- उज्जैन जिले के 19 गेहूँ गोदामों सहित प्रदेश के कुल 176 गोदामों को किया ब्लैक लिस्टेड
- अब इनमें खाद्यान्न नहीं रखा जाएगा और न ही बनाए जाएँगे उपार्जन केंद्र
- कीट लगा खाद्यान्न रखने, समय पर न खोलने सहित कई गड़बड़ी मिली
उज्जैन। समर्थन मूल्य पर गेहूँ खरीदी के बाद यह गेहूँ सुरक्षा के लिए वेयरहाउस गोदामों में रखे जाते हैं लेकिन इनकी ठीक तरह से देखरेख नहीं करने के कारण और लापरवाही बरतने पर उज्जैन जिले के 19 गोदामों सहित प्रदेश के कुल 176 गोदामों को ब्लैक लिस्टेड घोषित कर दिया है। अब न तो इनमें खाद्यान्न रखा जाएगा और ना ही इन गोदामों को उपार्जन केंद्र बनाया जाएगा।
उज्जैन सहित मध्य प्रदेश में मार्च के अंतिम सप्ताह से गेहूँ की समर्थन मूल्य पर खरीदी होनी है। 100 लाख मीट्रिक टन खरीदी के हिसाब से तैयारियाँ की जा रही हैं। उज्जैन जिले के 19 गोदाम सहित मध्य प्रदेश के कुल 176 गोदामों पर न तो उपार्जन होगा और न ही इनमें गेहूँ का भंडार किया जाएगा। उज्जैन जिले के कुल 19 गोदामों को ब्लैक लिस्टेड घोषित किया गया है जिनमें चंदप्रभा, भवानी, नफीस, बालाजी, मंगलमूर्ति, यारदा, रिद्धि-सिद्धी, रामबा, श्रीराम, चामुंडेश्वरी, मधुसूदन, चंद्रावत, सदगुरु, रूद्र और महाकालेश्वर, शारदा, माँ आशापुर और वैष्णव साइलो के नाम हैं। इन सभी गोदामों पर आरोप है कि कीट लगा खाद्यान्न रखने, सेंट्रल पूल के लिए भारतीय खाद्य निगम को खाद्यान्न देने में आनाकानी करने, समय पर न खोलने सहित अन्य गड़बडिय़ों के कारण सरकार ने कड़ी कार्रवाई करते हुए कुल 176 गोदामों को ब्लैक लिस्टेड कर दिया है। पिछले दिनों उपार्जन नीति को लेकर आयोजित बैठक में भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों ने बताया था कि कुछ गोदाम संचालकों द्वारा सेंट्रल पूल में खाद्यान्न का उठाव करने में अवरोध उत्पन्न किया गया। गोदामों को समय पर नहीं खोला, पहुँच मार्ग को जानबूझकर खराब किया और कीटोपचार नहीं किया गया। परिणाम यह हुआ कि गोदामों में रखा खाद्यान्न कीटग्रस्त हो गया। निगम ने ऐसे गोदामों की सूची देते हुए इनमें उपार्जन केंद्र न खोलने और भंडारण नहीं करने के लिए निर्देशित किया था। इस आधार पर राज्य भंडार गृह निगम ने सभी कलेक्टरों को पत्र लिखकर कहा कि वर्ष 2024-25 में गेहँू उपार्जन के दौरान उन गोदामों में न तो उपार्जन केंद्र खोले जाएँ और न ही भंडारण किया जाए, जिन पर भारतीय खाद्य निगम ने आपत्ति जताई है। दरअसल सेंट्रल पूल में समय पर परिवहन न होने से खाद्यान्न के खराब होने की आशंका होती है और उसका पूरा वित्तीय भार राज्य सरकार के ऊपर आता है।