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बिना लायसेंस के चल रहे हैं शहर के कई आरओ वाटर प्लांट

May 03, 2024

  • वाटर प्लांट का लायसेंस दिल्ली से मिलता है-पानी की शुद्धता का कोई पैमाना नहीं

उज्जैन। शहर के लोग आरओ वाटर के नाम पर सिर्फ छानकर दिया हुआ ठंडा पानी ही पी रहे हैं। हालात यह है कि आरओ प्लांट वालों के पास न तो पानी को फिल्टर करने का लाइसेंस है और ही उसे बाजार में बेचने का। बावजूद शहर का सरकारी तंत्र इस पर कोई लगाम नहीं कस पा रहा हैं या फिर कसना ही नहीं चाहता।



उल्लेखनीय यह है कि शहर में लगभग 200 आरओ वाटर प्लांट हैं। जो गली मोहल्लों में संचालित किए जा रहे हैं। इनका न तो नगर निगम के पास कोई रिकॉर्ड है ना ही अन्य किसी सरकारी विभाग के पास। जो पानी की सिर्फ ठंडा करके सप्लाई कर रहे है और लोग इसे शुद्ध पानी समझकर पी भी रहे हैं। जबकि नियमानुसार प्लांट पर ही एक छोटी सी प्रयोगशाला होनी चाहिए, जिसमें हर रोज पानी की जांच और उसकी रिपोर्ट अपडेट होने के बाद ही सप्लाई की जा सकती है, लेकिन किसी भी प्लांट में ऐसा कोई साधन नहीं है, जिससे पानी की जाँच की जा सके। शहर में लोगों को रोजाना भेजे जाने वाले पानी का टीडीएस नापने तक के कोई इंतजाम नहीं हैं। पानी में कितना टीडीएस रहा है, इसका भी कोई हिसाब-किताब नहीं रहता है। इससे साफ है कि शहरवासी आरओ वाटर के नाम पर जो पानी पी रहे हैं, वह कितना शुद्ध है इसकी कोई गारंटी नहीं हैं। मिनरल वाटर प्लाट के लिए लाइसेंस आवेदन दिल्ली में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंटर्ड को करना होता है। इसकी फीस तीन लाख रुपये से अधिक है। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंटर्ड के अधिकारी मौके पर जाँच करते हैं और पानी का नमूना लेते हैं। नमूना पास होने के बाद अनुमति पत्र दिया जाता है। यह पत्र जिला स्तर पर खाद्य विभाग को दिखाया जाता है। इसके बाद प्लांट का लाइसेंस जारी होता है। लाइसेंस से पहले मशीनों की गुणवत्ता की जांच सहित कई प्रावधान भी पूरे कराए जाते हैं। वाटर प्लांट लगाने के लिए दो सौ फीट की बोरिंग होनी चाहिए। वहाँ पानी खारा न आता हो और वाटर लेविल ठीक हो। इसके लिए दो मशीनों आरओ मशीन और चिलर मशीन की आवश्यकता होती है लेकिन शहर में संचालित प्लांट पर यह व्यवस्थाएँ कम ही हैं, अर्थात न के बराबर हैं। अधिकांश वाटर प्लांट वाले केवल पानी को ठंडा करके सप्लाई कर रहे हैं। जबकि पहले इस पानी को आरओ प्लांट से फिल्टर कर बैक्टीरिया मुक्त करना जरूरी होता है। इसके लिए प्लांट में यूवी रेज से पानी का ट्रीटमेंट करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में सिर्फ 25 से 30 प्रतिशत पानी ही पीने लायक बचता है।

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