24 साल पुरानी पार्टी में दो जुलाई को विभाजन के बाद पहली बार अलग-अलग बैठकों को संबोधित करते हुए शरद पवार ने शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल होने के लिए अपने भतीजे अजित पवार की आलोचना की.
दो जुलाई को राकांपा से अलग होकर उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले अजित पवार ने अपने 83 साल के बूढ़े चाचा को राजनीति से रिटायर होने की सलाह दे डाली.
शरद पवार और अजित पवार भारतीय राजनीति के कुछ सबसे हाई प्रोफाइल और कामयाब चाचा-भतीजे की जोड़ियों में शामिल थे लेकिन अब ये जोड़ी पूरी तरह से बिखर चुकी है. भारत की राजनीति में चाचा-भतीजे की लड़ाई कोई नई नहीं है.
देश में राजनीति में आए कई चाचा-भतीजा ने समय-समय पर एक दूसरे से लड़ाई की और अलग होकर दूसरी पार्टी में शामिल हो गए. कभी चाचा की शिकायत ये रही की भतीजा पद के लायक नहीं तो कभी भतीजे ने चाचा के बारे में ये शिकायत की.
वैसे भारत के इतिहास में चाचा और भतीजे की लड़ाई महाभारत के समय से चली आ रही है. पुत्र मोह में धृतराष्ट्र ने दुर्योधन का साथ दिया जबकि सत्ता के हकदार युद्धिष्ठिर थे. मुगल काल में भी अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी को मारकर सत्ता हथिया ली थी.
हाल के कुछ राजनीतिक घटनाक्रम को देखेंगे तो पाएंगे कि पॉलिटिक्स में सबसे ज्यादा खतरा करीबी रिश्तेदारों से ही होता है. खासतौर से राजनीति में पार्टी के चुनाव चिन्ह पर सब का दावा होता है. एक ही चिन्ह पर लड़ते-भिड़ते एक ही परिवार के लोग उसी चिन्ह को बांटना शुरू कर देते हैं और जब बात नहीं बनती है तो अलग होने की नौबत आ जाती है.
अजित पवार और शरद पवार की हाल में हुई लड़ाई इस बात की तरफ इशारा है कि पॉलिटिक्स में ये इतिहास खुद को सिर्फ दोहराता ही नहीं है, बल्कि बार-बार दोहराता है. कैसे इस आर्टिकल में समझते हैं.
शिवपाल यादव-अखिलेश यादव
राजनीति में चाचा-भतीजे की लड़ाई में शिवपाल और अखिलेश यादव की लड़ाई की खूब चर्चा हुई थी. हालांकि दोनों अब साथ हैं.
समाजवादी पार्टी से जुड़े दोनों चाचा भतीजा को पार्टी अपनी लगती थी. एक तरफ जहां अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने पार्टी की नींव रखी तो वहीं चाचा शिवपाल ने पार्टी को सींचा था. पार्टी में सबकुछ ठीक उस वक्त नहीं होने लगा जब भतीजे अखिलेश ने पार्टी में कदम रखा.
साल 2012 के विधान सभा चुनाव के समय मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी ने बहुमत हासिल किया और अपनी जगह अपने बेटे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया. चाचा शिवपाल जो खुद को मुलायन सिंह उत्तराधिकारी के तौर पर देख रहे थे उन्हें झटका लगा. दोनों के बीच आपसी कलह शुरू हो चुकी थी.
2017 में सपा यूपी की सत्ता से बाहर हो गयी. और चाचा भतीजा के बीच ये जंग और तेज हो गयी. बात बिगड़ी और 2018 में शिवपाल ने बगावत कर दी. शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी नाम से एक अलग दल बनाया.
सपा से अलग हुए शिवपाल सियासत में खास पहचान नहीं बना पाएं और आखिरकार सपा में लौट आए. यहां चाचा पर भतीजा भारी पड़ा.
बाला साहेब से अलग हुए थे राज ठाकरे
महाराष्ट्र से ही आई चाचा-भतीजे की हाई-प्रोफाइल लड़ाई में चाचा बाला ठाकरे की अनबन भतीजे राज ठाकरे से हो गयी थी. चाचा बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की कमान अपने बेटे उद्धव ठाकरे को सौंप दी और भतीजे राज ठाकरे ने बागी तेवर अपना लिए थे. राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली.
राज ठाकरे अपने चाचा की कॉर्बन कॉपी जैसे थे, सियासी गलियारों में उन्हें बाल ठाकरे के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जा रहा था. लेकिन कुर्सी को लेकर परिवारिक बगावत ने सबकुछ बिखेर कर रख दिया.
प्रकाश सिंह बादल-मनप्रीत सिंह बादल
पंजाब में प्रकाश सिंह बादल और मनप्रीत बादल यानी चाचा-भतीजे की जोड़ी कभी बहुत हिट रही थी.1995 में मनप्रीत पहली बार विधायक बनें. 2007 में पंजाब की प्रकाश सिंह बादल सरकार में वित्त मंत्री भी बनें लेकिन धीरे-धीरे बादल फैमिली में भी खींचतान शुरू हो गई.
पार्टी के अंदर प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी, और मनप्रीत को दूर रखा जाने लगा. इसके बाद मनप्रीत कुछ मुद्दों पर पार्टी के आधिकारिक रुख के खिलाफ खुलकर बोलने भी लगे. इसका नतीजा ये हुआ कि 2010 में उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगा और उन्हें पार्टी से अलग कर दिया गया.
मनप्रीत सिंह बादल ने 2011 में पीपल्स पार्टी ऑफ पंजाब नाम से एक नई पार्टी बनाई. 2012 के पंजाब चुनाव में दो सीटों से लड़ें, लेकिन दोनों सीट पर हार का सामना करना पड़ा. 2016 में मनप्रीत की पार्टी कांग्रेस में शामिल हो गयी. जनवरी 2023 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. फिलहाल मनप्रीत बादल बीजेपी में हैं.
पशुपति नाथ पारस-चिराग पासवान
पशुपति नाथ पारस-चिराग पासवान बिहार में चाचा भतीजे की हाई प्रोफाइल लड़ाई का उदाहरण हैं. 8 अक्टूबर 2020 को राम विलास पासवान की मृत्यू हुई. इसके बाद उनकी पार्टी लोजपा टूट गयी. यहां भी पार्टी का उत्तराधिकारी बनने की सियासी जंग शुरू हुई. नतीजा ये हुआ कि पार्टी दो हिस्सों में बंट गई. लोकजनशक्ति पार्टी की कमान चिराग पासवान के हाथ लगी, और राष्ट्रीय लोजपा की कमान पशुपतिनाथ पारस ने संभाली.
लोकसभा चुनाव 2020 के समय चिराग पासवान खुद को मोदी का हनुमान बता रहे थे लेकिन बीजेपी ने चिराग को झटका दे दिया और चाचा पशुपति पारस को मोदी सरकार में मंत्री बना दिया गया. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कयास लगाए जा रहे हैं कि चिराग पासवान को मोदी मंत्रिपरिषद में जगह मिल सकती है .
खून का रिश्ता नहीं, लेकिन मशहूर है नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी
चाचा-भतीजे की एक और बहुचर्चित जोड़ी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की है. हालांकि दोनों के बीच कोई पारिवारिक संबंध नहीं है. नीतीश कुमार इस समय जहां भी जाते हैं, उनके साथ तेजस्वी यादव की मौजूदगी की काफी चर्चा होती है.
नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री हैं. तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री है. आज कल दोनों के रिश्ते में मिठास देखने को मिल रही है, लेकिन दोनों के रिश्तें काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं.
ये दोनों कभी एक दूसरे के जबरदस्त विरोधी थे और आज ये हमनवां बने हुए हैं. बता दें कि आरजेडी संस्थापक लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव नीतीश कुमार को चाचा कहकर बुलाते हैं. जब दोनों पार्टियों के रिश्ते कड़वे होते हैं तो ये चाचा ‘पलटूराम’ हो जाते हैं .
दुष्यंत-अभय की भिड़ंत
साल 2021 में हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल का नेतृत्व करने वाले चौटाला परिवार की लड़ाई सड़कों पर आ गयी थी. चाचा अभय चौटाला ने इंडियन नेशनल लोकदल पर अपना हक जताया, और तो भतीजे भी बागी हो गए. दोनों भतीजे दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने अपनी अलग पार्टी ‘जननायक जनता पार्टी’ बना डाली. यहां पर भतीजे चाचा पर भारी पड़ गए. हरियाणा विधानसभा चुनावों में जननायक जनता पार्टी किंग मेकर बनकर उभरी. बता दें कि दुष्यंत चौटाला आज हरियाणा के उपमुख्यमंत्री हैं. वहीं चाचा अभय चौटाला के पास आज विधानसभा की सदस्यता भी नहीं है.
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