नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 21 जुलाई को TMC के ‘शहीद दिवस’ पर बांग्लादेश के शरणार्थियों को आश्रय देने की पेशकश की थी. उनके इस बयान पर बांग्लादेश ने आपत्ति जताई है. पड़ोसी मुल्क की ओर से कहा गया है कि इस तरह की घोषणा से आतंकवादी फायदा उठा सकते हैं. आइए जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के किस प्रस्ताव का हवाला देकर ममता बनर्जी ने पड़ोसी देश के शरणार्थियों की मदद करने की पेशकश की थी.
ममता बनर्जी ने ‘शहीद दिवस’ पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं बांग्लादेश के बारे में कुछ नहीं बोल सकती क्योंकि वह एक संप्रभु देश है. यह विषय केंद्र का है. लेकिन अगर असहाय लोग (बांग्लादेश से) बंगाल का दरवाजा खटखटाते हैं, तो हम उन्हें आश्रय देंगे. यह संयुक्त राष्ट्र का एक प्रस्ताव भी है कि पड़ोसी शरणार्थियों का सम्मान किया जाए.’
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार शरणार्थी वह है जो- ‘जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारण सताए जाने के उचित भय के कारण अपनी राष्ट्रीयता के देश से बाहर है और उस देश की सुरक्षा का लाभ उठाने को तैयार नहीं है.’ जो लोग राष्ट्रीयता नहीं रखते हैं और उचित भय के कारण अपने पूर्व निवास वाले देश से बाहर हैं और वहां लौटने में असमर्थ है या अनिच्छुक है, उन्हें शरणार्थी माना जाएगा.
ममता बनर्जी ने ‘शहीद दिवस’ पर जब असहाय लोगों को आश्रय देने की बात की थी, तब उन्होंने कहां था कि संयुक्त राष्ट्र का इस पर एक प्रस्ताव भी है. संयुक्त राष्ट्र (UN) का रिफ्यूजी कन्वेंशन 1951 शरण पाने वाले व्यक्तियों के अधिकार और शरण देने वाले देशों की जिम्मेदारियां तय करती है.
UN के 1951 का कन्वेंशन नॉन-रिफाउलमेंट के सिद्धांत पर आधारित है. यह इस बात पर जोर देता है कि शरणार्थियों को ऐसे देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिए जहां उनके जीवन या स्वतंत्रता को गंभीर खतरा हो. जो भी इस कन्वेंशन के सदस्य हैं, उनसे से यह अपेक्षा की जाती है कि वे शरणार्थियों के अधिकारों का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने में UNHCR के साथ सहयोग करेंगे.
शुरूआत में, 1951 कन्वेंशन, खासतौर पर, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय शरणार्थियों की रक्षा करने तक ही सीमित था. ऐसा इसलिए क्योंकि दस्तावेज़ में “1 जनवरी 1951 से पहले होने वाली घटनाएं” शब्द शामिल हैं, जिन्हें व्यापक रूप से उस तारीख से पहले “यूरोप में होने वाली घटनाओं” के रूप में समझा जाता है.
4 अक्टूबर 1967 को अपनाए गए 1967 प्रोटोकॉल में इन भौगोलिक और समय-आधारित सीमाओं को हटाकर 1951 के फैसलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाया गया. इससे यूरोप और दूसरे देश के उन सभी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, जो उत्पीड़न के कारण दूसरे देश में शरण लेना चाहते हैं.
UN के 1951 कन्वेंशन में स्पष्ट किया गया है कि शरणार्थियों को आवास, रोजगार, शिक्षा, सार्वजनिक राहत और सहायता, धर्म की स्वतंत्रता, अदालतों तक पहुंच और राज्य के क्षेत्र के भीतर आंदोलन करने की स्वतंत्रता का अधिकार मिलेगा. उन्हें पहचान और यात्रा दस्तावेजों की भी गारंटी दी जाएगी.
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