नई दिल्ली (New Delhi)। सोमवार को शाम जब संसद के दोनों सदनों (both Houses of Parliament) की बैठकें स्थगित (meetings adjourned) हुई तो कई सांसद (MPs came out) बाहर निकलते हुए पीछे मुड़कर (looked back) देख रहे थे। उनके चेहरे पर पुराने घर को छोड़ने तमाम यादों को समेटने की टीस उभर रही थी। विशेष सत्र में दिन भर चली बैठकों में दोनों सदनों के सांसद जब इन ऐतिहासिक सदनों में अपना आखिरी भाषण कर रहे थे, तब उनकी निगाहें बरबस इन सदनों में भी चारों तरफ घूम रही थी।
औपनिवेशिक शासन (Colonial rule) से लेकर आजाद भारत (Independent India) की सत्ता के केंद्र में रहा एतिहासिक संसद भवन इतिहास का एक पन्ना भर होगा। सोमवार को मौजूदा संसद भवन के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा ने अपनी आखिरी बैठक की। सांसदों में नई संसद भवन में जाने का उत्साह तो दिखा, लेकिन इस ऐतिहासिक संसद भवन को छोड़ने की टीस भी उभरती देखी।
शाम को जब दोनों सदनों की कार्रवाई समाप्त हुई, तो कई सदस्य सदन से बाहर निकलते समय पीछे मुड़कर भी देख रहे थे कि अब इन सीटों पर कभी नहीं बैठेंगे।
ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में वह सहजता नहीं थी, जिसके लिए यहां पर सांसद दलीय बंधनों से उपर रहकर जुटते हैं। यहां भी अधिकांश चर्चा के केंद्र में पुरानी यादें और नए संसद भवन को लेकर हो रही बातें ही थी। नए संसद भवन में केंद्रीय कक्ष जैसा स्थान नहीं होगा, हालांकि सांसदों के बैठने के लिए अन्य कक्ष हैं, लेकिन केंद्रीय कक्ष जैसा कुछ नहीं होगा।
संसद के कर्मचारी भी उदास दिखे। उनका कहना था कि अब संसद के गोलाकार गलियारों की चहलकदमी थम जाएगी। उनके लिए अपने घर से ज्यादा इस भवन का अपनापन था। यहां एक गर्व का अनुभव होता था और इतिहास से खुद को जोड़ने की अनुभूति होती थी।
बीते तीन दशकों से संसदीय कार्रवाइयों को देख रहे और कई सरकारों को आता जाता देख चुके संसद में काम कर रहे महेंद्र का कहना है कि उन्होंने नए संसद भवन को भी देखा है लेकिन इसकी बात ही कुछ और है। भले इस भवन को अंग्रेजों ने बनाया हो, लेकिन इसी में आजाद भारत की भी शुरुआत हुई थी। इसलिए इसकी अपनी अलग पहचान भी है।
संसद भवन के तमाम पुराने कर्मचारी बीती बातों को भी याद कर रहें हैं और कहते हैं की इस भवन में उन्होंने आतंकी हमले को भी देखा था किस तरह से सुरक्षा प्रहरियों ने अपनी जान देकर संसद की गरिमा और देश के सम्मान को बचाए रखा था। नया संसद भवन भी इसी परिसर में है और जब सांसद नए संसद भवन से ग्रंथालय व संसदीय सौंध की तरफ जाएंगे तब इसी ऐतिहासिक इमारत के साए से ही गुजरेंगे।
कई सांसदों का कहना था कि उनके लिए अभी भी यह स्वीकार कर पाना सहज नहीं हो रहा है कि वह कल से अब इस भवन में नहीं बैठेंगे। नया भवन अत्याधुनिक है कई तरह की सुविधाओं से युक्त है, लेकिन जैसे पुराने घर के प्रति गहरा मोह होता है वही आज सांसदों में देश की इस सर्वोच्च पंचायत के ऐतिहासिक भवन को लेकर देखा गया।
संसद के इतिहास के साथ जुड़े काफी बोर्ड और टी बोर्ड के कर्मचारी भी मायूस रहे। उनके लिए नए भवन में व्यवस्था है, लेकिन उनके लिए इसकी यादें अलग है। कितने ही दिग्गज नेताओं ने उनके पास आकर चाय पी है कॉफी पी है और कितने ऐतिहासिक मौके पर उन्होंने देर रात तक यहां पर काम किया है। केंद्रीय कक्ष से जुड़े होने से अलग ही माहौल रहता था।
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