गंजबासौदा। भगवान के नाम अनेक हैं, पर भगवान एक है। दीपक अनेक हैं, पर प्रकाश एक है। फूल अनेक हैं,पर सुवास एक है । स्तुतियां अनेक हैं, परमात्मा एक ही हैं । श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के सातवें दिन आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि अजित सागर जी महाराज ने बताया कि भगवान की स्तुतियां गुणों की अपेक्षा से अलग-अलग प्रकार से की जाती हैं। जिस प्रकार भगवान ने घातिया कर्मों का नाश कर सिद्ध पद को प्राप्त किया, उसी प्रकार हमें भगवान की भक्ति कर राग द्वेष से दूर होकर आत्म कल्याण करना चाहिए। भगवान की दृष्टि में समग्रता है। राग- द्वेष नहीं है। जबकि यह जीव संसार में राग द्वेष सहित आया और अनंत काल से दुख पा रहा है । अब हमें भी राग- द्वेष , बुरे कार्य कम करना होगे, तभी हम भी वीतरागी बन सकते हैं। भगवान से किया गया राग सार्थक है। संसार से किया गया राग निर्थक है। भगवान से राग करना प्रशस्त राग है । और प्रशस्त राग से जीव का कल्याण होता है । जबकि संसार से किया राग दुर्गति का कारण बनता है। गाय के दूध और अकउआ के दूध में जितना अंतर होता है उतना ही अंतर संसार से राग करने और परमात्मा से राग करने में है।
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