उज्जैन। शिप्रा नदी में अब तक डूबकर मरने वालों की संख्या सैंकड़ों में है लेकिन कई तो तत्काल ईलाज नहीं मिलने के कारण मर गए.. क्योंकि रामघाट पर कोई एम्बुलेंस खड़ी नहीं रहती कि पानी से निकाले गए व्यक्ति को तत्काल अस्पताल ले जाया जा सके.. उज्जैन में जिंदगी और मौत क्या इतनी सस्ती है..? उज्जैन की पहचान जीवनदायिनी के नाम से शहर को पहचान दिलाने वाली शिप्रा नदी के अस्तित्व और सफाई के लिए करोड़ों अरबों रुपए मंजूर हुए लेकिन न शिप्रा नदी सुधरी न हीं उसका अस्तित्व जैसी शिप्रा पहले थी वैसे ही आज है। शिप्रा नदी के घाटों पर देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के डूबकर मौत के मुंह में समाने का क्रम लगातार जारी है। हर दिन एक न एक मौत शिप्रा नदी के पानी में डूब कर श्रद्धालुओं की हो रही है। ऐसा नहीं है कि सुरक्षा व्यवस्था के लिए यहां तैराक दल मौजूद नहीं है । एसडीआरएफ और होमगार्ड की ओर से शिप्रा नदी पर सुरक्षा व्यवस्था एवं डूबते हुए लोगों को बचाने के लिए कुल 18 जवान तैनात जो 3 शिफ्टों में अलग-अलग काम करते हैं।
तैराक दलों के पास गहरे पानी में डूबते व्यक्ति को बचाने के लिए आवश्यक संसाधन भी मौजूद हैं जैसे लाइफ गार्ड, नाव, रिंग लाइफबाय, थ्रोबैग रस्सी, जैकेट जैसे संसाधन उपलब्ध हैं और इन के माध्यम से शिप्रा नदी के घाटों पर तैनात तैराक दल के जवान तत्काल डूबे हुए व्यक्ति को नदी से बाहर भी निकाल लेते हैं या सूचना मिलने पर तुरंत पहुंच भी जाते हैं, लेकिन सबसे बड़ी आवश्यकता है शिप्रा नदी के घाट पर 24 घंटे प्रथम उपचार के लिए एक एंबुलेंस की जिसके अंदर एक मेडिकल टीम मौजूद हो जो नदी से निकले व्यक्ति को प्रथम उपचार देकर तत्काल जिला अस्पताल के लिए रवाना करे, लेकिन उज्जैन शहर में विकास के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए तो खर्च किए जा रहे हैं लेकिन एक एंबुलेंस शिप्रा नदी के घाट पर लोगों की जान बचाने के लिए तैनात नहीं की जा रही है। देशभर से आने वाले श्रद्धालु जब अपने घर वालों अपने मासूम बच्चों को शिप्रा नदी के गहरे पानी में मरता देखते हैं तो इस शहर से बुरी यादें लेकर वापस जाते हैं । 11 जून को गुजरात के सूरत से आए 14 वर्षीय शुभम पिता रामधर सुबह 8.30 बजे के लगभग शिप्रा नदी के राम घाट पर डूब गया था। तैराक दल ने शुभम को नदी से बाहर निकाल भी लिया था और शुभम की सांसें भी चल रही थी लेकिन एंबुलेंस नहीं होने के कारण और प्रथम उपचार नहीं मिलने के कारण शुभम को ई रिक्शे में जिला अस्पताल भिजवाया गया था, लेकिन शिप्रा नदी से जिला अस्पताल आते समय रास्ते के खचाखच भरे ट्राफिक ने शुभम की जान ले ली। अगर उस वक्त शिप्रा नदी के घाट पर एंबुलेंस खड़ी होती तो शुभम को प्रथम उपचार देकर अस्पताल एंबुलेंस से रवाना किया जाता और एंबुलेंस को ट्राफिक में जिला अस्पताल तक आने में आसानी भी होती ऐसे में शुभम की जान बचाई जा सकती थी। साथ ही कई समय से नदी के घाट पर पानी के अंदर चैन बांधने की मांग की जा रही है लेकिन इतनी छोटी-छोटी मांगों की और भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
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