जन्मदिन पर विशेष
– रमेश सर्राफ धमोरा
हिन्दी सिनेमा जगत में मनोज कुमार का नाम कभी अभिनय के लिए नहीं बल्कि उनकी फिल्मों के लिए लिया जाता है। जिस समय सभी अभिनेता रोमांटिक छवि की फिल्में करना पसंद करते थे, उस समय मनोज कुमार ने हिन्दी सिनेमा का रुख देशभक्ति की तरफ किया। मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों में भारतीयता की खोज की। उन्होंने यह भी बताया कि देशप्रेम और देशभक्ति क्या होती है।
मनोज कुमार फिल्मों में रोमांस करने की बजाय देशभक्ति फिल्में करना पसंद करते थे। मनोज कुमार की पांच फिल्मों में भारत नाम रहा। जिसके कारण वो भारत कुमार के नाम से भी लोकप्रिय हो गए। मनोज ने अपने कैरियर में शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम तथा क्रांति जैसी देशभक्ति पर आधारित अनेक बेजोड़ फिल्मों में काम किया। शहीद उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म में उनके द्वारा निभाया गया शहीद भगत सिंह का किरदार बेहतरीन रहा। शहीद के दो साल बाद उन्होंने बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म उपकार का निर्माण किया। यह भी सच है कि यदि मनोज कुमार सन् 1967 में उपकार न बनाते तो वह आज न तो भारत कुमार होते और शायद उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी नहीं मिला होता। मनोज कुमार हमेशा कहते हैं कि उपकार फिल्म का ही उपकार है मुझपर जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। उपकार देश की ऐसी पहली फिल्म थी जिसमें किसानों के योगदान व उनकी समस्याओं के साथ देश के फौजियों के योगदान को भी एक साथ दिखाया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर उनके जवान जय किसान के नारे पर बनी इस फिल्म में मनोज कुमार पहली बार भारत कुमार के नाम के एक किसान के किरदार में परदे पर आये थे। इस फिल्म के सुपरहिट होने के बाद वह खुद मनोज कुमार कम और भारत कुमार ज्यादा हो गए।
मनोज कुमार की फिल्म उपकार खूब सराही गई और उसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। फिल्म को द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार तथा सर्वश्रेष्ठ संवाद का बीएफजेए अवार्ड भी दिया गया। फिल्म में गाया गया गीत- मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरा-मोती श्रोताओं के बीच आज भी चाव के साथ सुना जाता है।
हिंदी फिल्म जगत में मनोज कुमार को एक ऐसे कलाकार के तौर पर जाना जाता है। जिन्होंने फिल्म निर्माण की प्रतिभा के साथ-साथ निर्देशन, लेखन, संपादन और बेजोड अभिनय से भी दर्शकों के दिल में अपनी खास पहचान बनायी है। 1957 से 1962 तक मनोज कुमार फिल्म इंडस्ट्री मे संघर्ष करते रहे। फिल्म फैशन के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने कांच की गुडिया, रेशमी रूमाल, सहारा, पंचायत, सुहाग सिंदूर, हनीमून, पिया मिलन की आस जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया। लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुयी।
मनोज कुमार का असली नाम नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी है। उनका जन्म 24 जुलाई 1937 में ऐब्टाबाद (अब पकिस्तान) में हुआ था। वह जब दस वर्ष के थे बटवारे की वजह से उनका पूरा परिवार राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में आकर बस गया था। मनोज कुमार ने अपनी स्नातक की शिक्षा दिल्ली के हिंदू कॉलेज से पूरी की, इसके बाद बतौर अभिनेता बनने का सपना लेकर वह मुंबई आ गये। बतौर अभिनेता मनोज कुमार ने अपने सिने करियर की शुरूआत 1957 में रिलीज फिल्म फैशन से की। कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गयी थी।
मनोज कुमार के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट की 1962में प्रदर्शित क्लासिक फिल्म हरियाली और रास्ता से चमका। फिल्म में उनकी नायिका की भूमिका माला सिन्हा ने निभायी। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने मनोज कुमार को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। 1964 में मनोज कुमार की एक और सुपरहिट फिल्म वो कौन थी प्रदर्शित हुई। फिल्म में उनकी नायिका की भूमिका साधना ने निभायी। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमय मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गये।
1965 में मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्म गुमनाम और दो बदन भी रिलीज हुई। इस फिल्म में रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी, मधुर गीत-संगीत और ध्वनि का कल्पनामय इस्तेमाल किया गया था। इस फिल्म में हास्य अभिनेता महमूद पर फिल्माया यह गाना हम काले है तो क्या हुआ दिलवाले है दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था।
1965 में मनोज कुमार शहीद में भगत सिंह के किरदार में नजर आये। वर्ष 1967 में रिलीज फिल्म उपकार से मनोज कुमार निर्माता-निर्देशक बने। 1970 में मनोज कुमार के निर्माण और निर्देशन में बनी एक और सुपरहिट फिल्म पूरब और पश्चिम प्रदर्शित हुयी। फिल्म के जरिये मनोज कुमार ने एक ऐसे मुद्दे को उठाया जो दौलत के लालच में अपने देश की मिट्टी को छोड़कर पश्चिम में पलायन करने को मजबूर है।
1972 में मनोज कुमार के सिने करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म शोर प्रदर्शित हुई। वर्ष 1974 में प्रदर्शित फिल्म रोटी कपड़ा और मकान मनोज कुमार के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। 1976 में प्रदर्शित फिल्म दस नम्बरी की सफलता के बाद मनोज कुमार ने लगभग पांच वर्षो तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया।
1981 में मनोज कुमार ने फिल्म क्रांति के जरिये अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की। मनोज कुमार ने अपने दौर के सभी नायकों और नायिकाओं के साथ काम किया है। राजेंद्र कुमार और राजेश खन्ना के दौर में भी वो कामयाब रहे और 1962 से लेकर 1981 तक सुपरहिट फिल्में देते रहे।
अपने सिने करियर में मनोज कुमार सात फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये हैं। 1967 में प्रदर्शित फिल्म उपकार के लिये उन्हें सर्वाधिक चार फिल्म फेयर पुरस्कार दिये गये जिनमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशन, कहानी और डॉयलाग का पुरस्कार शामिल है। इसके बाद वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म बेईमान, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता 1974 में प्रदर्शित फिल्म रोटी कपड़ा और मकान, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, वर्ष 1998 में लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से भी मनोज कुमार को सम्मानित किया गया।
1992 में उन्हे भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 2008में उन्हे स्टार स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया। 2009में दादा साहेब फाल्के अकादमी द्वारा फाल्के रत्न पुरस्कार दिया गया। 2012संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू जर्सी शहर में उन्हे भारत गौरव पुरस्कार दिया गया। 2013 में जागरण फिल्म महोत्सव में उन्हे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3 मई 2016 को दिल्ली में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों मनोज कुमार को फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए फिल्म जगत का सबसे बड़ा दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया था।
क्रांति के बाद मनोज कुमार फिर कभी वैसी कामयाबी नहीं मिल सकी। लिहाजा वो फिल्मों से दूर होते गये। उन्होने फिल्मों में नाना, दादा के रोल भी नहीं किये। मनोज कुमार ऐसे पहले अभिनेता थे जिन्होंने शिर्डी साईं बाबा पर शिर्डी के साईबाबा नाम से फिल्म लिखी, इसमें काम किया और इसे बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। जनवरी 1977 में यह फिल्म प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद साईं बाबा में भक्तों की आस्था बढ़ने लगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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