इटावा । सपा संस्थापक के जाने के बाद मैनपुरी लोकसभा सीट (Mainpuri Lok Sabha seat) खाली हो गई है। चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक छह माह बाद अप्रैल तक इस सीट पर उपचुनाव (by-election) होगा। सपा (SP) की टिकट पर सैफई परिवार से इस सीट के लिए दावेदार तय करना अखिलेश (Akhilesh) के लिए मुश्किल भरा फैसला होगा। नेताजी के बाद अखिलेश के सामने न सिर्फ पार्टी बल्कि परिवार को साधने की भी चुनौती होगी। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि शिवपाल खुद इस सीट पर दावेदारी कर सकते हैं। 2019 में उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा भी जताई थी।
नेताजी का नाम फिर आगे आने से ऐसा नहीं हो सका था। मुलायम के बाद अब परिवार की एकजुटता को बनाए रखने के लिए शिवपाल इस सीट से उपचुनाव लड़ सकते हैं। मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट पर 1996, 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी। इस सीट पर सपा की मजबूत पकड़ को देखते हुए अखिलेश ने भी 2022 के विधानसभा चुनाव में इसी लोकसभा की करहल विधानसभा सीट चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की।
समाजवादी पार्टी के इस अभेद किले को बचाना अखिलेश के सामने बड़ी चुनौती है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इस सीट के लिए प्रत्याशी का चयन अखिलेश यादव के लिए भी आसान नहीं होने वाला है। अखिलेश पार्टी की इस परंपरागत सीट को चाचा शिवपाल को देना नहीं चाहेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर सैफई परिवार से कौन इस सीट से चुनाव लड़ेगा। ऐसे में पहला नाम आता है तो धर्मेंद्र यादव का। जो बदायूं के सांसद भी रह चुके हैं और अखिलेश के विश्वासपात्र भी हैं।
2004 में मुलायम सिंह के सीट छोड़ने पर धमेंद्र सिंह ही उपचुनाव में जीते थे। यानि जिले में उनकी पकड़ है। मेहनती होने के कारण वह अखिलेश की पहली पसंद भी हो सकते हैं। दूसरा नाम तेज प्रताप यादव का है। 2014 में वह भी इस सीट पर हुए उपचुनाव में चुनाव लड़कर जीत हासिल कर चुके हैं। वह अखिलेश के भतीजे और लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं। भविष्य में विपक्ष को एकजुट करने की मुहीम में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार भी एकजुटता पर जोर दे रहे हैं। यदि तेज प्रताप इस सीट से चुनाव लड़ते हैं, तो विपक्षी एकता और मजबूत होगी।
धर्मेंद्र यादव के लड़ने की है ज्यादा उम्मीद
धर्मेंद्र यादव 2009 में बदायूं से सांसद रह चुके हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की टिकट से मैदान में उतरीं स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य ने इस सीट को अपने नाम कर लिया। स्वामी प्रसाद अब सपा में हैं। संभावना है कि 2024 के चुनाव में संघमित्रा भी सपा का दामन थाम लें। ऐसे में अखिलेश संघमित्रा को ही इस सीट पर उतार सकते हैं। यदि संघमित्रा यहां से चुनाव लड़ीं तो धर्मेंद्र को मैनपुरी सीट मिल सकती है। यही कारण है कि धर्मेंद्र यादव की दावेदारी मैनपुरी सीट पर ज्यादा है।
प्रोफेसर साहब की भूमिका बढ़ेगी
समाजवादी पार्टी में जब चाचा शिवपाल और अखिलेश यादव में रार बढ़ी तो प्रोफेसर साहब यानि रामगोपाल यादव अखिलेश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखे। अखिलेश को पार्टी का मुखिया बनाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। मुलायम सिंह यादव के रहते कहीं न कहीं संतुलन बना रहा। लेकिन अब नेताजी के निधन के बाद प्रोफेशर साहब की भूमिका अहम होगी। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अखिलेश के वह सबसे करीबी माने जाते हैं।
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