नई दिल्ली. भारत (India) की विदेश नीति (foreign policy) को आज पूरी दुनिया में सराहा जाता है, लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) जिस सफल विदेश नीति का संचालन कर रहे हैं, उसका आधार देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) और मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने ही तैयार किया था। देश की विदेश नीति के लिए कुछ घटनाएं परिवर्तनकारी रहीं, जिनमें साल 1991 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश में आर्थिक उदारीकरण की घटना है, जिसने देश की विदेश नीति को नया आकार दिया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरण में परमाणु परीक्षण ऐसी घटना थी, जिसने देश की विदेश नीति के दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव किया। मनमोहन सिंह की विशेषज्ञता के क्षेत्र वित्त और अर्थशास्त्र रहे, लेकिन विदेश नीति में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा, जिस पर कम बात होती है। तो आइए जानते हैं कि देश की विदेश नीति में मनमोहन सिंह ने कैसे अहम भूमिका निभाई।
अमेरिका के साथ परमाणु समझौता
साल 2004 में जब डॉ. मनमोहन सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी के बाद प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली तो विदेश नीति पर उनका विशेष फोकस रहा। पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद से भारत की विदेश नीति जिस दिशा में आगे बढ़ी थी, मनमोहन सिंह ने भी उसे उसी दिशा में जारी रखा और भारत को एक जिम्मेदार परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में स्थापित किया। यही वजह रही कि भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता हुआ। साथ ही मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) से क्लीन-चिट मिली। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता भारत की ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इससे न सिर्फ भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली, बल्कि इसके जरिए भारत और अमेरिका के बीच सहयोग का रास्ता भी खुला, जो आज नई ऊंचाइयों पर जा चुका है।
विदेश मंत्री जयशंकर भी हैं मनमोहन सिंह के मुरीद
जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तब एस जयशंकर विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (अमेरिका) थे। इसके चलते डॉ. जयशंकर भारत-अमेरिका के बीच हुए असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत करने और विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाने वालों में प्रमुख व्यक्ति थे। डॉ. सिंह के नेतृत्व में डॉ. जयशंकर ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से मंजूरी दिलाने में बहुत मेहनत की और दोनों को असैन्य परमाणु समझौते के वास्तुकारों के रूप में जाना जाता है। इस सौदे का विरोध वामदलों द्वारा किया गया, लेकिन राजनीतिक दबाव के बावजूद मनमोहन सिंह पीछे नहीं हटे और इस सौदे को हकीकत बनाने के लिए मनमोहन सिंह ने साल 2008 में अपनी सरकार को भी दांव पर लगा दिया था।
मनमोहन सिंह द्वारा रखी गई इस विदेश नीति की नींव को साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर और मजबूत किया गया। अब डॉ. जयशंकर ही मोदी सरकार में बतौर विदेश मंत्री काम कर रहे हैं। ऐतिहासिक परमाणु समझौते का ही असर है कि आज अमेरिका के अलावा, भारत का फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, दक्षिण कोरिया, अर्जेंटीना, कजाखस्तान, मंगोलिया, चेक गणराज्य, श्रीलंका और नामीबिया के साथ असैन्य परमाणु समझौता है। मनमोहन सिंह के निधन पर ट्वीट करते हुए डॉ. जयशंकर ने लिखा कि ‘भारतीय आर्थिक सुधारों के निर्माता माने जाने के साथ ही वे (मनमोहन सिंह) हमारी विदेश नीति में रणनीतिक सुधारों के लिए भी समान रूप से जिम्मेदार थे। उनके साथ काम करना मेरे लिए बेहद सौभाग्य की बात थी। उनकी दयालुता और शिष्टाचार को हमेशा याद रखूंगा।’
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