नई दिल्ली (New Delhi) । 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे (mallikarjun kharge) को कांग्रेस अध्यक्ष पद (congress president post) की जिम्मेदारी संभाले आठ माह हुए हैं। पर इन आठ माह में खड़गे पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने और कार्यकर्ताओं (workers) में उम्मीद जगाने में सफल रहे हैं। पार्टी में एक नई कार्य संस्कृति पैदा हुई है। उन्होंने पार्टी में जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही की भी शुरुआत की है।
मल्लिकार्जुन खड़गे पूरे 22 साल बाद हुए संगठन चुनाव में जीत दर्ज कर अध्यक्ष पद तक पहुंचे हैं। इन वर्षों में पार्टी की कमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास रही है। खड़गे ने जब जिम्मेदारी संभाली थी, तो ज्यादातर लोगों का मानना था कि वह गांधी परिवार के इशारे पर काम करेंगे। पर अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने गांधी परिवार से तालमेल बैठाते हुए कई पार्टी के हित में परिपक्व निर्णय लिए हैं।
खड़गे की अगुआई में पार्टी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में शानदार जीत दर्ज की है। पार्टी की चुनाव रणनीति में बदलाव कर विवादित मुद्दों से बचते हुए स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा। कर्नाटक में जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद बढ़ा, तो उन्होंने फौरन हस्तक्षेप कर अपना उदाहरण देते हुए झगड़े को खत्म किया।
इसके साथ अपने राजनीतिक कौशल के जरिए लंबे वक्त से चल रहे झगड़ों को हल करने में सफल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार में जैसे ही हलचल शुरू हुई, उन्होंने फौरन प्रदेश कांग्रेस नेताओं की बैठक बुलाई और वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री घोषित कर दिया। अब राजस्थान पर चर्चा कर रहे हैं। पार्टी के एक नेता ने कहा कि राजस्थान का मुद्दा भी जल्द सुलझ जाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर खड़गे ने कई नई शुरुआत की हैं। मसलन, वह चुनावी राज्यों के नेताओं के साथ बैठक कर चुनाव रणनीति और मुद्दों पर चर्चा कर रहे है। तेलंगाना कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक में पार्टी अध्यक्ष ने साफ कहा कि पार्टी कर्नाटक की तर्ज पर सरकार बनाने के लिए मैदान में उतरेगी। कई बीआरएस नेताओं का पार्टी में शामिल होना और खम्मम रैली में भीड़ इसी जोश का नतीजा है।
उन्होंने पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच संवाद के अभाव को खत्म करने का प्रयास किया है। वह लगातार कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर उनकी बात सुन रहे हैं। हर माह कांग्रेस मुख्यालय में स्थित अपने दफ्तर में बिना किसी अपॉइंटमेंट के कार्यकर्ताओं से मिलते हैं। उनके साथ काम करने वाले एक नेता के मुताबिक, पार्टी अध्यक्ष प्रतिदिन औसतन छह से सात घंटे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलते हैं।
इसके साथ खड़गे किसी भी प्रदेश से जुडे विषय पर निर्णय लेने से पहले संबंधित प्रदेश कांग्रेस के नेताओं से चर्चा जरुर करते हैं। दिल्ली सरकार के खिलाफ अध्यादेश पर विपक्ष के दबाव में निर्णय लेने के बजाए उन्होंने दिल्ली और पंजाब कांग्रेस से चर्चा की। इसके बाद पार्टी ने अध्यादेश के मुद्दे पर पार्टी ने चुप्पी साध ली।
अध्यक्ष के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस के वैचारिक मुद्दों को भी धार दी है। चुनावी राज्यों के साथ कई दूसरे राज्यों का दौरा कर उन्होंने जनसभाओं को संबोधित किया है। इन रैलियों उन्होंने केंद्र सरकार को घेरते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती देने से गुरेज नहीं किया है। संसद में भी वह विपक्षी दलों को साथ लेने में सफल रहे हैं।
इसके साथ मल्लिकार्जुन खड़गे हर अहम बैठक में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को बुलाते हैं। कई बार पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी चर्चा करते हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले आठ माह में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने फैसले लिए है, उससे साफ है कि गांधी परिवार पूरी तरह उनके साथ खड़ा है।
पहल
– आम कार्यकर्ताओं और नेताओं से मुलाकात
– जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही तय करना
– प्रदेश नेताओं को भरोसे में लेकर निर्णय
निर्णय
– छत्तीसगढ़ में लंबे वक्त से चल रहा विवाद सुलझाया
– कई वर्षों से इंटक में चल रहे विवाद को हल किया
– पदाधिकारियों के यात्रा खर्च में कटौती
चुनौती
– रायपुर महाधिवेशन में पारित प्रस्तावों का लागू करना
– सभी को हिस्सेदारी देते हुए एआईसीसी का गठन करना
– आगामी पांच राज्यों के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना
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