नई दिल्ली (New Delhi)। देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) का 26 सितंबर को 91वां जन्मदिन है। देश में आर्थिक सुधारों के जनक के रूप में पहचान रखने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 91 साल को हो गए हैं। वे अपना 91वां जन्मदिन मनाएंगे। मनमोहन सिंह का जन्मदिन 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) के एक गांव में हुआ था।
22 मई 2004 को देश के पहले सिख पीएम बनकर प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभालने वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह आर्थिक सुधारों के जनक कहे जाते रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं उनके नाम दर्ज उपलब्धियां उनके पीएम बनने के बाद की ही नहीं बल्कि उससे पहले की भी हैं? 1991 में पीएम नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार में वह वित्त मंत्री थे. यह वह दौर था जब देश दिवालिया होने के कगार पर था.
आरबीआई के गवर्नर भी रहे और यूजीसी के अध्यक्ष भी…
वैसे बता दें कि वह 1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष के तौर पर रहे और 1990 में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए. जब पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1999 में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया. इसके अलावा वह वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी वह रह चुके हैं।
2- साल में 100 दिन का रोजगार पक्का…रोजगार गारंटी योजना
बेरोजगारी से जूझते देश में रोजगार गारंटी योजना की सफलता का श्रेय मनमोहन सिंह को जाता है. इसके तहत बता दें कि साल में 100 दिन का रोजगार और न्यूनतम दैनिक मजदूरी 100 रुपये तय की गई. इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका फिर से नामकरण किया गया. इसकी खास बात यह भी है कि इसके तहत पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी भी भेदभाव की अनुमति नहीं है. इसलिए, पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन भुगतान किया जाना चाहिए. सभी वयस्क रोजगार के लिए आवेदन कर सकते हैं.
इसके तहत यदि सरकार काम देने में नाकाम रहती है तो आवेदक बेरोज़गारी भत्ता पाने के हकदार होंगे. मनरेगा यानी महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट 2005, ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत यूपीए के कार्यकाल में डॉक्टर मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में शुरू की गई थी. रोजगार गारंटी योजना दुनिया की सबसे बड़ी पहलों में से एक है. 2 फरवरी 2006 को 200 जिलों में शुरू की गई, जिसे 2007-2008 में अन्य 130 जिलों में फैलाया गया. 1 अप्रैल 2008 तक इसे भारत के सभी 593 जिलों में इसे लागू कर दिया गया. 2006-2007 में परिव्यय 110 अरब रुपए था, जो 2009-2010 में तेज़ी से बढ़ते हुए 391 अरब रुपए हो गया था जोकि 2008-2009 बजट की तुलना में राशि में 140% वृद्धि दर्ज की गई.
3- आधार कार्ड योजना की संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी की तारीफ
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की आधार योजना की यूएन ने भी तारीफ की थी. यूएन की और से कहा गया था कि आधार स्कीम भारत की बेहतरीन स्कीम है. जैसा कि हम और आप देख ही रहे हैं कि वर्तमान पीएम मोदी की सरकार में आधार संख्या को यूनीक नंबर होने के चलते विभिन्न कामों में अनिवार्य कर दिया गया है. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India) सन 2009 में मनमोहन सिंह के समय ही गठित किया गया जिसके तहत सरकार की इस बहुउद्देशीय योजना को बनाया गया. देश के हर व्यक्ति को पहचान देने और प्राथमिक तौर पर प्रभावशाली जनहित सेवाएं उस तक पहुंचाने के लिए इसे शुरू किया था. आज पैन नंबर को इससे लिंक करना, आपके मोबाइल नंबर को लिंक करना, बैंक खातों से भी आधार को जोड़ा जाना बेहद जरूरी हो चुका है. यहां तक कि डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए भी आधार की जरूरत अनिवार्य कर दी गई है. पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री कह चुके हैं कि सरकार ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी आधार को जल्द ही अनिवार्य कर सकती है. 28 जनवरी 2009 को नोटिफिकेश जारी करके इसके लिए जो कार्यालय तैयार किया गया उसमें 115 अधिकारियों और स्टाफ की कोर टीम थी.
4- भारत और अमेरिका के बीच हुई न्यूक्लियर डील, एक माइलस्टोन
साल 2002 में एनडीए से देश की बागडोर यूपीए के हाथ में जब गई. गठबंधन सरकार के तमाम प्रेशर के बीच भारत ने इंडो यूएस न्यूक्लियर डील को अंजाम दे दिया. साल 2005 में जब इस डील को अंजाम दिया गया उसके बाद भारत न्यूक्लियर हथियारों के मामले में एक पावरफुल नेशन बनकर उभरा. उस वक्त यूएस में जॉर्ज बुश प्रेजिडेंट हुआ करते थे. इस डील के तहत यह सहमति बनी थी कि भारत अपनी इकॉनमी की बेहतरी के लिए सिविलियन न्यूक्लियर एनर्जी पर काम करता रहेगा.
5- शिक्षा का अधिकार सौंपा….
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही राइट टु एजुकेशन यानी शिक्षा का अधिकार अस्तित्व में आया. इसके तहत 6 से 14 साल के बच्चे को शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया गया. कहा गया कि इस उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी ही जाएगी.
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