– शशिकान्त जायसवाल
देशभर में उत्तर प्रदेश में पिछले छह वर्ष से विभिन्न क्षेत्रों में आए बदलाव की चर्चा हो रही है। खेती-किसानी के मामले में भी उत्तर प्रदेश दूसरे राज्यों की तुलना में कोसों आगे निकल चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विजन ने मल्टी सेक्टोरल क्षेत्रों को विकास की ओर डायवर्ट कर सस्टेनेबल और सर्वसमावेशी बनाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और उससे संबंधित सेक्टर को मजबूती मिली है। योगी सरकार का पहला बजट ही किसानों को समर्पित था। यहीं से उत्तर प्रदेश के कृषि अर्थव्यवस्था की ग्रोथ और किसानों की आय को दोगुना करने के लिए विकास यात्रा प्रारंभ हुई। इसका परिणाम है कि कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र की ग्रोथ रेट आज अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है।
उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयास से राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 26 फीसदी हुआ है। जबकि कृषि विकास दर स्थिर मूल्य पर वित्तीय वर्ष 2016-17 में 6.6 फीसदी की तुलना में 2022-23 में तीन गुना अधिक 18.2 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसी तरह चालू मूल्य पर वित्तीय वर्ष 2014-15 में कृषि विकास दर -3.8 की तुलना में 2021-22 में बढ़कर 20.1 फीसदी हो गई है। इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश ने चरणबद्ध तरीके से कार्य किया है। किसानों की लागत कम करने के लिए सिंचाई सुविधाओं में इजाफे से लेकर कृषि बजटिंग, मल्टी क्रॉपिंग, टेक्नोलॉजी के प्रयोग सहित प्रोत्साहन आदि प्रयासों पर जोर दिया है। बाणसागर, अर्जुन सहायक और सरयू नहर सहित 20 सिंचाई परियोजनाएं पूरी हुई हैं। इससे 21.42 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचन क्षमता बढ़ी है और 45 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं। 20 नए कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित किए गए हैं। प्रदेश में 89 कृषि विज्ञान केंद्र सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं। ऐसे अनेक नवाचार हैं, जिनसे किसानों को काफी सुविधा मिली है।
इन्हीं में से कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) भी है। योगी सरकार ने 2020 में उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादक संगठन नीति बनाई और 17 विभागों को एक प्लेटफॉर्म पर लाया, सभी के कार्य क्षेत्र तय किए गए। सरकार ने कारपोरेट की तर्ज पर एफपीओ और कृषि से जुड़े क्षेत्रों में हर तरह के कार्य की छूट दी। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में करीब 2250 एफपीओ रजिस्टर्ड हैं और दो-ढाई करोड़ से पांच छह करोड़ तक का टर्नओवर कर रहे हैं। कोरोनाकाल में सहजन, लेमन ग्रास, पामा रोजा की खेती की और बागपत के किसानों ने गन्ने के गढ़ में इसे पैदा कर एक नया मॉडल दिया है।
गन्ना किसानों की बात करें, तो सरकार ने दो लाख करोड़ रुपये से अधिक का गन्ना मूल्य भुगतान कराया है और आज 119 चीनी मिलों में से 100 मिलें 10 दिनों के अंदर गन्ना मूल्य का भुगतान कर रही हैं। गन्ना उत्पादकता में 1,00,875 टन प्रति हेक्टेयर की वृद्धि से किसानों की आय में औसतन 349 रुपये प्रति कुंतल की दर से 34,656 रुपये प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। गन्ने के साथ अंतर फसली खेती से किसानों को करीब 25 प्रतिशत की अतिरिक्त आय हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि रमाला के साथ-साथ मुण्डेरवा एवं पिपराइच में नई चीनी मिल लगाकर उसका संचालन शुरू कराया।
किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में 12 किस्तों में 51,639.68 करोड़ रुपये दिए हैं। इतनी बड़ी राशि छोटे राज्यों के सालाना बजट के बराबर है। इसके अलावा फसल बीमा योजना में पांच साल में किसानों की संख्या दोगुनी और क्षतिपूर्ति करीब तीन गुनी बढ़ी है। 2017-18 से लेकर अब तक 48.21 लाख किसानों को 3957.38 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति दी गई है। वर्ष 2022-23 में अनन्तिम तौर पर 10.07 लाख किसानों को 597.68 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।
इससे साफ है कि एक तरफ सरकार ने किसानों को भुगतान कराया है और दूसरी तरफ फसलों के नुकसान पर क्षतिपूर्ति भी दिलाई है। किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होने और ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन होने से कस्बों में लिक्विडिटी भी बढ़ रही है, जिससे ग्रामीण एवं अर्द्ध शहरी बाजारों में एग्रीगेट डिमांड बढ़ रही है। यह व्यवसायियों और निवेशकों को उत्तर प्रदेश की तरफ आकर्षित होने का एक बड़ा कारण भी है।
ग्रामीण और कस्बाई जनता कृषि के साथ कुटीर उद्योग धंधे भी करती है। उत्तर प्रदेश में देश के कुल हस्त शिल्पियों की आबादी का 29 प्रतिशत हिस्सा है और निर्यात में 60 प्रतिशत भागीदारी है। सरकार ने 1.90 लाख हस्त शिल्पियों, कारीगरों एवं छोटे उद्यमियों को 16 हजार करोड़ रुपये का लोन उपलब्ध कराया है। 2017 में बढ़ई, दर्जी, टोकरी बुनने वाले, नाई, सुनार, लोहार, कुम्हार, हलवाई, मोची, राजमिस्त्री और हस्तशिल्पी आदि को केंद्र में रखकर विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना की शुरुआत की। इसके तहत करीब पौने दो लाख लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है और निशुल्क टूल किट का वितरण किया गया है, ताकि वह अपना रोजगार आसानी से कर सकें।
उत्तर प्रदेश सरकार के मेगा प्रोजेक्ट ‘एक जनपद, एक उत्पाद कार्यक्रम’ (ओडीओपी) ने परंपरागत उद्योगों में जान फूंक दी है। उत्तर प्रदेश में 45 जीआई उत्पाद दर्ज हैं। वाराणसी और पूर्वांचल के जीआई उत्पादों में 20 लाख लोग शामिल हैं और करीब 25,500 करोड़ का सालाना कारोबार कर रहे हैं। 11 उत्पादों को इस वर्ष जीआई टैग मिला है, जिसमें 7 ओडीओपी उत्पाद अलीगढ़ ताला, हाथरस हिंग, मुज्जफरनगर गुड़, नगीना वुड कार्विंग, बखीरा ब्रासवेयर, बांदा शजर पत्थर क्राफ्ट, प्रतापगढ़ का आंवला हैं। चार कृषि और उद्यान से संबंधित उत्पाद वाराणसी से हैं।
इसमें बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भंटा, बनारसी पान और आदमचीनी चावल है। अब बनारसी लंगड़ा जीआई टैग के साथ दुनिया के बाजार में दस्तक देना वाला है। इस प्रकार से हस्त कुटीर, ओडीओपी आदि के तेजी से आगे बढ़ने उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को कई लाभ हुए हैं। पहला, कृषि अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला अतिरिक्त भार कम हुआ है। दूसरा, परंपरागत उद्योगों के बढ़ने से अतिरिक्त आय का सृजन हुआ और नए रोजगारों एवं स्वरोजगार के अवसर पैदा हुए। तीसरा, निर्यात में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी बढ़ी है। निर्यात से होने वाली आय ने जहां एक तरफ सामाजिक आर्थिक संरचना में नई गतिशीलता का संचार किया है। वहीं, प्रदेश की आय में वृद्धि कर जीएसडीपी की ग्रोथ को बूस्ट किया।
ओडीओपी की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग का नतीजा यह हुआ है कि राज्य का निर्यात 88,967 करोड़ से बढ़कर 1.57 लाख करोड़ रुपये हो गया। ओडीओपी ई-कॉमर्स पोर्टल पर 20 हजार से अधिक उत्पादों की बिक्री हो चुकी है। इससे स्थानीय स्तर पर उद्यमियों को लोकल से वोकल होने का भी अवसर मिला है। ऐसे ही प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना ने स्ट्रीट वेंडर्स का जीवन ही बदल दिया। उन्हें सूदखोरों से मुक्ति मिली और 10,33,132 स्ट्रीट वेंडर्स को 1190 करोड़ रुपये का रिकार्ड लोन दिया है। गांवों और कस्बों में कुटीर उद्योगों के प्रभावी ढंग से चलने से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को भी नई पहचान मिली है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों से खेती और उससे जुड़े उत्पाद प्रदेश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे रहे हैं। अभी हाल ही में हुए ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में फूड प्रॉसेसिंग में 37,364 हजार करोड़, डेयरी में 30,593 और बायो फ्यूल बायोमास में 20,360 हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। इससे पहले भी हुए इंवेस्टर्स समिट में हजारों करोड़ रुपये का निवेश धरातल पर उतरा है। ऐसे में वन ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को पूरा करने में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों का अहम योगदान होने वाला है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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