उज्जैन। शहर के कई निजी स्कूल ऐसे हैं जो रहवासी मकानों में संचालित किए जा रहे हैं। महज 1500 से 2000 वर्ग फुट के मकानों में विगत कई वर्षों से यह स्कूल संचालित हो रहे हैं। ऐसे स्कूलों में बच्चों के लिए शासन के मापदंड के अनुरूप न तो पर्याप्त कमरे हैं और न ही अन्य सुविधाएँ हैं।
उल्लेखनीय है कि शहर में 200 से ज्यादा निजी स्कूल हैं। 70 प्रतिशत का रहवासी मकानों में संचालन हो रहा है, वहीं इन स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप 30 विद्यार्थी पर एक शिक्षक नहीं हैं। एक शिक्षक के भरोसे 30 से अधिक विद्यार्थियों की कक्षाएँ ली जा रही है। जिला शिक्षा विभाग के अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। दरअसल, ज्यादातर निजी स्कूलों के संचालक किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं। इससे कई तरह के लाभ हैं। राजनीतिक पहुँच होने की वजह से अधिकारी ऐसे स्कूलों का निरीक्षण कर वास्तविकता जानने का प्रयास नहीं करते। दूसरी ओर शासन से विभिन्न तरह से अनुदान लेने स्कूल के लिए धन बटोरते हैं। ऐसे स्कूलों के विरुद्ध यदि कोई अधिकारी आवाज उठता है तो उसे भी राजनीतिक के प्रभाव से दबा दिया जाता हैं। मामले में एडीपीसी गिरीश तिवारी ने बताया कि शासन द्वारा बनाए गए शिक्षा के अधिकार का नियम निजी व शासकीय स्कूलों के लिए समान है।
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