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बजट में मेक इन इंडिया पहल को मिलेगा बढ़ावा, EV सेक्टर के लिए सरकार कर सकती है ये ऐलान

नई दिल्ली: भारत जैसे-जैसे ग्रीन फ्यूचर (Green Future) की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है, इंडस्ट्री की उम्मीद भी सरकार से वैसे ही बढ़ रही है. इस बार मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट (First full budget of the third term) पेश करने जा रही है. ऐसे में आगामी बजट में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) के सेक्टर में सरकार खास फोकस कर सकती है. आज के समय में ईवी सेक्टर के लिए ईवी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास काफी जरूरी हो गया है. एक्सपर्ट मानते हैं कि ईवी व्हीकल्स की तरह अगर सरकार इसके लिए सब्सिडी प्रदान करती है तो देश भर में चार्जिंग नेटवर्क के विस्तार में शानदार वृद्धि देखने को मिल सकती है, जिससे अधिक उपभोक्ता ईवी खरीदने के लिए प्रोत्साहित होंगे.

मालित्रा इंडिया के फाउडर और सीईओ सिराजुद्दीन अली कहते हैं कि ईवी चार्जर निर्माताओं को समर्थन देने की सख्त आवश्यकता है. वर्तमान में जीएसटी इनपुट क्रेडिट रिवर्सल में देरी के कारण इन निर्माताओं को वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ रहा है. कच्चे माल पर इनपुट जीएसटी 18% या उससे अधिक है, जबकि चार्जर की अंतिम बिक्री पर जीएसटी केवल 5% है. समय पर जीएसटी इनपुट रिवर्सल के साथ इस विसंगति को दूर करने से निर्माताओं पर बोझ कम होगा, जिससे उनके संचालन और मूल्य निर्धारण को स्थिर करने में मदद मिलेगी.

इसके अलावा माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) और स्टार्टअप्स को चार्जिंग व्यवसाय में उद्यम करने के लिए सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है. ये संस्थाएं अक्सर इनोवेशन में सबसे आगे होती हैं, लेकिन उनके पास अपने समाधानों को बढ़ाने के लिए संसाधनों की कमी हो सकती है. उन्हें वित्तीय और नीतिगत सहायता प्रदान करने से ईवी चार्जिंग इंडस्ट्री के भीतर घरेलू विनिर्माण क्षमताओं में शानदार वृद्धि हो सकती है. यह कदम न केवल सरकार की मेक इन इंडिया पहल का समर्थन करेगा, बल्कि इस क्षेत्र में कई नौकरियां भी पैदा करेगा और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देगा.

आगामी बजट में रणनीतिक सब्सिडी के माध्यम से ईवी चार्जिंग बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने, चार्जर निर्माताओं के लिए जीएसटी से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने और एमएसएमई और स्टार्टअप को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. इस तरह की पहल ईवी इकोसिस्टम में भारत के महत्वाकांक्षी पर्यावरणीय और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होगी.

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