सावन का महीना और सोमवार का दिन दोनों भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित होता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। जब सावन का महीना और सोमवार दोनों एक साथ हो तो सावन सोमवार का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। मान्यता है कि सावन सोमवार(Monday) को भगवान शिव की पूजा करने से वह बहुत जल्द ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के सभी पाप नष्ट करते हैं।
वहीं सावन का मंगलवार माता पार्वती को समर्पित होता है। सावन के मंगलवार को मंगला गौरी अर्थात माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन सुहागिन महिलायें (married women) मंगला गौरी का व्रत रखकर अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त करती है। सावन के मंगलवार को सुहागिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर शाम को मंगला गौरी की विधि-विधान से पूजा (worship) अर्चना करती हैं। और व्रत कथा का श्रवण करती हैं या पढ़ती है। इससे मंगला गौरी प्रसन्न होकर अखंड सौभाग्यवती होने और पुत्र प्राप्ति का वरदान देती हैं। सावन के प्रत्येक मंगलवार को सुहागिन महिलाएं पूरे विधि-विधान से इस व्रत का अनुष्ठान करती हैं।
मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में धर्मपाल नामक एक सेठ था। उसके पास धन, दौलत, वैभव की कोई कमी नहीं थी। परन्तु कोई पुत्र न होने के कारण वह अत्यंत चिंतित और दुखी रहता था। कुछ समय बाद उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, परंतु उसे शाप था कि 16 वर्ष की अवस्था में सांप के काटने उसकी मृत्यु हो जाएगी। सेठ धर्मपाल ने अपने बेटे की शादी 16 वर्ष की अवस्था के पहले ही कर दी। जिस युवती से उसकी शादी हुई।
उस युवती की मां मंगल गौरी का व्रत रखती थी। उसने माता गौरी से अपने बेटी के सुखी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। माता गौरी के आशीर्वाद से नवविवाहित लड़की कभी विधवा नहीं हो सकती थी। सास के आशीर्वाद से धर्मपाल के लड़के की आयु 100 हो गई। इस कारण सुहागिनें मंगला गौरी का व्रत रखका उनकी विधि-विधान से पूजा करती हैं।
इस व्रत से सुहागिनों को अखंड सौभाग्यवती होने, पति की लंबी आयु होने, संपन्न जीवन जीने तथा सुखी वैवाहिक जीवन जीने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। कथा सुनने और पूजा खत्म होने के बाद सुहागिन महिलायें अपने सास और ननद को 16 लड्डू देती हैं।
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