फिल्म समीक्षा। देखनीय फिल्म है जोरम। लेकिन अगर आपको फिल्म में प्यार-मोहब्बत, ढिशुम-ढिशुम और रोमांटिक गाने ही देखने का शौक है तो मत जाइए। जोरम एक आदिवासी बच्ची का नाम है। यह सर्वाइकल थ्रिलर है। रहस्य-रोमांच तो है, लेकिन सलमान खान की स्टाइल का नहीं। अश्लील और फूहड़ डायलॉग भी नहीं हैं। इसमें झारखंड के आदिवासियों की कहानी है, नक्सलवादियों की, बांध और खदानों की। इंसान के संघर्ष, बेबसी, लडऩे का जज्बा, भावनाएं और प्रकृति को दिखाया गया है। झारखंड के आदिवासी दसरू के रूप में मनोज वाजपेयी ने कमाल की एक्टिंग की है। यह फिल्म बुसान फिल्म फेस्टिवल, सिडनी फिल्म फेस्टिवल, एडिनबर्ग फिल्म फेस्टिवल और धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड और प्रशंसा पा चुकी है। देवाशीष माखीजा द्वारा निर्देशित इस सर्वाइकल एक्शन-थ्रिलर फिल्म को पसंद किया जा रहा है।
कहानी आदिवासी दसरू की है, जो झारखंड के झिनपीड़ी गांव में रहता है और नक्सली गुट के साथ हिंसा में शामिल है, लेकिन मजबूरी में बंदूक उठाना उसे पसंद नहीं आया। इसलिए वह नक्सलवादियों के डर से अपनी पत्नी और 3 महीने की बच्ची जोरम के साथ मुंबई आता है, जहां वह मजदूरी करता है। फिर उसकी पत्नी की हत्या हो जाती है, जिसका इल्जाम दसरू पर लगता है। इसके बाद वह पुलिस से बचने के लिए अपनी बेटी के साथ वापस अपने गांव भागने की कोशिश में जुट जाता है। गांव में नक्सलियों का आतंक है। हर दूसरा आदमी नक्सली है या उनका सिम्पेथाइजर। मुंबई की पुलिस उसे पत्नी का हत्यारा मानकर खोजते-खोजते झारखंड पहुंच जाती है। गांव वाले अगर नक्सलियों का साथ देते हैं तो उन्हें पुलिस मारती है और अगर लोग पुलिस की मदद करते हैं तो नक्सली कहर बरपाते हैं। दसरू फंसा हुआ है। तीन माह की बेटी को लेकर वह गांव लौटकर देखता है कि नदी का रुख मोड़ दिया गया है, क्योंकि उस पर बांध बना दिया गया है। जंगल काट दिए गए हैं और वहां लौह अयस्क की खदानें खोदी जा रही हैं। स्थानीय नेता कंपनी की दलाली में जुटे हैं।
इस फिल्म में पुलिस का दूसरा कोमल पक्ष भी दिखाया गया है। महिला पुलिसकर्मी अपने अफसर को बताती है कि दसरू जिस पोटली को पीठ पर बांधे लेकर भाग रहा है, उसमें सोना-चांदी नहीं, उसकी तीन माह की बेटी है। पुलिस अफसर उसे गोली नहीं मारता और जीवित पकडऩे की कोशिश में उसकी मदद करता है। फिल्म में अनेक मोड़ हैं। मनोज वाजपेयी के अलावा स्मिता तांबे, मोहम्मद जीशान अयूब, मेघना ठाकुर, तनिष्ठा चटर्जी और धनीराम प्रजापति आदि का अभिनय भी उम्दा है।
डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
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