नई दिल्ली: देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में बुधवार को दोबारा सुनवाई हुई. इस संबंध में दायर 20 याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को सुनवाई शुरू की थी, जो बुधवार को भी जारी है.
इस संविधान पीठ में CJI चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं, जिनके सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र सरकार का, तो वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा.
‘कोर्ट को समाज से कहना होगा कि इस कलंक को दूर कीजिए’
समलैंगिक विवाह को कानून मान्यता देने की मांग पर याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्त मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘अगर भारत को आगे बढ़ना है तो इस कोर्ट को पहल करनी होगी. कोर्ट को समाज से कहना होगा कि इस कलंक को दूर कीजिए. इस हठधर्मिता को दूर कीजिए, क्योंकि इस कोर्ट को नैतिक विश्वास प्राप्त है.’
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी कानून नेतृत्व करता है, लेकिन कभी-कभी समाज नेतृत्व करता है. यह अदालत मौलिक अधिकार की अंतिम रक्षक है. सुधार भी एक सतत प्रक्रिया है. कोई भी पूर्ण और समान नागरिकता से इनकार नहीं कर सकता है, जो बिना विवाह, परिवार के होगी.’
रोहतगी ने कहा, ‘मैं बेंच से किसी नए सिद्धांत का आह्वान नहीं कर रहा हूं. खजुराहो और हमारी पुरानी पुस्तकों में पहले से ही इसका उल्लेख मौजूद है, लेकिन हम इस प्रक्रिया को अनाआपराधिक (डिक्रिमनालाईज) होकर ही रह गया.’
मुकुल रोहतगी ने कहा कि औपनिवेशिक विधान के स्थान पर हम औपनिवेशिक मानसिकता शब्द का प्रयोग कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘377 के फैसले के बाद भी मानसिकता का कुछ हिस्सा बचा हुआ है. केंद्र या राज्य की दलीलों में कुल मिलाकर जहां भी पति और पत्नी का उपयोग किया जाता है, उसे लिंग तटस्थ बनाना चाहिए.’
बहुमत के दबाव में दबे जा रहे समलैंगिक
मुकुल रोहतगी ने कहा कि समलैंगिक बहुमत के दबाव में दबे जा रहे हैं. यह मानसिकता है जो हमें दैनिक जीवन में परेशान करती है. उन्होंने कहा कि समाज कानून को स्वीकार करता है, यहां समाज को हमें मान्यता देने पर ज़ोर देने की ज़रूरत है.’ रोहतगी ने कहा, ‘मैं बेंच से किसी नए सिद्धांत का आह्वान नहीं कर रहा हूं. खजुराहो और हमारी पुरानी पुस्तकों में पहले से ही इसका उल्लेख मौजूद है, लेकिन हम इस प्रक्रिया को अनाआपराधिक (डिक्रिमनालाईज) होकर ही रह गया.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि कोर्ट सिर्फ 377 को रद्द करने तक नहीं रुक सकती उसे समलैंगिक लोगों को दूसरे लोगों के समान अधिकार भी देना होगा, ताकि हम समाज में सम्मान के साथ रह सके. उन्होंने कहा, ‘मुझे इस अदालत में आने का अधिकार है और अगर यह अदालत कहती है कि हम कुछ नहीं कर सकते तो यह अपने संवैधानिक कर्तव्य से चूक जाएगी. मैं संसद नहीं जा सकता, लेकिन मैं यहां आ सकता हूं और इस अदालत का दरवाजा खटखटा सकता हूं. यदि एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित होता है, तो उसे इस अदालत में आने का अधिकार है.’
रोहतगी से बोले जज- आप बस वही बात चुन रहे जो आपको सूट करता है
मुकुल रोहतगी की इन दलीलों पर जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने उनसे सवाल किया कि क्या आप सिर्फ वो बातें चुन रहे हैं जो आपको सूट करता है? उन्होंने मुकुल रोहतगी से पूछा, ‘आप एक तर्क में महिला और पुरुष में भेद की बात कर रहे हैं और एक तर्क में जेंडर न्यूट्रल बनना चाह रहे हैं, आखिर आप चाहते क्या हैं? क्या आप सिर्फ उन बातों को महत्व दे रहे हैं जो सिर्फ आपको सूट कर रहा है.’ इसके बाद रोहतगी ने विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को यह दिखाने के लिए पढ़कर सुनकर कि लैंगिक तटस्थ शब्दों को कहां डाला जाना चाहिए.
अभिषेक मनुसिंघवी से बोले CJI- आज ही खत्म करें दलीलें
मुकुल रोहतगी के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनुसिंघवी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील देनी शुरू की. उन्होंने कोर्ट से कहा, ‘मैं रोहतगी द्वारा किए गए 95 प्रतिशत सबमिशन को नहीं दोहराऊंगा. मैं कल दोपहर लंच तक समाप्त कर दूंगा.’ इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘कृपया इसे आज ही समाप्त करें.’ वहीं सिंघवी ने कहा, ‘यह थोड़ी देर की बात है.. मैं कुछ पहलू जोड़ना चाहूंगा.’ इस जस्टिस कौल ने कहा, ‘देखिए आपको इस कोर्ट का अनुभव है. इस देश में कहीं भी अनिश्चितकाल तक बहस नहीं चल सकती. दलीलें खत्म करने की सीमा आज ही है.’
प्यार को शादी में बदलने के अधिकार की मांग
मनुसिंघवी ने अपनी दलीलें शुरू करते हुए कहा, ‘समलैंगिक विवाह में इतने सारे पहलू शामिल हैं कि समान लिंग विवाह की मान्यता को एक ओपन नहीं छोड़ा जा सकता है. यहां मुद्दा वैधानिक प्रावधान या नोटिस आपत्ति व्यवस्था नहीं है. इस असम मुद्दा चुनने का अधिकार है और इसका दिल वैवाहिक संबंध है… यहां लिंग और पहचान की परवाह किए बिना प्यार के विचार को शादी में बदलने के अधिकार की मांग है.
वरिष्ठ अधिवक्ता मनुसिंघवी ने कहा, ‘समलैंगिक विवाह की मान्यता एक बहुत बड़ी जीत होगा.. यह अदालत हत्या को नहीं रोक सकती है, लेकिन यह कह सकती है कि कानून में हत्या गलत है.’
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